________________ 200 [अनुयोगद्वारसूत्र विवेचन-सूत्र में कतिपय उदाहरणों के द्वारा गौणनाम का स्वरूप बतलाया है। गुणों के प्राधार से जो संज्ञायें निर्धारित होती हैं, उन्हें गौणनाम कहते हैं / यह यथार्थनाम भी कहलाता है / उदाहरण के रूप में जिन नामों का उल्लेख किया है, वे क्षमा, तपन, ज्वलन, पवन रूप नाम के अनुसार गुणों वाले हैं / इसलिये उनके नाम गुणनिष्पन्न होने से गौण-यथार्थ नाम हैं। नोगौणनाम 265. से कि तं नोगोण्णे ? नोगोण्णे अकुतो सकुतो, अमुग्गो समुग्गो, अमुद्दो समुद्दो, अलालं पलालं, अकुलिया सकुलिया, नो पलं असतोति पलासो, अमातिवाहए मातिवाहए, अबीयवावए बीयवावए, नो इंदं गोवयतीति इंदगोवए / से तं नोगोण्णे। [265 प्र.] भगवन् ! नोगौणनाम का क्या स्वरूप है ? [265 उ.] आयुष्मन् ! नोगौणनाम का स्वरूप इस प्रकार जानना चाहियेकुन्त-शस्त्र-विशेष (भाला) से रहित होने पर भी पक्षी को 'सकुन्त' कहना / मुद्ग---मूंग धान्य से रहित होने पर भी डिबिया को 'समुद्ग' कहना / मुद्रा-अंगठी से रहित होने पर भी सागर को 'समुद्र' कहना।। लाल-लार से रहित होने पर भी विशेष प्रकार के घास को 'पलाल' कहना / कुलिका भित्ति (दीवार) से रहित होने पर भी पक्षिणी को 'सकुलिका' कहना / पल-मांस का आहार न करने पर भी वृक्ष-विशेष को 'पलाश' कहना। माता को कन्धों पर वहन न करने पर भी विकलेन्द्रिय जीवविशेष को 'मातृवाहक' नाम से कहना। बीज को नहीं बोने वाले जीवविशेष को 'बीजवापक' कहना / इन्द्र की गाय का पालन न करने पर भी कीटविशेष का ‘इन्द्रगोप' नाम होना। इस प्रकार से नोगौणनाम का स्वरूप है। विवेचन सूत्र में नोगौणनाम का स्वरूप कतिपय उदाहरणों द्वारा बतलाया गया है / यह नाम गुण-धर्म-स्वभाव आदि की अपेक्षा किये बिना मात्र लोकरूढि से निष्पन्न होता है / इस प्रकार के नाम अयथार्थ होने पर भी लोक में प्रचलित हैं। सूत्रगत उदाहरण स्पष्ट हैं / जैसे 'सकुन्त' यह नाम अयथार्थ है / क्योंकि व्युत्पत्ति के अनुसार जो कुन्त-~-शस्त्र-विशेष-भाला से युक्त हो वही सकुन्त है। किन्तु पक्षी को भी सकुन्त (शकुन्त) कहा जाता है / इसी प्रकार अन्य उदाहरणों के लिये जानना चाहिये। प्रादानपदनिष्पन्ननाम 266. से कि तं आयाणपदेणं ? आयाणपदेणं आवंती चातुरंगिज्जं अहातस्थिज्ज अद्दइज्ज असंखयं जण्णइज्जं पुरिसइज्जं (उसुकारिजं) एलइज्ज वीरियं धम्मो मग्गो समोसरणं जमईयं / से तं आयाणपदेणं / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org