Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 771
________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणी टी० अ० १३ नन्दमणिकारभवनिरूपणम् ७५७ रस्य श्रेष्ठिनः, अत्र सम्बन्धसामान्ये षष्ठी । एव राजगृहविनिर्गतोबहुजनस्तत्रस्थितो वदतीत्यर्थः। ततस्तदनन्तरं खलु राजगृहे नगरे 'सिंघाडग जाव बहुजणो' शृङ्गाटकादियावन्महापथपथेषु बहुजनः, अन्योन्यस्य-परस्परं, एवमाख्याति, भाषते, मज्ञापयति, प्ररूपयति । किमाख्यातीत्याह-हे देवानुप्रिय ! धन्यः खलु नन्दोमणिकारः 'सो चेव गमओ' स एव गमकः अत्र पूर्वोक्त एव पाठो वाच्यः, कृतार्थः कृतपुण्यः, यावत्-सुलब्ध जन्मजीवितफलं, यस्य खलु इयमेतदूपा नन्दा पुष्करिणी चतुष्कोणा यावत् प्रतिरूपा वर्तते, यावत्-बहुजनः-मुखमुखेन विहरति । ततः रायगिहे सिंघाडग जाव बहुजणो अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ ४ धन्ने णं देवाणुप्पिया ! गंदे मणियारे सो चेव गमओ जाव सुहं सुहेणं विहरइ, तएणं से गंदे मणिधारे बहुजणस्ल अंतिए एयमढे सोच्चा णिसम्म हतुढे धाराहयकलंबगं पिय समूसिय रोमकूवे परं साया सोक्ख मणुभवमाणे विहरइ ) इस लिये नंद मणिकार श्रेष्टी विशेष रूप से धन्य बादाह है । विशिष्ट पुण्यशाली है । और विशिष्ट आनंद का भोक्ता है। इस लोक में मनुष्य जन्म और जीवन का फल इस ने प्राप्त कर लिया है। इसी तरह की राजगृह नगर के शृंगाटक आदि महा मार्गों पर खड़े होकर अनेक जन परस्पर में बात चीत्त किया करते, परस्पर में संभाषण करते, प्रज्ञापना करते और प्ररूपणा करते रहते-वे कहते-हे भाई! नंद मणिकार श्रेष्ठी को धन्यवाद हैं, वह कृतार्थ है, कृत पुण्य है । उसी ने अपने मनुष्य भव संबंधी जन्म और जीवन को पा लिया है-जिस ने यह इतनी सुन्दर चार कोन वाली नंदा पुष्करिणी बनवाई है । जहां अनेक जन सुख पूर्वक विचरण करता है । इत्यादि पहिले का मणियारे सोचेव गमओ जाव सुहं सुहेणं विहरइ, तएणं से गंदे मणियारे बहुजणस्स अंतिए एयमई सोचा णिसम्म हतुठे धाराहयकलंबगं पिब समूसिय रोमकूवे पर साया सोक्खमणुभवमाणे विहरइ ) मेथी न મણિયાર ખરેખર સવિશેષ ધન્યવાદને ગ્ય છે. તે વિશિષ્ટ પુણ્યશાળી છે અને વિશિષ્ટ આનંદને ઉપભોગ કરનાર છે. આ લેકમાં મનુષ્ય જન્મ અને જીવનનું ફળ તેણે સંપૂર્ણપણે મેળવી લીધું છે. આ રીતે જ રાજગૃહ નગરના અંગાટક વગેરે રાજમાર્ગો ઉપર ઊભા રહીને ઘણા માણસે પરસ્પર વાત કરતા હતા. સંભાષણ કરતા હતા, પ્રજ્ઞાપના કરતા હતા અને પ્રરૂપણા કર્યા કરતા હતા. તેઓ કહેતા કે હે ભાઈ! નંદ મણિકાર શેઠને ધન્ય છે, તે ખરેખર કૃતાર્થ મનુષ્યભવ સંબંધી જન્મ અને જીવનને સફળ બનાવ્યાં છે. તેણે કેટલી સરસ નંદા નામે ચાર ખૂણાવાળી વાવ બંધાવી છે. ત્યાં ઘણું માણસે સુખેથી શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૨

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