________________ नामाधिकार निरूपण] गंधारे गोतनुत्तिणा कज्जवित्ती कलाहिया। हवंति कणो पण्णा जे अण्णे सत्यपारगा 3 / / 34 // मनिमसरमंता उ हवंति सुहजीविणो। खायती पियतो देती मज्झिमस्सरमस्सिओ४ // 35 // पंचमस्सरमंता उ हवंती पुहवीपती। सूरा संगहकत्तारो अणेगणरणायगा 5 // 36 // धेवयस्सरमंता उ हवंति कलहप्पिया। साउणिया वागुरिया सोयरिया मच्छबंधा य 6 // 37 // ' चंडाला मुढ़िया मेला, जे यऽण्णे पावकारिणो / गोधातगा य चोरा य नेसातं सरमस्सिता 7 // 38 // [260-5] इन सात स्वरों के (तत्तत् फल प्राप्ति के अनुसार) सात स्वरलक्षण कहे गये हैं। यथा 1. षड्जस्वर वालामनुष्य वृत्ति-पाजीविका प्राप्त करता है। उसका प्रयत्न व्यर्थ नहीं जाता है / उसे गोधन, पुत्र-पौत्रादि और सन्मित्रों का संयोग मिलता है / वह स्त्रियों का प्रिय होता है / 32 2. ऋषभस्वर वाला मनुष्य ऐश्वर्यशाली होता है / सेनापतित्व, धन-धान्य, वस्त्र, गंधसुगंधित पदार्थ, आभूषण-अलंकार, स्त्री, शयनासन आदि भोगसाधनों को प्राप्त करता है / 33 3. गांधारस्वर वाला श्रेष्ठ आजीविका प्राप्त करता है / वादित्रवृत्ति वाला होता है / कलाविदों में श्रेष्ठ-शिरोमणि माना जाता है। कवि अथवा कर्तव्यशील होता है। प्राज्ञ-बुद्धिमान्चतुर तथा अनेक शास्त्रों में पारंगत होता है / 34 4. मध्यमस्वरभाषी सुखजीवी होते हैं / रुचि के अनुरूप खाते-पीते और जीते हैं तथा दूसरों को भी खिलाते-पिलाते तथा दान देते हैं / 35 5. पंचमस्वर वाला व्यक्ति भूपति, शूरवीर, संग्राहक और अनेक गुणों का नायक होता होता है / 33 6. धैवतस्वर वाला पुरुष कलहप्रिय, शाकुनिक (पक्षियों को मारने वाला-चिडीमार), वागुरिक (हिरण प्रादि पकड़ने-फंसाने वाला), शौकरिक (सूअरों का शिकार करने वाला) और मत्स्यबंधक (मच्छीमार) होता है / 37 1-2. पाठान्तर रेवयसरमंता उ, वंति दुहजोविणो। कुचेला य कुवित्तीय, चोरा चंडालमुट्टिया / / णिसायसरमंता उ, होति कलह कारगा। जंधाचरा लेहवाहा, हिंडगा भारवाहगा / / --अनुयोगद्वारवृत्ति, पृ. 129 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org