Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 763
________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणी टी० अ० १३ नन्दमणिकारभवनिरूपणम् ७४९ रिणीए बहवे सणाहा य अणाहा य पंथिया य करोडिया य कप्पडिया य तणहारा य पत्तहारा य कट्ठहाराय अप्पेगइया पहायंति अप्पेगइया पाणियं पियंति, अप्पेगइया पाणियं संवहंति अप्पेगइया विसज्जिय सेय जलमल परिस्समनिदखुप्पिवासा सुहं सुहेणं विहरति । रायगिहविणिग्गओ वि जत्थ बहुजणो किं ते जलरमणत्रिविमज्जणकर्याललयाघरय कुसुमसत्थरय अणेग सउणगणरुपरिभियसंकुलेसु सुहंसुहेणं अभिरममाणो २ विहरइ ॥ सू० ४ ॥ टीका- 'तणं गंदे ' इत्यादि । ततः खलु नन्दः श्रेष्ठी दाक्षिणात्ये वनषण्डे एकां महतीं महानसशालां पाकशालां कारयति । कीदृशीम् १ इत्याह' अणेग' इत्यादि अनेक स्तम्भशतसंनिविष्टां यावत्प्रतिरूपाम् । तत्र खलु बहवः पुरुषा दत्तभृतिभक्तवेतनाः=पारिश्रमिकदानेन नियुक्ताः पाककर्मकराः विपुलम् 'तएणं णंदे दाहिणिल्ले ' - इत्यादि ॥ टीकार्थ - (तणं) इसके बाद (णंदे) नंद श्रेष्ठी ने (दाहिणिल्ले) दक्षि दिशा संबन्धी ( वणसंडे) वनषंड में (एगं महं) एक बड़ा भारी (महाणससालं ) रसोइघर - भोजन शाला ( करावेइ ) बनवाया । (अणेग खंभसयसंनिविडं जाव पडिरूवं, तत्थ णं बहवे पुरिसा दिन्नभहभत्त बेयणा विपुलं असणं ४ उवक्खडेंति बहूणं समण-माहण - अतिहि-किबणवणीपगाणं परिभाएमाणा परिवेसेमाणाविहरंति) यह रसोइघर सैकड़ों खंभो के ऊपर खड़ा किया गया था। बड़ा ही रमणीय था । इस में अनेक पुरुष रसोई बनाने का काम करने के लिये नियुक्त किये गये थे। उन्हें 'तएणं णंदे दाहिणिल्ले' इत्यादि टीअर्थ - (तएणं) त्यार पछी (नंदे) नंद शेटे (दाहिणिल्ले) दृक्षिषु हिशाना ( वणसंडे) वनष उभा (एग मह' ) मे बहु विशाण ( महाणससाल ) २सोध घर-लो/नशाणा-( करावेइ ) मनावडावी. ( अणेगख भसयसंनिविठ्ठ जाव पडि रूवं तत्थणं बहवे पुरिसा दिन्नभइभत्तवेयणा विपुलं असणं ४ उवक्खडे ति बहूणं समण-माहण - अतिहि-किवण वणिपगाणं परिभाएमाणा परिवेसेमाणा विहरति ) આ ભેાજનશાળા સેકડા થાંભલાઓની હતી. તે ખૂબ જ રમણીય હતી. તેમાં રસોઈ તૈયાર કરવા માટે ઘણા માણસે નિયુક્ત કરવામાં આવ્યા હતા. તેને શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્ર : ૦૨

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