Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 656
________________ ज्ञाताधर्मकथासूत्रे 'ओवयं तं' अवपतन्तम् समुद्रे पतन्तम् , 'दास' हे दास ! हे नीच ! 'मओसि' मृतोऽसि त्वम् , इति जल्पन्ती सती ' अप्पत्तं सागरसलिलं' अपात सागरसलिलं समुद्रनीरममाप्तमेव मध्य एव 'गेण्हिय बाहाहिं' गृहीत्वा बाहुभ्याम् । आरसन्तं सकरुणं रुदन्त चीत्कुर्वन्तमित्यर्थः ऊर्ध्वम् ' उचिहइ ' उदिजहाति-उच्छालयति अम्बरतले गगनतले. 'ओवयमाणं च ' अवपतन्तं च पश्चादधः पतन्तं च 'मंडल. ग्गेण 'मण्डलाओण-खङ्गेन 'पडिच्छित्ता' प्रतिच्छिद्य-छित्त्वा नीलोत्पल गवलासीप्रकाशेन-अतिश्यामेन असिवरेण सुतीक्ष्णखङ्गेन खण्डाखण्डि-खण्ड-खण्डं करोति ओवयंत दास ! मओप्तिति जपमाणी अप्पत्तं सागरसलिलं गेण्हिय बहाहिं आरसंतं उड़ उम्विहति अंबरतले, ओवयमाणं च मंडलग्गेण पडिच्छित्ता नीलुप्पलगवलअयसिप्पगासेण असिवरेणं खंडाखडि करेइ तत्थ विलवमाणं तस्स य सरस वहियरस घेत्तूणअंग मंगाति सरूहिराई उक्खित्त बलिं चउद्दिसिं करेइ सा पंजली पहिहा) इसके बाद नृशंस-हत्यारी-तथा कलुषित हृदयवाली उस रयणादेवीने शैलक यक्ष की पीठ से समुद्र में गिरते हुए जिनरक्षित को जब तक वह समुद्र में नहीं गिर पाया तब तक बीचमें ही अपने दोनों हाथों से पकड़ लिया और कहने लगी हे नीच अब तु मर गया। इस प्रकार सुनकर सकरूण विलाप-चित्कार-करते हुए उस जिनरक्षित को उसने ऊपर उछाल दिया पश्चात् निचे गिरते समय उसने अपनी तलवार से दो टुकडे कर दिये । दो टुकड़े करके फिर उसने नीलोत्पल, गवल एवं अतसी के पुष्प के जैसी वर्ण वाली तीक्ष्ण तलवार से उसके खंड २ कर दिये। इस तरह आरसंतं उडु उव्विहति अंबरतले, ओवयमाणं च मंडलग्गेण पडिच्छित्ता नीलुप्पल गवल अयसिप्पगासेण असिवरेणं खंडाखंडिं करेइ हत्थ विलवमाणं तस्स य सरसव हियस्स घेत्तण अंगमंगातिं सरूहिराई उक्खित्त बलि चउदिसि करेइ पंजली पहिहा) ત્યારપછી નૃશંસ-હત્યારી-તેમજ કલુષિત હૃદયવાળી રયણા દેવીએ વેલક યક્ષની પીઠ ઉપરથી ખસીને સમુદ્રમાં પડતાં જોયે ત્યારે તે સમુદ્રમાં પડે નહિ તે પહેલાં તેણે પિતાના બંને હાથેથી તેને પકડી લીધે, અને તે કહેવા લાગી કે હે નીચ! હવે તુ મારા જ સમજ. રયણા દેવીની વાત સાંભળીને જીનરક્ષિત કરૂણ વિલાપ કરવા લાગ્યો. તે દેવીએ તે સ્થિતિમાં જ તેને ઉપર ઉછા. અને ત્યારપછી નીચે પડતા જનરક્ષિતના તેણે પિતાની તલવારથી બે કકડા કરી નાખ્યા. બે કકડા કર્યા બાદ પણ તેને નીલેટૂલ, ગવલ અને અતસીના પુણ્ય જેવી રંગવાળી તીણ તલવારથી તેના શરીરના કકડે કકડા શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૨

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