________________ नामाधिकार निरूपण [205 सेतं अवयवेणं। [271 प्र.] भगवन् ! अवयवनिष्पन्न नाम का क्या स्वरूप है? [271 उ.] आयुष्मन् ! अवयव निष्पन्ननाम का स्वरूप इस प्रकार जानना चाहिये श्रृंगी, शिखी, विषाणी, दंष्ट्री, पक्षी, खुरी, नखी, बाली, द्विपद, चतुष्पद, बहुपद, लांगूली, केशरी, ककुदी आदि / 83 इसके अतिरिक्त परिकरबंधन-विशिष्ट रचना युक्त वस्त्रों के पहनने से---कमर कसने से योद्धा पहिचाना जाता है, विशिष्ट प्रकार के वस्त्रों को पहनने से महिला पहिचानी जाती है, एक कण पकने से द्रोणपरिमित अन्न का पकना और (प्रासादादि गुणों से युक्त) एक ही गाथा के सुनने से कवि को पहिचाना जाता है / यह सब अवयवनिष्पन्ननाम कहलाते हैं। 84 विवेचन---सूत्र में अवयवनिष्पन्ननाम की व्याख्या की है। अवयवनिष्पन्न अर्थात् अवयवी के एक देश रूप अवयव का समस्त अवयवी पर आरोप करके अवयव और अवयवी को अभिन्न मानकर जो नाम रक्खा जाता है उसे अवयवनिष्पन्ननाम कहते हैं, जो श्रृंगी, शिखी आदि उदाहरणों से स्पष्ट है / श्रृंगी नाम श्रृग (सींग) रूप अवयव के सम्बन्ध से, शिखी नाम शिखा रूप अवयव के सम्बन्ध से निष्पन्न हुआ है / इसी प्रकार विषाणी, दंष्ट्री, पक्षी आदि नामों के विषय में जानना चाहिये। योद्धा, महिला, द्रोणपाक, कवि आदि शब्दों का प्रयोग परिकरबंधन प्रादि-आदि अवस्थानों को प्रत्यक्ष देखने, सुनने से होता है और ये परिकरबंधन आदि योद्धा आदि अवयवी के अवयव रूप एकदेश हैं / इसलिये ये शब्द भी अवयव की प्रधानता से निष्पन्न होने के कारण अवयवनिष्पन्तनाम के रूप में उदाहृत हुए हैं / अवयवनिष्पन्न और गौणनिष्पन्न नाम में अन्तर-इन दोनों की नामनिष्पन्नता के प्राधार भिन्न-भिन्न हैं ! अवयवनिष्पन्ननाम में श्रृंग आदि शरीरावयव या अंग-प्रत्यंग विशेष नाम के आधार हैं, जबकि गौण निष्पन्ननाम में गुणों की प्रधानता होती है / इसलिये अवय बनाम और गौणनाम पृथक्पृथक् माने गये है। संयोगनिष्पन्ननाम 272. से कि तं संजोगेणं? संजोंगे चउबिहे पण्णत्ते / तं जहा दध्वसंजोगे 1 खेत्तसंजोगे 2 कालसंजोगे 3 भावसंजोगे 4 // [272 प्र.] भगवन् ! संयोगनिष्पन्ननाम का क्या स्वरूप है ? [272 उ.] आयुष्मन् ! (संयोग की प्रधानता से निष्पन्न होने वाला नाम संयोगनिष्पन्ननाम है।) संयोग चार प्रकार का है--१. द्रव्यसंयोग, 2. क्षेत्रसंयोग, 3. कालसंयोग, 4. भावसंयोग / विवेचन—यह सूत्र संयोगनिष्पन्ननाम को प्ररूपणा करने की भूमिका रूप है। संयोग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org