Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 764
________________ ७५० ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्रे अशनम् ४ चतुर्विधमाहारम् उपस्कुर्वन्ति । बहूनां श्रमणब्राह्मणातिथिकृपणवनीपकानां-परिभाजयन्तः २=विभागं कुर्वन्तः, परिवेषयन्तश्च विहरन्ति । ततः खलु नन्दी मणिकारश्रेष्ठी 'पच्चथिमिल्ले' पाश्चात्ये पश्चिमदिग्भागस्थे, क्नषण्डे एका महतीं 'तेगिच्छियसालं' चिकित्साशालां-रोगापनयनशाला ' करावेइ ' कारयति, किंभूताम्-अनेकस्तम्भशतसंनिविष्टां यावत्-प्रतिरूपां, तत्र-तस्यां पारिश्रमिक रूप में भृति, भक्त और वेतन दिया जाता था। ये ४ चारों प्रकार का आशनादि रूप आहार उसमें बनाया करते थे। अनेक श्रमण ब्राह्मण, अतिथि एवं वनीपकोंको-याचकोंको यहांसे भोजन दिया जाता था। कोई २ वही खाते थे और कोई कोई अपने विभागको ले जाते थे। (तएणं गंदे मणियारसेट्ठी पच्चथिमिल्ले वणसंडे एग मह तेणिच्छियसालं करावेइ, अणेगखंभसयसंनिविढे जाव पडिरूवं, तत्थ ण बहवे वेजा य वेज्जपुत्ता य जाणुया य जाणु य पुत्ता य कुसला य कुसल पुत्ता य दिनभइमत्तवेयणा बहण हियावाण य गिलाणाण य रोगियाण य दुबलाण य तेइच्छं करेमागा २ विहरंति, अण्णे य एत्थ बहवे पुरिसा दिनभइभत्तवेयणा तेसि बहूण वाहियाण य रोगियाण य गिला णाण य दुब्बलाण य ओसहभेसज्जभत्तपाणेण पडियारकम्मं करेमाणा २ विहरंति ) इस के बाद उस नंद माणिकार श्रेष्ठी ने पश्चिम दिशा सम्बन्धी वनषंड में एक बड़ी भारी चिकित्साशाला-औषधालय-बनवाई। यह भी सेंकड़ों खंभों के ऊपर खड़ी की गई थी। बहुत ही सु. પિતાના મહેનતાણા બદલ ભતિ, ભક્ત અને વેતન (પગાર ) આપવામાં આવતું હતું. ચારે જાતના અશન વગેરે આહાર તેમાં બનાવતાં હતા. ઘણા શ્રમણો બ્રાહ્મણો, અતિથિઓ અને વની પકે-યાચનારાઓ-ને ત્યાંથી ભેજન આપવામાં આવતું હતું. તેમાંથી કેટલાક તે ત્યાં જ જમી લેતા હતા અને કેટલાક पोतार्नु मा oral al. (तएणं गंदे मणियार सेट्ठी पञ्चस्थिमिल्ले वणसडे एग मह तेणिच्छियसाल करावेह, अणेगखंभसयस निविढे जाव पडिरूवं, तत्थणं बहवे वेज्जा य वेज्जपुत्ताय जाणुयाय जाणुयपुत्ताय कुसुलाय कुसलपुत्ताय दिन्न भइ. मत्तवेयणा बहूण बाहियाण य गिलाणाण य रोगियाण य दुब्बलाण य ते इच्छं करेमाणा २ विहरति; अण्णे य एत्थ बहवे पुरिसा दिनभइभत्तवेयणा तेसिं बहणं वाहियाण य रोगियाण य गिलणाणा य दुब्बलण य ओसहभेसज्ज भत्तपाणेणं पडियार कम्मं करेमाणा२ विहरति) त्या२मा ते मारा।२२ पश्चिम हिशाना बनषमा એક બહ વિશાળ પાયા ઉપર ચિકિત્સા શાળા ( દવાખાનું) બનાવડાવી. એ પણ સેકડે થાંભલાઓથી ઊભી કરવામાં આવી હતી તેમજ ખૂબ જ રમણીય શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૨

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