________________ [177 नामाधिकार निरूपण [257-4 प्र.] भगवन् ! प्रौदयिक-क्षायिक-क्षायोपशमिक-पारिणामिकभावनिष्पन्न सानिपातिकभाव किसे कहते हैं ? [257-4 उ.] आयुष्मन् ! प्रौदयिकभाव में मनुष्यगति, क्षायिकभाव में क्षायिकसम्यक्त्व, क्षायोपशमिकभाव में इन्द्रियां और पारिणामिकभाव में जीवत्व, यह प्रौदयिक-क्षायिक-क्षायोपशमिकपारिणामिकभावनिष्पन्न सान्निपातिकभाव का स्वरूप है / 4 कतरे से नामे उपसमिए खइए खओयसमिए पारिणामियनिप्पन्ने ? उवसंता कसाया खइयं सम्मत्तं खओवस मियाइं इंदियाई पारिणामिए जीवे, एस णं से नामे उवसमिए खइए खओवसमिए पारिणामियनिष्पन्ने 5 / [257-5 प्र.] भगवन् ! औपशमिक - क्षायिक - क्षायोपशमिक - पारिणामिकभावनिष्पन्न सान्निपातिकभाव का स्वरूप क्या है ? [257-5 उ.] आयुष्मन् ! औपशमिकभाव में उपशांतकषाय, क्षायिकभाव में क्षायिकसम्यक्त्व, क्षायोपशमिकभाव में इन्द्रियां और पारिणामिकभाव में जीवत्व, यह औपशमिक-क्षायिकक्षायोपशमिक-पारिणामिकभावनिष्पन्न सान्निपातिकभाव का स्वरूप है / 5 विवेचन-इन दो सूत्रों में चतुःसंयोगी सान्निपातिकभाव के पांच भंगों के नाम और उनके स्वरूप बतलाये हैं। स्वरूप बताने के प्रसंग में उदाहरणार्थ प्रयुक्त मनुष्यगति, शायिकसम्यक्त्व, इन्द्रियां, जीवत्व अादि उपलक्षण रूप होने से उस-उस भाव रूप में अन्यान्य गतियों आदि का भी ग्रहण समझ लेना चाहिये। इन चतुःसंयोगी पांचों भंगों में पांचवें पारिणामिकभाव को छोड़ने और शेष चार भावों का संयोग करने पर प्रथम भंग, चौथे क्षायोपशमिकभाव को छोड़कर शेष चार भावों के संयोग से दूसरा भंग, तीसरे क्षायिक भाव को छोड़कर बाकी के चार भावों के संयोग से तीसरा भंग, दूसरे औपशमिकभाव को छोड़कर शेष चार भावों के संयोग से चौथा भंग और पहले प्रौदयिकभाव को छोड़कर शेष चार भावों के संयोग से पांचवां भंग निष्पन्न जानना चाहिये। इन पांचों भंगों में से तृतीय और चतुर्थ ये दो भंग ही जीव में घटित होते हैं, शेष तान नहीं / घटित होने वाले भंगों का स्पष्टीकरण इस प्रकार है औदयिक-प्रौपशमिक-क्षायोपशमिक और पारिणामिक इन चार भावों के संयोग से निष्पन्न तृतीय भंग नारक आदि चारों गतियों में होता है। क्योंकि विवक्षित गति प्रौदयिकी है तथा प्रथम सम्यक्त्व के लाभकाल में उपशमभाव होने से और मनुष्यगति में उपशमश्रेणी में भी औपशमिक सम्यक्त्व होने से औपशमिकभाव है। इन्द्रियां क्षायोपशमिकभाव और जीवत्व पारिणामिकभाव रूप हैं / इस प्रकार यह तृतीय भंग सर्व गतियों में पाया जाता है। सूत्र में प्रयुक्त इस तृतीय भंग के उदाहरण रूप में 'उदए त्ति मणूसे उवसंता कसाया' पाठ इस बात को स्पष्ट करने के लिये है कि उपशमश्रेणी में मनुष्यत्व का उदय और कषायों का उपशम होता है / अथवा सूत्रोक्त पाठ उपलक्षण रूप होने से यथायोग्य गति आदि का ग्रहण समझ लेना चाहिये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org