________________ नामाधिकार निरूपण 1165 विपाकश्रुतधारी, क्षायोगश मिक दृष्टिवादधारी, क्षायोपशमिक नवपूर्वधारी यावत् चौदहपुर्वधारी, क्षायोपशमिक गणी, शायोपशामिक बाचक / ये सब क्षयोपशमनिष्पन्नभाव हैं। यह क्षायोपरागिकभाव का स्वरूप है। विवेचन ---यहाँ मप्रभेद क्षायोपशामिकभाव का स्वरूप स्पष्ट किया है / एक तो ततत् .....अमुकअमुक कर्म का क्षयोपशम ही क्षायोपशामिक है और दूसरा क्षयोपशम निष्पन्नभाव क्षायोपशामिक है। विवश्चित ज्ञानादि गुणों का बात करने वाले उदयप्राप्त कर्म का क्षय - सर्वथा अपगम और अनुदीर्ण उन्हीं कर्मों का उपशम -विपाक की अपेक्षा उदयाभाव, इस प्रकार के क्षय से उपलक्षित उपशम को क्षयोपशम कहते हैं और इस क्षयोपशम से निष्पन्न पर्याय क्षयोपशमनिष्पन्नभाव है। जिस कर्म में सर्वघाती और देशघाती ये दोनों प्रकार के स्पर्धक (अंश) पाये जाते हैं, उनका क्षयोपशम होता है / किन्तु जिनमें केवल देशधातीस्पर्धक ही पाये जाते हैं ऐसे हास्यादि नवनोकषाय और जिनमें मात्र सर्वधातीम्पर्धक ही पाये जाते हैं. ऐसे केवलज्ञानावरण प्रादि कर्मों का क्षयोपशम नहीं होता है। यद्यपि अप्रत्याख्यानावरण और प्रत्याख्यानावरण कषाय सर्वघाती ही हैं किन्तु इन्हें अपेक्षाकृत देशघाती मान लिये जाने से अनन्तानुबंधी आदि कषायों का क्षयोपशम माना जाता है तथा अघाति कर्मों में देशघाति और सर्वघाति रूप विकल्प न होने से उनका क्षयोपशम संभव नहीं है / इस प्रकार से यह क्षयोपशम की सामान्य भूमिका जानना चाहिये। किस-किस कर्म के क्षयोपशम से कौन-कौन से भाव प्रकट होते हैं, उसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है-- प्राभिनिबोधिकज्ञान अर्थात् मतिज्ञान / इस ज्ञान की प्राप्ति का नाम आभिनिबोधिकज्ञानलब्धि है / यह मतिज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशम से प्राप्त होने के कारण क्षायोपशमिकी है। इसी प्रकार श्रुतज्ञानलब्धि, अवविज्ञानलब्धि और मनःपर्यायज्ञानलब्धि तत्तत् ज्ञानावरणकर्म के क्षयोपशम से प्राप्त होने के कारण क्षयोपशमनिष्पन्न हैं / केवलज्ञान और केवलदर्शन भी लब्धिरूप हैं। किन्तु केवलज्ञानावरण और दर्शनावरण कर्म के क्षय से प्राप्त होने के कारण यहाँ उनका उल्लेख नहीं किया है / वे क्षयनिष्पन्नलब्धि हैं। मति-अज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशम से मति-अज्ञान, श्रुत-ज्ञानावरण के क्षयोपशम से श्रुतप्रज्ञान, विभंग-ज्ञानावरण के क्षयोपशम से विभंगज्ञान की प्राप्ति होने से इन्हें क्षायोपशमिकी मत्यज्ञानश्रुताज्ञान-विभंगजानलब्धि कहा है। यहाँ अज्ञान का अर्थ ज्ञान का प्रभाव नहीं किन्तु मिथ्याज्ञान समझना चाहिए। .. भायोपशामिकी चक्षुदर्शनलब्धि, प्रचक्षुदर्शनलब्धि, अवधिदर्शनलब्धि क्रमशः चक्षदर्शनावरण, अचक्षुदर्शनावरण और अवधिदर्शनावरण कर्म के क्षयोपशम से प्राप्त होने के कारण क्षयोपशमनिष्पन्न हैं। सम्यग्दर्शनलब्धि, मिथ्यादर्शनलब्धि, सम्यग्मिथ्यादर्शनलब्धि की प्राप्ति मिथ्यात्वमोहनीय कर्म के क्षयोपशम से होने के कारण क्षयोपशमनिष्पन्न हैं। सामायिक, छेदोपस्थापनीय, परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसंपराय नामक चार चारित्रलब्धियां Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org