________________ नामाधिकार निरूपण] [215 संग्रहणी गाथोक्त क्रम से अग्नि आदि अट्ठाईस देवताओं के नाम क्रमशः कृत्तिका ग्रादि नक्षत्रों के अधिष्ठातृ देवों के हैं। कुलनाम 287. से किं तं कुलनामे ? कुलनामे उग्गे भोगे राइण्णे खत्तिए इक्खागे जाते कोरवे / से तं कुलनामे / [287. प्र.] भगवन् ! कुलनाम किसे कहते हैं ? [287 उ.] श्रायुष्मन् ! (जिस नाम का अाधार कुल हो, उसे कुलनाम कहते हैं 1) जैसे उग्र, भोग, राजन्य, क्षत्रिय, इक्ष्वाकु, ज्ञात, कौरव्य इत्यादि / यह कुलनाम का स्वरूप है / विवेचन--पिता के वंश को कुल कहते हैं। कुल के नाम का कारण कोई प्रमुख व्यक्ति या प्रसंग-विशेष होता है। अतएव पितृवंश की परम्परा के आधार से किया जाने वाला नाम कुलनाम कहलाता है / जैसे उग्र कुल में जन्म लेने से उग्न नाम रखा जाना। इसी प्रकार भोग, राजन्य ग्रादि नामों के विषय में जानना चाहिये / पाषण्डनाम 288, से कि तं पासंडनामे ? पासंडनामे समणए पंडुरंगए भिक्ख कावालियए तावसए परिब्वायगे / से तं पासंडनामे। [288 प्र.] भगवन् ! पाषण्डनाम का क्या स्वरूप है ? [288 उ.] आयुष्मन् ! श्रमण, पाण्डुरांग, भिक्षु, कापालिक, तापस, परिव्राजक यह पाषण्डनाम का स्वरूप जानना चाहिये। विवेचन—सूत्र में उदाहरणों के माध्यम से पाषण्डनाम का स्वरूप बतलाया है / मत, संप्रदाय, प्राचार-विचार की पद्धति अथवा व्रत को पाषण्ड कहते हैं। अतएव कारण में कार्य का उपचार करके पाषण्ड (व्रत आदि) के आधार से स्थापित नाम पाषण्डनाम कहलाता है / पाषण्डनाम के उदाहरणों में निर्ग्रन्थ, शाक्य, तापस, गैरिक, आजीवक के भेद से श्रमण पांच प्रकार के हैं / भस्म से लिप्त शरीर वाले ऐसे शैव-शिव के भक्तों को पाण्डुरांग कहते हैं / इसी प्रकार बुद्धदर्शन के अनुयायी भिक्षु, चिता की राख से अपने शरीर को लिप्त रखने वाले श्मशानवासी कापालिक, तपसाधना करने वाले तापस और गृहत्यागी संन्यासी परिवाजक कहलाते हैं। गणनाम 289. से कि तं गणनामे ? गणनामे मल्ले मल्लदिन्ने मल्लधम्ने मल्लसम्म मल्लदेवे मल्लदासे मल्लसेणे मल्लरविखए। से तं गणनामे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org