________________ नामाधिकार निरूपण] [201 [266 प्र.] भगवन् ! आदानपदनिष्पन्ननाम का क्या स्वरूप है ? [266 उ.] आयुष्मन् ! प्रावंती, चातुरंगिज्जं, असंखयं, अहातथिज्ज अद्दइज्ज, जण्णइज्ज, पुरिसइज्ज (उसुकारिज), एलइज्जं, वीरियं, धम्म, मग, समोसरणं, जमईयं आदि आदानपदनिष्पन्ननाम हैं। विवेचन--सूत्र में आदानपदनिष्पननाम का स्वरूप बताने के लिये संबन्धित उदाहरणों का उल्लेख किया है। किसी शास्त्र के अध्ययन प्रादि के प्रारंभ में उच्चरित पद आदान पद कहलाता है। उस के आधार से निष्पन्न-रखे जाने वाले नाम को प्रादानपदनिष्पन्ननाम कहते हैं / जैसे पावंती--इस प्राचारांगसूत्र के पांचवें अध्ययन के नाम का कारण उसके प्रारंभ में उच्चरित 'पावंती केयावंती' पद है। 'चाउरंगिज्ज' यह उत्तराध्ययनसूत्र के तीसरे अध्ययन का नाम है, जो उस अध्ययन के प्रारंभ में प्रागत चत्तारि परमंगाणि दुल्लहाणीह जंतुणो' गाथा के आधार से रखा है। 'असंखयं जीविय मा पमायए' इस वाक्य में प्रयुक्त 'असंखयं' शब्द उत्तराध्ययनसूत्र के चतुर्थ अध्ययन के नाम का कारण है। ___ 'जह सुत्तं तह अत्थो' गाथोक्त जह तह इन दो पदों के आधार से सूत्रकृतांगसूत्र के तेरहवें अध्ययन का 'जहतह' नामकरण किया गया है। इसी प्रकार 'पुराकडं अद्दइयं सुणेह' इस सूत्रकृतांगसूत्र के द्वितीय श्रुतस्कन्ध के छठे अध्ययन की पहली गाथा के 'अद्दइयं' पद के आधार से इस अध्ययन का नाम 'अद्दइज्ज' है। उत्तराध्ययनसूत्र के पच्चीसवें अध्ययन के प्रारंभ में यह गाथा है-- माहणकुलसंभूत्रो आसि विप्पो महायसो। जायई जम जन्ममि जयघोसो ति नामयो / / इस गाथा में प्रागन 'जन्न' पद के प्राधार से इस अध्ययन का नाम 'जन्नइज्ज' रखा है / इसी वें अध्ययन की पहली गाथा में प्रागत उसूयार पद के आधार से उस अध्ययन का नाम "उसकारिज' है तथा सानवे अध्ययन के प्रारंभ में 'एलयं पद होने से उस अध्ययन का नाम 'एलइज्ज' है। _सूत्रकृतांगसूत्र के पाठवें अध्ययन की पहली गाथा में 'वीरियं' पद होने से उस अध्ययन का नाम 'वीरियं रखा तथा नौवें अध्ययन की पहली गाथा में 'धम्म' पद होने से वह अध्ययन 'धम्मज्मयण' नाम वाला है और ग्यारहवें अध्ययन की प्रस्तावना की प्रथम गाथा में 'मग्ग' शब्द होने से उस अध्ययन का नाम 'मग्गज्य णं' है। सूत्रकृतांगसूत्र के बारहवें अध्ययन के प्रारंभ की गाथा में 'समोस रणाणिमाणि' पद है। इसी के प्राधार से उस अध्ययन का नाम 'समोसरणज्झयणं' रख लिया गया तथा पन्द्रहवें अध्ययन की पहली गाथा में 'जमईय' पद होने से अध्ययन का नाम 'जमईयं' है। इसी प्रकार अन्य नामों की आदानपदनिष्पन्नता समझ लेना चाहिये / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org