________________ [अनुयोगद्वारसूत्र संग्रहनयसम्मत भागप्ररूपणा 126. संगहस्स आणुपुत्वीदवाई सेसद वाणं कतिभागे होज्जा ? कि संखेज्जतिभागे होज्जा ? असंखेज्जतिभागे होज्जा ? संखेज्जेसु भागेसु होज्जा? असंखेज्जेसु भागेस होज्जा? / .. नो संखेज्जतिभागे होज्जा नो असंखेज्जतिभागे होज्जा णो संखेज्जेसु भागेस होज्जा गो असंखेज्जेसु भागेसु होज्जा, नियमा तिभागे होज्जा / एवं दोणि वि। [129 प्र.] भगवन् ! संग्रहनयसम्मत आनुपूर्वीद्रव्य शेष द्रव्यों के कितनेवें भाग प्रमाण होते हैं ? क्या संख्यात भाग प्रमाण होते हैं या असंख्यात भाग प्रमाण होते हैं ? संख्यात भागों प्रमाण अथवा असंख्यात भागों प्रमाण होते हैं ? [129 उ.] आयुष्मन् ! संग्रहनयसम्मत प्रानुपूर्वीद्रव्य शेष द्रव्यों के संख्यात भाग, असंख्यात भाग, संख्यात भागों या असंख्यात भागों प्रमाण नहीं हैं, किन्तु नियमत: तीसरे भाग प्रमाण होते हैं / इसी प्रकार दोनों (अनानुपूर्वी और अवक्तव्यक) द्रव्यों के विषय में भी समझना चाहिये / विवेचन-सूत्र में भागप्ररूपणा का प्ररूपण किया। प्राशय यह है कि संग्रहनयमान्य समस्त प्रानुपूर्वी आदि द्रव्यों में से आनुपूर्वीद्रव्य नियम से शेष द्रव्यों के विभाग प्रमाण हैं। क्योंकि अनानुपूर्वी और अवक्तव्यक द्रव्यों को मिलाकर जो राशि उत्पन्न होती है, उस राशि के तीन भाग करने पर जो तृतीय भाग आये तत्प्रमाण आनुपूर्वीद्रव्य हैं। क्योंकि यह तीन राशियों में से एक राशि है / इसी प्रकार अनानुपूर्वी और अवक्तव्यक द्रव्यों के लिये जानना कि वे भी तीसरे-तीसरे भाग प्रमाण हैं। संग्रहनयसम्मत भावप्ररूपरणा 130. संगहस्स आणुपुवीदव्वाई कयरम्मि भावे होज्जा ? नियमा सादिपारिणामिए भावे होज्जा / एवं दोणि वि / अप्पाबहुं नत्थि / से तं अणुगमे। से तं संगहस्स अणोवणिहिया वन्वाणुपुत्री / से तं अणोवणिहिया दव्वाणुपुवी। [130 प्र.] भगवन् ! संग्रहनयसंमत प्रानुपूर्वीद्रव्य किस भाव में होते हैं ? [130 उ.] आयुष्मन् ! प्रानुपूर्वीद्रव्य नियम से सादिपारिणामिक भाव में होते हैं / यही कथन शेष दोनों (अनानुपूर्वी और प्रवक्तव्यक) द्रव्यों के लिये भी समझना चाहिये। राशिगत द्रव्यों में अल्पबहुत्व नहीं है / यह अनुगम का वर्णन है / इस प्रकार से संग्रहनयसम्मत अनौपनिधिको द्रव्यानुपूर्वी का कथन पूर्ण हुन्ना और साथ ही अनौपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी की बक्तव्यता भी पूर्ण हुई। विवेचन-सूत्रार्थ स्पष्ट है / संवन्धित विशेष वक्तव्य इस प्रकार है आनुपूर्वी आदि राशिगत द्रव्यों में अल्पबहुत्व नहीं है। क्योंकि संग्रहनय की दृष्टि से पानपूर्वी प्रादि द्रव्यों में अनेकत्व नहीं है, सभी एक-एक द्रव्य हैं। जब अनेकत्व नहीं, सभी एक-एक हैं तो उनमें अल्पबहुत्व कैसे संभव होगा? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org