________________ 208] [अनुयोगद्वारसूत्र कालसंयोगनिष्पन्ननाम 278. से कि तं कालसंजोगे ? कालसंजोगे सुसमसुसमए सुसमए सुसमसमए दूसमसुसमाए दूसमए दूसमदूसमए अहवा पाउसए वासारत्तए सरदए हेमंतए वसंतए गिम्हए / से तं कालसंजोगे। [278 प्र. भगवन् ! कालसंयोग से निष्पन्न नाम का क्या स्वरूप है ? [278 उ.] आयुष्मन् ! काल के संयोग से निष्पन्न होने वाले नाम का स्वरूप इस प्रकार है सुषमसुषम काल में उत्पन्न होने से यह सुषम-सुषमज' है, यह सुषमकाल में उत्पन्न होने से 'सुषमज' है। इसी प्रकार से सुषमदुषमज, दुषमसुषमज, दुषमज, दुषमदुषमज नाम भी जानना चाहिये / अथवा यह प्रावृषिक (वर्षा के प्रारंभ काल में उत्पन्न हुआ) है, यह वर्षारात्रिक (वर्षाऋतु में उत्पन्न) है, यह शारद (शरदऋतु में उत्पन्न) है, यह हेमन्तक है, यह वासन्तक है, यह ग्रीष्मक है आदि सभी नाम कालसंयोग से निष्पन्न नाम हैं। विवेचन--सूत्र में काल के संयोग से निष्पन्न नाम का स्वरूप बताया है। विवक्षाभेद से सुषमसुषम आदि की तरह वर्षा, शरद् आदि ऋतुयें भी काल शब्द की वाच्य होती हैं। अतएव इन सब कालों के आधार से निष्पन्न होने वाले नाम कालसंयोगनिष्पन्न नाम हैं। सुषमसुषम आदि कालों का स्वरूप-जैनदर्शन में अनन्त समय वाले काल की व्यवहारदृष्टि से अनेक रूपों में व्याख्या की है। उनमें अवसर्पिणी और उत्सपिणी यह काल के दो मुख्य भेद है। ये दोनों भेद भी पुनः सुषमसुषम आदि छह भेदों (पारे) के रूप में विभाजित हैं। नामकरण के कारण सहित उनका स्वरूप इस प्रकार है 1. सुषमसुषम---इस काल में भूमि प्राकृतिक उपरागों से रहित होती है। कल्पवृक्षों से परिपूर्ण पर्वत, रत्नों से भरी पृथ्वी, सुन्दर नदियां होती हैं / वृक्ष फल-फूलों से लदे रहते हैं / दिन-रात का भेद नहीं होता है, शीत, उष्ण वेदना का प्रभाव होता है। मनुष्य युगल (नर-नारी) के रूप में उत्पन्न होते हैं / ये अकालमरण से नहीं मरते और इनको तीन-तीन दिन के अंतर से आहार की इच्छा होती है / कल्पवृक्ष के फल आदि का आहार करते हैं। मनुष्यों की शरीर अवगाहना तीन कोस की होती है। शरीर में 256 पसलियां होती हैं तथा वज्रऋषभनाराचसहनन और समचतुरस्रसंस्थान वाले होते हैं / आयु तीन पल्य की होती है। सुषमसुषमकाल का कालमान बार कोडाकोडी सागरोपम का है / सुषम--उक्त प्रकार के प्रथम पारे की समाप्ति होने पर तीन कोडाकोडी सागरोपम का यह दूसरा सुषम पारा प्रारंभ होता है। इसमें पूर्व पारे की अपेक्षा वर्ण-गंध-रस-स्पर्श की उत्तमता में अनन्तगुणी हीनता आ जाती है। क्रम से घटती शरीर अवगाहना दो कोस और आयु दो पल्योपम की हो जाती है। शरीर में पसलियां 128 रह जाती हैं। दो दिन के अंतर से आहार की इच्छा होती है / पृथ्वी का स्वाद मिश्री के बदले शक्कर जैसा रह जाता है। मृत्यु से पहले युगलिनी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org