Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्रे
प्रतिग्रहेण प्रतिलाभयन् सत्कारयन् संमानयन् यावद् विहरति- विचरति । ततस्तदनन्तरं खलु स शुकः परिवाजकः सौगन्धिकाया नगर्यां निर्गच्छति, निर्गत्य च बहिर्जनपदविहारं विहरति करोतिस्म ।। १९ ॥
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मूलम् - तेणं कालेणं तेणं समएणं थावच्चापुत्तस्स समोस - रणं, परिसा निग्गया सुदंसणो विणिग्गओ, थावच्चापुत्तं वंदइ नमसइ वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी तुम्हाणं किं मूलए धम्मे पन्नत्ते ? तणं थावच्चापुत्ते सुदंसणेणं एवं वुत्ते समाणे सुदंसणं एवं वयासी - सुदंसणा अम्हाणं विणयमूले धम्मे पन्नत्ते सेवि वि दुविपन्नत्ते तं जहा - अगारविणए अणगार विणए य, तत्थ णं जे से अगारविणए से णं चत्तारि अणुव्वयाई सत्त सिक्खावयाई, एक्कारस उवासगपडिमाओ । तत्थणं जे से अणगारविणए से णं चत्तारि महाव्वयाई, तं जहा - सव्वाओ पाणाइवायाओ वेरमणं सव्वाओ मुसावायाओ वेरमणं सव्वाओ अंगीकार करके उन्होंने फिर अशन पान, खाद्य और स्वाद्यरूप चारों प्रकार के आहार से और वस्त्र के प्रदान से उस शुक परिव्राजक को लाभान्वित किया सत्कारित किया, सन्मानित किया । ( तरणं से सुए परिव्वायगे सोगंधियाओ नयरीओ निग्गच्छइ निग्गच्छित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ ) इसके बाह वह शुक परिव्राजक सौगंधिका नगरी से निकला और निकल कर बाहर अन्य देशों की ओर बिहार कर गया । " सू-१९
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रइ ) शौथ भूल धर्म स्वीहारीने तेभले शुद्ध परित्राने अशन, पान, मद्य અને સ્વાદ્ય રૂપ ચારે પ્રકારના આહાર તેમજ વસ્ત્રો અર્પીને લાભાન્વિત ક भने सन्मान ड्यु . (तरण से सुए परिव्वायगे सोगंधियाओ नयरीओ निग च्छ, निम्गच्छित्ता बहिया जणवपविहार विहरइ ) त्यार पछी शु परिवा સૌગ'ધિકા નગરીથી બહારના ખીજા દેશ તરફ વિહાર કરવા નીકળ્યા પાસૢ૦૧૯મા
શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્ર : ૦૨