Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

Previous | Next

Page 769
________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणी टी० अ० १३ नन्दमणिकारभवनिरूपणम् ७५५ य सयणेसु य सन्निसन्नो य संतुयहो य पेच्छमाणो य साहेमाणो य सुहंसुहेणं विहरइ, तं धन्ने कयत्थे कयपुन्ने कयाणंदे लोए। सुलद्धे माणुस्सए जम्म-जीवियफले नंदस्त मणियारस्स, तएणं रायगिहे सिंघाडग जाव वहुजणो अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ ४ धन्ने णं देवाणुपिया ! णंदे मणियारे सो चेव गमओ जाव सुहंसुहेणं विहरइ । तएणं से गंदे मणियारे बहुजणस्स अंतिए एयम सोच्चा णिसम्म हट्ठतुहे धाराहयकलंबगंपिब समूसियरोमकूवे परं सायासोक्खमणुभवमाणे विहरइ ॥ सू०५॥ टीका-तएणं णंदाए' इत्यादि । ततस्तदनन्तरं खलु नन्दायां पुष्करिण्यां बहुजना — हायमाणो य' स्नानं कुर्वन् 'पीयमाणोय' पिबन् पानीयं च संवह तएणं णदाए पोक्खरिणीए' इत्यादि। टीकार्थ-(तएणं) इसके बाद (णंदाए पोक्खरिणीए पहायमाणा य पियमाणो य पाणियंच संवहमाणो य बहुजणो अण्णमण्णं एवं वयासीधंण्णे णं देवाणुप्पिया! गंदे मणियारसेठी कयत्थे जाव जम्मजीवियफले जस्सणं इमेया रूवा गंदा पोक्खरणी चाउकोणा जाव पडि रूवा, जिस्साणं पुरथिमिल्ले तं चेव सव्वं चउसु वि वणसंडेसु जाव रायगिह विणिग्गओ जत्थ बहुजणो आसणेप्नु य सयणेसु य सन्नि मन्नो य संतुयहो य पेच्छमाणा य सोहेमाणो य सुहं सुहेणं विहरइ ) उस नंदा पुष्करिणी में स्नान करने वाला पानी पीनेवाला और उस में से पानी 'तएणं णंदाए पोक्खरिणीए' इत्यादि साथ-(तएण) त्या२६ (णंदाए पोक्खरिणीए व्हायमाणो य, पियमाणो य पाणियं च सवहमाणो य बहुजणो अण्णमण्ण एवं वयासी धण्णे णं देवानुप्पिया ! गंदे मणियारसेट्ठी कयत्थं जाव जम्मजीवियफले जस्सणं इमेयास्व णदा पोख. रणी चाउकोणा जाव पडिरूवा, जिस्साणं पुरथिमिल्ले त चेव सव्वं चउसु वि वण. मंडेसु जाव रायगिह विणिग्गओ जत्थ बहुजणो आसणेसु य सयणेसु य सन्निसन्नो य संतुयट्टो य पेच्छमाणो य सोहेमाणो य सुह सुहेण विहरइ) तेन Y०४शिक्षा (वा) मा स्नान ४२ना२, पाणी पीना, मने तेमाथी पाणी सरनार, ४३४ દરેક માણસ પરસ્પર આ પ્રમાણે વાત કરવા લાગ્યા કે હે ભાઈ! મણિયાર શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૨

Loading...

Page Navigation
1 ... 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841 842 843 844 845 846