________________ 108] [अनुयोगद्वारसूत्र अधोलोकक्षेत्रानुपूर्वी 164. अहोलोयलेत्ताणुपुव्वी तिविहा पण्णत्ता / तं जहा–पुव्वाणुपुच्वी 1 पच्छाणुपुव्वी 2 अगाणुपुत्रो 3 / [164] अधोलोकक्षेत्रानुपूर्वी तीन प्रकार की कही है / यथा... 1. पूर्वानुपूर्वी. 2. पश्चानुपूर्वी, 3. अनानुपूर्वी। 165. से कि तं पुवाणुपुवी ? पुवाणुपुब्बी रयणप्पभा 1 सक्करप्पभा 2 वालयप्पभा 3 पंकप्पभा 4 धूमप्पभा 5 तमप्पभा 6 तमतमध्यभा 7 / से तं पुन्वाणुपुवी / [165 प्र.] भगवन् ! अधोलोकक्षेत्रपूर्वानुपूर्वी का क्या स्वरूप है ? [165 उ.] आयुष्मन् ! 1. रत्नप्रभा. 2. शर्कराप्रभा, 3. बालुकाप्रभा, 4. पंकप्रभा, 5. धूमप्रभा, 6. तमःप्रभा, 7. तमस्तमःप्रभा, इस क्रम से ( सात नरकभूमियों के ) उपन्यास करने को अधोलोकक्षेत्रपूर्वानुपूर्वी कहते हैं। 166. से कि तं पच्छाणुपुची ? पच्छाणुपुन्वी तमतमा 7 जाव रयणप्पभा 1 / से तं पच्छाणुपुछी / [166 प्र.] भगवन् ! अधोलोकक्षेत्रपश्चानुपूर्वी का क्या स्वरूप है? [166 उ.] आयुष्मन् ! तमस्तमःप्रभा से लेकर यावत् रत्नप्रभा पर्यन्त व्युत्क्रम से (नरकभूमियों का) उपन्यास करना अधोलोकपश्चानुपूर्वी कहलाती है। 167. से कि तं अणाणुपुवी ? अणाणुपुन्वी एयाए चेव एगादियाए एगुत्तरियाए सत्तगच्छगयाए सेढीए अण्णमण्णब्भासो दुरूवणो। से तं अणाणुपुग्वी। [167 प्र.] भगवन् ! अधोलोकक्षेत्रअनानुपूर्वी का क्या स्वरूप है ? [167 उ.] आयुष्मन् ! अधोलोकक्षेत्रअनानुपूर्वी का स्वरूप इस प्रकार है-अादि में एक स्थापित कर सात पर्यन्त एकोत्तर वृद्धि द्वारा निर्मित श्रेणी में परस्पर गुणा करने से निष्पन्न राशि में से प्रथम और अन्तिम दो भंगों को कम करने पर यह अनानुपूर्वी बनती है। विवेचन----प्रस्तुत चार सूत्रों में अधोलोकक्षेत्रानुपूर्वी का वर्णन किया है / अधोलोक में रत्नप्रभा आदि सात नरकपृथ्वियां हैं। रत्नप्रभा प्रादि नाम का कारण-पहली नरकपृथ्वी का नाम रत्नप्रभा इसलिये है कि वहाँ नारक जीवों के प्रावास स्थानों से अतिरिक्त स्थानों में इन्द्रनील आदि अनेक प्रकार के रत्नों की प्रभा- कान्ति का सद्भाव है / शर्कराप्रभा नामक द्वितीय पृथ्वी में शर्करा-पाषाणखंड जैसी प्रभा है। बालुकाप्रभा में बालू-रेती जैसी प्रभा है। चौथी पंकप्रभापृथ्वी में कीचड़ जैसी प्रभा है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org