________________ 126] अमुयोगद्वारसूत्र 1200 प्र.] भगवन् ! संग्रहनयसम्मत अर्थपदप्ररूपणता का क्या स्वरूप है ? [200 उ.] आयुष्मन् ! इन पांचों द्वारों का कथन संग्रहनयसम्मत क्षेत्रानुपूर्वी की तरह समझ लेना चाहिये / विशेष यह कि 'प्रदेशावगाढ' के बदले 'स्थिति' कहना चाहिये यावत् इस प्रकार से संग्रहनयसंमत अनीपनिधिको कालानुपूर्वी और अनौपनिधिकी कालानुपूर्वी का वर्णन हुआ। विवेचन--सूत्र में संग्रहनयसंमत अनौपनिधिको क्षेत्रान पूर्वी के अतिदेश द्वारा कालानुपूर्वी के पांच पदों का वर्णन किया है / क्षेत्रानुपूर्वी संबन्धी इन पांच पदों का विस्तार से वर्णन पूर्व में किया गया है / तदनुमार प्रदेशावगाढता के स्थान पर 'समयस्थितिक' पद का प्रयोग करके जैसा-का-तैसा वर्णन यहाँ समझ लेना चाहिये / इस प्रकार से समस्त अनौपनिधिकी कालानपूर्वी का वर्णन करने के अनन्तर अब अल्पवक्तव्य होने से स्थाप्य मानी गई औपनिधिकी कालानुपूर्वी की व्याख्या करते हैं / प्रोपनिधिको कालानुपूर्वी : प्रथम प्रकार 201. [1] से किं तं प्रोवणिहिया कालागुपुन्वी ? ओवणिहिया कालाणुपुब्वी तिविहा पणत्ता। तं जहा-पुन्वाणुपुग्यो 1 पच्छाणुपुग्यो 2 प्रणाणुपुथ्यो 3 / [20 1-1 प्र.] भगवन् ! औपनिधिकी कालानुपूर्वी का क्या स्वरूप है ? [20 1-1 उ. प्रायुष्मन् ! औपनिधिकी कालानुपूर्वी के तीन प्रकार हैं--१. पूर्वानुपूर्वी, 2. पश्चानुपूर्वी और 3. अनानुपूर्वी / [2] से कि तं पुष्वाणुपुष्वी ? पुष्वाणुपुब्धी एगसमयठितीए दुसमयठितीए तिसमयठितीए जाव दससमयठितीए नाव संखेज्जसमयठितीए असंखेज्जसमयठितीए / से तं पुष्याणुपुब्बी। [201-2 प्र.] भगवन् ! पूर्वानुपूर्वी का क्या स्वरूप है ? [201-2 उ. आयुष्मन् ! पूर्वानुपर्वी का स्वरूप इस प्रकार है—एक समय की स्थिति वाले, दो समय की स्थिति वाले, तीन समय की स्थिति वाले यावत् दस समय की स्थिति वाले यावत् संख्यात समय की स्थिति वाले, असंख्यात समय की स्थिति वाले द्रव्यों का अनुक्रम से उपन्यास करने को (ोपनिधिकी) पूर्वानुपूर्वी कहते हैं / [3] से कि तं पच्छाणुपुम्वी ? पच्छाणुपुवी असंखेज्जसमयठितीए जाय एक्कसमयठितीए / से तं पच्छाणुपुख्खी। 1201-3 प्र.] भगवन् ! पश्चानुपूर्वी का क्या स्वरूप है ? [201-3 उ.] आयुष्मन् ! असंख्यात समय की स्थिति वाले से लेकर एक समय पर्यन्त की स्थिति वाले द्रव्यों का-व्युत्क्रम से उपन्यास करना पश्चानुपूर्वी है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org