________________ आनुपूर्वी निरूपण [133 किन्तु हृदय, पीठ और उदर प्रमाण-विहीन हों, वह कुब्जसंस्थान है। अर्थात् पीठ, पेट आदि में बड हो ऐसा संस्थान कुब्जसंस्थान कहलाता है। 5. वामनसंस्थान--जिस संस्थान में बक्षस्थल, उदर और पीठ लक्षणयुक्त प्रमाणोपेत हों और बाकी के अवयव लक्षणहीन हों, उसका नाम वामनसंस्थान है। यह संस्थान कुब्ज से विपरीत होता है / सामान्य व्यवहार में ऐसे स्थान वाले को बौना या बामनिया कहा जाता है / 6. हुंडसंस्थान -जिस संस्थान में समस्त शरीरावयव प्राय: लक्षणविहीन हों। किन्हीं-किन्हीं प्राचार्यों ने संस्थानों के क्रम में वामन को चौथा और कुब्ज को पांचवां स्थान दिया है / समचतुरस्त्र संस्थान समस्त लक्षणों से युक्त होने से मुख्य है और शेष में यथाक्रम लक्षणों से हीनता होने के कारण अशुभता है / इस प्रकार संस्थानानुपूर्वी की वक्तव्यता पूर्ण हुई / अब शेष रहे दो भानुपूर्वीभेदों में से पहले समाचारी-प्रानुपूर्वी का विचार करते हैं / समाचारो-प्रानुपूर्वीप्ररूपरणा 206. [1] से किं तं सामायारीमाणुपुथ्वी ? सामायारोआणुपुग्वी तिविहा पण्णत्ता / तं जहा-पुन्वाणुपुव्वी 1 पच्छाणुपुच्वी 2 अणाणुयुव्वी 3 / [206-1 प्र.] भगवन् ! समाचारी-यानुपूर्वी का क्या स्वरूप है ? / 206-1 उ.] अायुष्मन् ! ममाचारी-अानुपूर्वी तीन प्रकार की है--१. पूर्वानुपूर्वी 2. पश्चानुपूर्वी, 3. अनानुपूर्वी / [2] से कि तं पुन्वाणुपुब्बी ? पुवाणुपुवी इच्छा 1 मिच्छा 2 तहक्कारो 3 आवसिया 4 य निसीहिया 5 / आपुच्छणा 6 य पडिपुच्छा 7 छंदणा 8 य निमंतणा। उवसंपया य काले 10 सामायारी भवे बसविहा 3 // 16 // से तं पुन्वाणुपुन्वी / [206-2 प्र.] भगवन् ! पूर्वानुपूर्वी का क्या स्वरूप है ? [206-2 उ.] आयुष्मन् ! पूर्वानुपूर्वी का स्वरूप इस प्रकार है 1. इच्छाकार, 2. मिथ्याकार, 3. तथाकार, 4. अावश्यकी, 5. नैषेधिकी, 6. आप्रच्छना, 7. प्रतिप्रच्छना, 8. छंदना, 9. निमंत्रणा, 10. उपसंपद् / यह दस प्रकार की समाचारी है। उक्त क्रम से इन पदों की स्थापना करना पूर्वानुपूर्वी है। [3] से कि तं पच्छाणुपुब्बी ? पच्छाणुपुब्बी उवसंपया 10 जाव इच्छा 1 / से तं पच्छाणुपन्वी / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org