Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 757
________________ -- - अनगारधर्मामृतवर्षिणी टीका अ० १३ नन्दमणिकारभववर्णनम् ७४३ मूलम्-तएणं से गंदे मणियारसेट्ठी गंदाए पोक्खरणीए चउद्दिसिं चत्तारि वणसंडे रोवावेइ । तएणं ते वसंडा अणुपुव्वेणं सारक्खिजमाणा संगोविजमाणा संवडिजमाणा य वणसंडा जाया किण्हा जाव निकुरंबभूया पत्तिया पुफिया जाव उसोभेमाणार चिट्ठति । तएणं नंदे मणियासेट्री पुरच्छिमिल्ले वणसंडे एगं महं चित्तसमं करावेइ अणेगखंभसयसंनिविट्ठ पासाइयं दरिमणिज्ज अभिरूवं पडिरूवं तत्थ णं बहणि किण्हाणि य जाव सुकिलाणि य कहकम्माणि य पोत्थकम्माणि चित्तकम्माणि लेप्पकम्माणि गंथिमवेढिमपूरिमसंघाइमाइं उवदांसजमाणाई२ चिटुंसि, तत्थ णं बहूणि आसणाणि य सयणाणि य अत्थुयपच्चत्थुयाई चिट्ठति, तत्थणं बहवे णडा य णट्टा य जाव दिनभइभत्तवेयणा तालायरकम्मं करेमाणा विहरांति, रायगिहविणिग्गओ य जत्थ बहूजणो तेसु पुत्वन्नत्थेसु आसणसयणेसु संनिसन्नो य संतुयहो य सुणमाणो य पेच्छमाणो य साहमाणो य सुहंसुहेणं विहरइ ॥ सू० ३॥ टीका-'तएणं' इत्यादि । ततः खलु स नन्दो मणिकारश्रेष्ठी नन्दायाः पुष्करिण्याश्चतुर्दिक्षु चतुरो वनषण्डान् रोपयति कारयतीत्यर्थः। ततः खलु बनी हुई थी। यह बहुत प्रासादीय, दर्शनीय, अभिरूप एवं प्रतिरूप थी-तात्पर्य अत्यंत रमणीय थी ॥ सूत्र २ ॥ 'तएणं से गंदे मणियार सेट्ठी'-इत्यादि ।। टीकार्थ-(तएणं)इसके बाद(से गंदे मणियार सेट्ठी) उस मणिकार श्रेष्ठी स्वराथी भुमरित ( शयुत ) 25 रडी ती मा पाप ५५ प्रासाहीय, દર્શનીય, અભિરૂપ અને પ્રતિરૂપ હતી એટલે કે તે અત્યંત રમણીય હતી. સૂત્ર ૨ ( तएणं से गंदे मणियार सेटो-इत्यादि 2010-(तएण) त्या२।४ (से ण दे मणियारसेटो) ते मार श्रेष्ठी न શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૨

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