________________ 138] [अनुयोगद्वारतत्र [209 प्र.] भगवन् ! एकनाम का क्या स्वरूप है ? [209 उ.] आयुष्मन् ! द्रव्यों, गुणों एवं पर्यायों के जो कोई नाम लोक में रूढ़ हैं, उन सरको 'नाम' ऐसी एक सज्ञा आगम रूप निकष (कसौटी) में कही गई है / 17 / यह एकनाम का स्वरूप है। विवेचन—सूत्र में एकनाम का स्वरूप बतलाया है / जीव, अजीव भेद विशिष्ट द्रव्यों के जैसे जीव, जन्तु, आत्मा, प्राणी, अाकाश, नभस्, तारापथ व्योम, अम्बर इत्यादि और गुणों के यथा ज्ञान, बुद्धि, बोध इत्यादि तथा रूप, रस, गंध इत्यादि तथा नारकत्व आदि पर्यायों के जैसे नारक, तिर्यंच, मनुष्य आदि, एक गुण कृष्ण, दो गुण कृष्ण इत्यादि लोक में रूढ़ सभी नाम 'नामत्व' इस सामान्य पद से गृहीत हो जाने से वे एक नाम कहलाते हैं / सारांश यह है कि संसार में द्रव्यों, गुणों, पर्यायों के सभी लोफरूढ़ नाम यद्यपि पृथक्-पृथक् हैं, किन्तु नामत्व सामान्य की अपेक्षा वे सब नाम एक ही हैं। आगम की निकषरूपता-जैसे सोना, चांदी ग्रादि के यथार्थ स्वरूप का परिज्ञान निकषपट्ट (कसौटी) से होता है, उसी प्रकार जीवादि पदार्थों के स्वरूप का परिज्ञान आगम-~-शास्त्र से / अतः उनके स्वरूप के परिज्ञान का हेतु होने से सूत्रकार ने प्रागम को निकष की उपमा से उपमित किया है / 2. द्विनाम 210. से कि तं दुणामे ? कुणामे दुविहे पण्णत्ते / तं जहा-एगवखरिए य 1 अणेगक्खरिए य / [210 प्र.] भगवन् ! द्विनाम का क्या स्वरूप है ? [210 उ.] आयुष्मन् ! द्विनाम के दो प्रकार हैं-१. एकाक्षरिक और 2. अनेकाक्षरिक / 211. से कि तं एगखरिए ? एगक्खरिए अणेगविहे पण्णत्ते / तं जहाह्रीः श्रीः धीः स्त्री। से तं एगवखरिए। [211 प्र.] भगवन् ! एकाक्षरिक द्विनाम का क्या स्वरूप है ? [211 उ.] आयुष्मन् ! एकाक्षरिक द्विनाम के अनेक प्रकार हैं। जैसे कि ह्री (लज्जा अथवा देवता विशेष), श्री (लक्ष्मी अथवा देवता विशेष), धी (बुद्धि), स्त्री आदि एकाक्षरिक नाम हैं। 212. से कि तं अणेगवखरिए? अणेगक्खरिए अणेगविहे पण्णत्ते / तं जहा–कण्णा वीणा लता माला / से तं अणेगक्खरिए / [212 प्र.] भगवन् ! अनेकाक्षरिक द्विनाम का क्या स्वरूप है ? [212 उ.] आयुष्मन् ! अनेकाक्षरिक नाम के भी अनेक प्रकार हैं / यथा---कन्या, वीणा, लता, माला प्रादि अनेकाक्षरिक द्विनाम हैं। विवेचन-सूत्र में द्विनाम का स्वरूप उदाहरणों द्वारा स्पष्ट किया है। द्विनाम का तात्पर्य है दो अक्षरों से बना हुअा नाम / किसी भी वस्तु का उच्चारण अक्षरों के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org