Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 747
________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणी टी० अ० १३ नन्दमणिकारभववर्णनम् ७३३ चाउक्कोणासमतीरा अणुपुत्वसुजायवप्पगंभीरसीयलजला संछण्णपत्तबिसमुणाला बहुप्पलपउमकुमुयनलिणसुभगसो गंधियपुंडरिय महापुंडरीय सयपत्तसहस्सपत्तपफुल्लकेसरोववेया परिहत्थभमंतमत्तछप्पयअणेगसउणगणमिहणवियरियसदुन्नइयमहुरसरनाइया पासाईया ॥ सू० २॥ टीका-' इमं च णं' इत्यादि । स दर्दुरको देवः इमं च खलु ' केवलकप्पं ' केवलफल्पं = सम्पूर्ण जम्बूद्वीपं द्वीपं विपुलेन 'ओहिणा' अवधिना. --अवधिज्ञानेन 'आभोएमाणे २ 'आभोगयन् आभोगयन् = वारंवारमव लोकयन 'जाव' 'नहविहिं उवदंसित्ता पडिगए ' यावन्नाटयविधिमुपदर्य प्रतिगतः 'जहा मुरियामे' यथा सूर्याभः, मूर्याभदेववत् । तद् गमनानन्तरं भदन्त ! इति संबोध्य भगवान् गौतमः श्रमणं भगवन्तं महावीरवन्दते नमस्यति, वन्दित्वा नमस्थित्वा एवमवदत्-अहो ! खलु भदन्त ? दर्दुरो 'इमं च णं केवलकप्पं ' इत्यादि । टीकार्थ-वह दर्दुरकदेव (इमं च णं केवलकप्पं जंबूदीवं२) इस केवल कल्प-संपूर्ण-जंबूद्वीप नाम के द्वीप को ( विउलेणं ओहिणा) अपने विपुल अवधिज्ञान से ( आभोए माणे २) बार २ देखता हुआ ( जाव नविहिं उवदंसित्ता पडिगए) यावत् नाट्य विधि को दिखला कर चला गया (जहा सूरियामे) सूर्याभदेव की तरह (भंतेति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी ) उस के चले जाने के बाद हे भदंत ! इस प्रकार से संबोधित करके भगवति गौतम ने श्रमण भगवान महावीर प्रभु से इस प्रकार पूछा ( अहो णं भंते ! दुरे देवे महड्डिए महज्जुइए महाबले, महाजसे ' इमं चणं केवलकप्पं ' इत्यादि ते २४ हेव (इम च ण केवलकप्प बूद्दीवं २ ) 20 उपस ४६५सपू-यूद्री५ नमन द्वीपने ( विउलेण ओहिणा ) पोताना विज्ञानथी ( आभोएमाण २) वा वा२ न्नते। ( जाव नट्ठविहिं उवदंसित्ता पडिगए) यावत् नाटय विधिनु प्रशन मतावान । २wो. ( जहा सूरियाभे) सूर्याल हेवनी २ ( भंतेति भगव गोयमे समण भगव महावीर बदइ, णमंसइ, वदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी) तना वा पछी श्रम भगवान महावीर प्रसना ચરણોમાં ભગવાન ગૌતમે “હે ભદંત!” એવી રીતે સંબોધીને તેઓએ મને આ પ્રમાણે કહ્યું કે– શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૨

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