Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 801
________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणी टीका अ०१३ नन्दमणिकारभवनिरूपणम् ७८७ भगवानाह - हे गौतम! दर्दुरस्य खलु देवस्य चत्वारि पल्योपमानि स्थितिः प्रज्ञप्ता । पुन गौतमः पृच्छति - ' सेणं' इत्यादि स खलु हे भदन्त ! ददुरो देवस्तस्माद् देवलोकाद् आयुः क्षयेण भक्षयेण स्थिति क्षयेण चयं त्यक्त्वा कुत्र गमिष्यति ? कुत्र उत्पत्स्यते = उपपातं - जन्म प्राप्स्यति ? | भगवान् कथयति - ' गोयमा ! ' इत्यादि । हे गौमत ! स खलु दर्दरोदेवः आयुः क्षयेण भवक्षयेण स्थितिक्षयेण देवलोका च्च्युतः सन् महाविदेहे वर्षे जन्म प्राप्य सेत्स्यति भोत्स्यति मोक्ष्यति परिनिर्वा स्यति सर्वदुःखानामन्तं करिष्यति च । पण्णत्ता, से णं भंते! दद्दुरे देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं चयं चहत्ता कहिं गच्छिहिइ ? ) हे भदंत ! दर्दुरदेव की वहां कितनी स्थिति हुई है ? प्रभु कहते हैं कि हे गौतम । चार पस्योपम की स्थिति उसकी वहां हुई है। पुनः गौतम उनसे पूछते हैं कि हे भदन्त ! वह दर्दुर देव वहां से उस देवलोक से - आयु के क्षय भवके क्षय एवं स्थिति के क्षय हो जाने पर शरीर का देव संबन्धी शरीर का परित्याग कर कहां जावेगा ( कर्हि उववज्जिहि ) कहां पर जन्म धारण करेगा ? इस प्रश्न का उत्तर भगवान् ने उन्हें इस प्रकार दिया - (गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ, बुज्झिहिर, मुच्चि हि, परिनिव्वाहि सव्वदुक्खाणं अंतं करेहिइय ) गौतम ! वह दर्दुर देव आयु के क्षय से, भव के क्षय से एवं स्थिति के क्षय से देवलोक से चवकर महाविदेह क्षेत्र में जन्म प्राप्तकर वहीं से सिद्ध होगा, विमल केवल लोक से सकल लोकालोक का ज्ञान होगा, समस्त कर्मों से मुक्त - पलिओ माई ठिई पण्णत्ता से णं भंते! ददुरे देवे ताओ देव लोगाओ आउकखण भवक्खणं ठिइक्खएणं चयं चत्ता कहिं गच्छिहिइ ? ) हे लहन्त ! त्यां दृहुरे દેવની કેટલી સ્થિતિ થઇ છે ? પ્રભુ કહે છે કે હે ગૌતમ ! તેની ચારપક્ષેપમ જેટલી સ્થિતિ થઈ છે. ગૌતમ ફી તેઓશ્રીને પૂછે છે કે હે ભદન્ત ! તે દર દેવ ત્યાંથી-તે દેવલાકમાંથી-આયુષ્યના ક્ષય, ભવના ક્ષય, તેમજ સ્થિતિના ક્ષય थया माह शरीरने - देवसमधी शरीरने त्यकने या शे ? ( कहिं उज्जिहि ) કર્યાં જન્મ પ્રાપ્ત કરશે ? ભગવાને આ પ્રશ્નને જવાબ આ પ્રમાણે આપ્યા કે ( गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ, बुज्झिहिइ, मुच्चिदिइ, परिनिव्वाहिइ, दुक्खा अंत करेहि य) हे गौतम! ते हद्दुर देव आयुण्पना क्षय थया माह, ભવના ક્ષય થયા બાદ, અને સ્થિતિના ક્ષય થયા બાદ દેવલેાકથી ચવીને મહાવિદેહ ક્ષેત્રમાં જન્મ પ્રાપ્ત કરીને ત્યાંથી જ સિદ્ધ થશે. મિલ-કેવલ લેાકથી सव्व શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્ર : ૦૨

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