________________ [अनुयोगद्वारसूब संग्रहनयसम्मत अर्थपदप्ररूपरणता एवं प्रयोजन 116. से कि तं संगहस्स अटुपयपरूवणया? संगहस्स अटुपयपरूवणया तिपएसिया प्राणुपुन्वी चउप्पएसिया प्राणुपुटवी जाव दसपएसिया प्राणुपुवी संखिज्जपएसिया आणुपुव्वी असंखिज्जपएसिया आणुपुत्वी अणंतपदेसिया आणुपुत्वी, परमाणुपोग्गला अणाणुपुव्वी, दुपदेसिया अवतव्वए / से तं संगहस्स अट्ठपयपरूवणया / [116 प्र.] भगवन् ! संग्रहनयसम्मत अर्थपदप्ररूपणता का क्या स्वरूप है ? [116 उ.] आयुष्मन् ! संग्रहनयसम्मत अर्थपदप्ररूपणता का स्वरूप इस प्रकार हैत्रिप्रदेशिक स्कन्ध आनुपूर्वी है, चतुष्प्रदेशी स्कन्ध आनुपूर्वी है यावत् दसप्रदेशिक स्कन्ध अानुपूर्वी है, संख्यातप्रदेशिक स्कन्ध अानुपूर्वी है, असंख्यातप्रदेशिक स्कन्ध अानुपूर्वी है, अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध प्रानुपूर्वी है / परमाणुपुद्गल अनानुपूर्वी हैं और द्विप्रदेशिक स्कन्ध प्रवक्तव्यक है / संग्रहनयसम्मत अर्थपदप्ररूपणता का यह स्वरूप है। विवेचन--संग्रहनय की दृष्टि से यह अर्थपदप्ररूपणता है। इसमें और पूर्व की नंगम-व्यवहारनयसम्मत अर्थपदप्ररूपणता में यह अन्तर है कि नैगम-व्यवहारनय की अपेक्षा एक त्रिप्रदेशिक स्कन्ध एक प्रानुपूर्वीद्रव्य है और अनेक त्रिप्रदेशिक स्कन्ध अनेक प्रानुपूर्वीद्रव्य हैं। इस प्रकार एकत्व और अनेकत्व दोनों का निर्देश किया है। यह कथन अनन्तप्रदेशी स्कन्ध पर्यन्त जानना चाहिये। किन्तु संग्रहनय सामान्यवादी है और उसके अविशुद्ध एवं विशुद्ध यह दो प्रकार हैं / अतएव सामान्यवादी होने से अविशुद्ध संग्रहनय के मतानुसार समस्त त्रिप्रदेशिक स्कन्ध एक ही पानुपूर्वी है, क्योंकि सभी त्रिप्रदेशिक स्कन्ध यदि वे अपने त्रिप्रदेशित्व रूप सामान्य से भिन्न हैं तो द्विप्रदेशिक प्रादि स्कन्ध की तरह वे त्रिप्रदेशिक स्कन्ध नहीं कहला सकते हैं और यदि त्रिप्रदेशिकत्व रूप सामान्य से वे अभिन्न हैं तो वे सभी त्रिप्रदेशी स्कन्ध एक रूप ही हैं। इसी कारण सभी विप्रदेशिक स्कन्ध एक ही आनुपूर्वी है, अनेक प्रानुपूर्वीद्रव्य नहीं हैं। इसी प्रकार चतुःप्रदेशिक स्कन्ध से लेकर अनन्ताणुक स्कन्ध तक सब स्वतन्त्र, स्वतन्त्र भिन्नभिन्न चतुष्प्रदेशी आदि पानुपूर्वी हैं / उक्त दृष्टि अविशुद्ध संग्रहह्नय की है। परन्तु विशुद्ध संग्रहनय के मतानुसार त्रिप्रदेशिक स्कन्ध से लेकर अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध पर्यन्त के स्कन्धों की जितनी भी आनुपूर्वियां हैं, वे सब मानुपूवित्व रूप सामान्य से अभिन्न होने के कारण एक ही प्रानुपूर्वी रूप हैं। इसी प्रकार अनानुपूर्वी और प्रवक्तव्यक के लिये समझना चाहिये कि अनानुपूवित्व रूप सामान्य से अभिन्न होने के कारण समस्त परमाणुपुद्गल रूप अनानुपूर्वियां एक ही अनानुपूर्वी हैं। प्रवक्तव्यकत्व रूप सामान्य से अभिन्न होने के कारण समस्त द्विप्रदेशिक स्कन्ध भी एक अवक्तव्यक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org