Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 800
________________ ७८६ ज्ञाताधर्मकथाङ्गस्त्रे " कृत्वा शरीरं व्युत्सृजति - परित्यजति, भगवानाह - हे गौतम! ततस्तदनन्तरं खलु स दर्द रः कालमा से कालं कृत्वा यावत्-सौधर्म कल्पे 'दद्दुर वर्डिसए विमाणे' दर्दुरावतंस के विमाने = ददुरदेवतया ' उवबन्ने' उपपन्नः - उपपातं - जन्म प्राप्त इत्यर्थः । दर्दुरचरितमुक्त्वा भगवान् महावीरः स्वामी माह एवं खलु गोयमा !" इत्यादि । हे गौतम ! एवं खलु ददुरेण सा दिव्या देवर्द्धि लब्धा उपार्जिता प्राप्ता स्वयत्तीकृताऽभिसमन्वागता - सम्यक् सेविता । गौतमः पृच्छति - ' दहुरस्स इत्यादि | दर्दुरस्य खलु देवस्य हे भदन्त ! कियत्कालपर्यन्तं स्थितिः प्रज्ञप्ता ? है कि जिस के प्रति मेरी यह धारणा रहती थी, कि इसे कोई भी रोगातंक स्पर्श न करें उसको भी मैं अन्तिम श्वासों तक ममत्व भावसे रहित होकर छोड़ता हूँ । इस प्रकार करके उसने सब का परित्याग कर दिया । (तरण से ददुरे कालमासे कालं किच्चा जाब सोहम्मे कप्पे दरवर्डिस विमाणे उववायसभाए ददुरदेवत्ताए उबवन्ने एवं खलु गोयमा ! ददुरेण सा दिव्वा, देविड्डी, लद्धा पत्ता अभिसमन्ना गया ) इसके बाद वह दर्दुर काल अवसर काल करके यावत् सौधर्म कल्प में दर्दुरावतंसक विमान में उपपात सभा में दर्दुर देवता की पर्याय से उत्पन्न हो गया। इस प्रकार दर्दुर का चरित्र कहकर भगवान् महावीर स्वामी ने गौतम से कहा कि हे गौतम! इस प्रकार से उस दर्दुर देव ने वह दिव्य देवर्द्धि उपार्जित की है, अपने आधीन की है और उसे अपने भोगके योग्य बनाई है। अब गौतम श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से पुनः पूछते हैं कि - ( ददुरस्स णं भंते! देवरस केवइयकालं ठिईपण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि पलिओमाई ठिई રાગ અને આંતક સ્પ કરે નહિ–તેને પણ હું મમત્વ વગર થઇને છેલ્લી પળ સુધી ત્યજું છું. આ રીતે વિચાર કરીને તેણે બધી વસ્તુઓને ત્યજી દીધી. (तरणं से ददुरे कालमासे कालं किच्चा जाव सोहम्मे कप्पे ददुवडिस विमाणे उबवायसभाए ददुरदेवत्ताए, उजबन्ने एवं खलु गोयमा ! ददुरेण सा दिव्वा, देवडी, लद्धा, पत्ता अभिसमन्नागया ) त्यारणा ते उसे अपना समये अज કરીને ચાવતા સૌધ કલ્પમાં દૃરાવત સક વિમાનમાં ઉપપાત સભામાં દર દેવતાના પર્યાયથી ઉત્પન્ન થયા. આ રીતે દેડકાના ચરિત્ર વિશે વર્ણન કરીને ભગવાન મહાવીર સ્વામીએ ગૌતમને કહ્યું કે હે ગૌતમ! આ રીતે તે દુર દેવે તે દિવ્યદેવધિ મેળવી છે, તેને સ્વાધીન બનાવી છે અને તેને તે ભાગવવાને લાયક બનાવી છે. હવે શ્રમણ ભગવાન મહાવીરને ગૌતમ ફરી પૂછે छे ( ददुरस्स णं भंते! देवरस केवइयकाल ठिइ पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્ર : ૦૨

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