________________ आनुपूर्वी निरूपण] प्रदेशावगाही होने के कारण एक हैं / क्षेत्रानुपूर्वी में लोक के ऐसे त्रिप्रदेशात्मक विभाग असंख्यात हैं / इसलिये आनुपूर्वी द्रव्य भी तत्तुल्य संख्या वाले होने के कारण असंख्यात होते हैं। इसी प्रकार प्रानुपूर्वी द्रव्य की तरह अनानुपूर्वी और प्रवक्तव्यक द्रव्य भी असंख्यात हैं। तात्पर्य यह है कि लोक के एक-एक प्रदेश में अवगाही अनेक द्रव्य क्षेत्र की अपेक्षा एक ही अनानुपूर्वी रूप हैं और असंख्यात इसलिये हैं कि लोक असंख्यातप्रदेशी है और लोक के एक-एक प्रदेश में ये एकएक रहते हैं तथा दो प्रदेशों में स्थित बहुत भी द्रव्य क्षेत्र की अपेक्षा प्रवक्तव्यक द्रव्य हैं। क्योंकि अाकाश के दो प्रदेश रूप विभाग असंख्यात होते हैं, इसलिये अाधार की अपेक्षा तदवगाही द्रव्य भी असंख्यात हैं। क्षेत्रानुपूर्वी को अनुगमान्तर्वर्ती क्षेत्रप्ररूपणा 152. [1] गम-ववहाराणं खेत्ताणुपुम्बीदवाई लोगस्स कतिभागे होज्जा ? कि संखिज्जइभागे वा होज्जा? असंखेज्जहभागे वा होज्जा ? जाव सम्वलोए वा होज्जा ? एगदन्वं पडुच्च लोगस्स संखेज्जइभागे वा होज्जा असंखेज्जइभागे वा होज्जा संखेज्जेसु का भागेसु होज्जा असंखेज्जेसु वा भागेसु होज्जा देसूणे वा लोए होज्जा, णाणादब्वाई पडुच्च णियमा सम्वलोए होज्जा। |152-1 प्र.| भगवन् ! नेगम-व्यवहारनयसंमत क्षेत्रानुपूर्वी द्रव्य लोक के कितने भाग में रहते हैं ? क्या संख्यातवें भाग में, असंख्यातवें भाग में यावत् सर्वलोक में रहते हैं ? [152-1 उ.] आयुष्मन् ! एक द्रव्य की अपेक्षा लोक के संख्यातवें भाग में, असंख्यातवें भाग में. संख्यातभागों में, असंख्यातभागों में अथवा देशोन लोक में रहते हैं, किन्तु विविध द्रव्यों की अपेक्षा नियमत: मर्वलोकव्यापी हैं। [2] अणाणुपुचीदवाणं पुच्छा, एग दव्वं पडुच्च नो संखिज्जतिभागे होज्जा असंखिज्जतिभागे होज्जा नो संखेज्जेसु० नो असंखेज्जेसु० नो सम्वलोए होज्जा, नाणादवाइं पडुच्च नियमा सवलोए होज्जा। | 152-2 प्र. | नँगम-व्यवहारनयसंमत अनानुपूर्वी द्रव्य के विषय में भी यही प्रश्न है। [152-2 उ.] यायुष्मन् ! एक द्रव्य की अपेक्षा संख्यातवें भाग में, संख्यात भागों में, असंख्यात भागों में अथवा सर्वलोक में अवगाढ नहीं है किन्तु असंख्यातवें भाग में है तथा अनेक द्रव्यों की अपेक्षा सर्वलोक में व्याप्त हैं। [3] एवं अवत्तव्वगदम्वाणि वि भाणियवाणि / |3] प्रवक्तव्यक द्रव्यों के लिये भी इसी प्रकार जानना चाहिये। विवेचन -सूत्र में एक और अनेक द्रव्यों की अपेक्षा क्षेत्रानुपूर्वी के द्रव्यों की क्षेत्रप्ररूपणा की है। उसका प्राशय यह है--एक आनुपूर्वी द्रव्य द्रव्य की अपेक्षा तो लोक के संख्यातवें या असंख्यातवें भाग में, संख्यात भागों या असंख्यात भागों में रहता है और देशोन लोक में भी रहता है / इसका कारण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org