________________ नामाधिकार निरूपण] [217 द्रव्यप्रमाणनिष्पन्ननाम 292. से कि तं दव्वप्पमाणे ? दव्वप्पमाणे छव्धिहे पण्णत्ते / तं जहा-धम्मास्थिकाए जाय अद्धासमए / से तं दव्यप्पमाणे / [292 प्र.] भगवन् ! द्रव्यप्रमाणनिष्पन्ननाम का क्या स्वरूप है ? [292 उ.] अायुष्मन् ! द्रव्यप्रमाणनिष्पन्ननाम छह प्रकार का है। यथा --धर्मास्तिकाय यावत् अद्धासमय / यह द्रव्यप्रमाणनिष्पन्ननाम का स्वरूप है / विवेचन धर्मास्तिकाय अादि षद द्रब्यों के नाम द्रव्य विषयक होने से अथवा द्रव्यों के सिवाय अन्य के नहीं होने से द्रव्यप्रमाणनिष्पन्ननाम हैं / अनादिसिद्धान्तनाम में भी इन्हीं छह द्रव्यों के नामों का उल्लेख किया है किन्तु वस्तु अनन्तधर्मात्मक है, अत: विवक्षाभेद के कारण दोष नहीं समझना चाहिए। भावप्रमारगनिष्पन्ननाम 263. से कि तं भावपमाणे? भावप्पमाणे चउविहे पण्णत्ते / तं जहा सामासिए 1 तद्धितए 2 धातुए 3 निरुत्तिए 4 / [293 प्र. भगवन् ! भावप्रमाण किसे कहते हैं ? [293 उ.] आयुष्मन् ! भावप्रमाण 1. मामासिक 2. तद्धितज 3. धातुज और 4. निरुक्तिज के भेद से चार प्रकार का है। विवेचन-भावप्रमाणनिष्पन्ननाम की प्ररूपणा प्रारंभ करने के लिये सूत्र में उसके चार भेदों के नाम गिनाये हैं। भाव अर्थात् वस्तुगत गुण / अतएव भाव एव प्रमाण-भाव ही प्रमाण है-इस व्युत्पत्ति के अनुसार भाव रुग प्रमाण को भावप्रमाण कहते हैं और उसके द्वारा निष्पन्न नाम भावप्रमाणनिष्पन्ननाम कहलाता है / वह सामासिक आदि के भेद से चार प्रकार का है। आगे क्रम से उनका वर्णन करते हैं। सामासिकभावप्रमाणनिष्पन्ननाम 294. से कि तं सामासिए ? सामासिए सत्त समासा भवंति / तं जहा दंदे 1 य बहुव्वीही 2 कम्मधारए 3 दिग्गु 4 य / तप्पुरिस 5 अव्वईभावे 6 एक्कसेसे 7 य सत्तमे // 1 // [294 प्र.] भगवन् ! सामासिकभावप्रमाण किसे कहते है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org