Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 796
________________ ७८२ ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्रे चपलया-शरीरचापल्येन युक्तया, चण्डया-तीव्रया, अतएव शीध्रया, उद्धृतयाअशेष शरीरावयवकम्पवत्या, जयिन्या अन्यदर्दु रंगतिजेच्या, छकया-अपायपरिहारे निपुणया, दर्दु रंगत्या-मण्डूकगत्या 'वीइवयमाणे' व्यतिव्रजन् २-महावेगेन गच्छन् २, यौव ममान्तिकं तव प्राधारयद् गमनाय गन्तुं प्रवृत्तः । अस्मिन्नेव समये उद्यानरक्षकमुखान्ममागमनं श्रुत्वा श्रेणिको राजा भंभसारः = भंभसारापरनामकः, स्नातः कृतकौतुकमङ्गलप्रायश्चितः सर्वालंकारविभूषितः, जो उत्कर्ष होता है वह उस उत्कर्ष से युक्त थी । उस मेंढक के मन में बड़ी भारी उत्सुकता थी-सो उस उत्सुकता से वह गति भरी हुई थी-इस कारण वह उस की गति त्वरित थी। शरीर की चपलता से युक्त होने के कारण, तीव्र होने के कारण, शीघ्रता से युक्त होने के कारण, समस्त शारीरिक अवयवों के कंपन से युक्त होने के कारण अन्य साधारण दर्दुरों की गति की अपेक्षा विशिष्ट होने के कारण, और अपायों को बचा २ कर चलने के कारण वह गति क्रमशः चपल चण्ड, शोघ्र उधुत, जयनी, और छेक इन विशेषणों वाली थी । इमं च ण सेणिए राया भभसारे पहाए कयकोउयमंगलपायच्छित्ते सव्वालंकारविभूसिए, हस्थि खंधवरगए सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेण धरिज्ज माणेणं सेयवरचामराहिं उधुव्वमाणाहिं हयगयरहमहया भडचडगरकलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धिं संपडिबुडे मम पायवंदए हव्वमागच्छइ ) इसी समय उद्यान रक्षक के मुख से मेरा आगमन सुनकर " भभसार" इस अपर नाम वाले श्रेणिक राजा मेरी वंदना હતી. તે દેડકાના મનમાં ભારે ઉત્સુકતા હતી તેની ગતિમાં ઉત્સુકતાને લીધે જ ત્વરા આવી ગઈ હતી. શરીરની ચપળતાથી યુકત હોવા બદલ, તીવ્ર હોવા બદલ, શીઘતા યુક્ત હોવા બદલ, શરીરના બધા અવયના કંપનથી યુક્ત હેવા બદલ, બીજા સાધારણ દેડકાઓ ગતિ કરતાં વિશિષ્ટતા યુક્ત હોવા બદલ અને અપાયે (આફત) થી સાવધ થઈને ચાલવા બદલ તે ગતિ ક્રમશઃ ચપળ, ચંડ, શીવ્ર, ઉદધુત, જયની અને છેક આ વિશેષણોવાળી હતી. ( इम चण सेणिएराया भभसारे पहाए कयकोउयभंगलपायच्छित्ते सव्वालंकारविभूसिए, हत्यिखंघबरगए सकोरंटमल्लदामेण छत्तेणं धरिजमाणेण सेयवर चामराहिं उधुव्वमाणाहि हयगयरहमया भड़चडगरकालियाए चाउर'गिणीए सेणाए सद्धिं संपडिबुडे मम पायवंदए हव्वमागच्छइ) त मते धान २१ना મુખથી મારા આગમનની વાત સાંભળીને ‘ભંસાર” એ બીજા નામવાળા શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૨

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