Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनगारधर्मामृतवर्षिणी टी0अ0 ९ माकन्दिदारकचरितनिरूपणम् ऊध्र्वगच्छन्तीच, तथा सिद्धविद्याविद्याधरकन्यकेव धरणीतलाद् उप्पयमाणी' उत्पन्ती-ऊर्ध्वमुच्चलन्ती, 'भट्टविज्जा' भ्रष्टविद्या-विस्मृतविद्या विद्याधरकन्यकेव गगनतलाद् 'ओवयमाणी' अवपतन्ती-अधोनिपतन्ती, 'महागरुलवेगवित्तासिया' महावरुड वेगवित्रासिता महागरुडवेगेन भयाक्रान्ता 'भुयगवरकन्नगाविव' भुजगवरकन्यकेव नागकन्येव 'विपलायमाणी ' विपलायन्यी, 'महाजणरसियसहवित्तत्था' महाजनरसितशब्दवित्रस्ता-जनसमूहकोलाहलशब्देन भीता ठाणभट्ठा ' स्थानभ्रष्टा =स्वस्थानच्युता ' आसकिसोरीविव' अश्वकिशोरीव-अश्ववत्सावत् ' धावमाणी' धावमाना, गुरुजणदिट्ठावराहा' गुरुजनदृष्टापराधा-गुरुजना-मातापित-श्वशुरा२ वहीं २ बार २ नीचे ऊँचे उछलने लगती। (सिद्धविज्जाधरणीयला
ओ उप्पयमाणी विज्जाहरकन्नगा इव) उस समय वह नौका ऐसी ज्ञात होती थी कि मानो सिद्ध विद्यावाली कोई विद्याधर कन्या ही धरणीतल से निकलकर ऊपरको उठ रही है ( भट्ट विज्जाहरकन्नगागगणतलाओ ओवयमाणी विव) या जिसकी विद्याभ्रष्ट हो चुकी है जिसे विद्या विस्मृत हो गइ है-ऐसी कोइ विद्याधर कन्या मानों आकाश से नीचे उतर रही है-(महागरुलवेगवित्तासिया विपलायमाणी भूयग वरकन्नगाइव ) या गरुड़ के भयोत्पादक वेगसे आक्रान्त हुइ मानों कोई नागकन्या ही इधर उधर भाग रही है (महाजणरसियसहवित्तत्था ठाणभट्ठा धावमाणी आप्त किसोरी विव ) या जनसमूह के कोलाहल से भय भीत होकर मानों कोई घोडी की बछेरी ही अपने स्थान से भ्रष्ट होकर इधर उधर दौडती फिर रही है (गुरुजणदिहावराहा णिगुज माणी
(सिद्धविज्जाधरणीयलाओ उप्पयमाणी विज्जाहरकन्नगा इव ) ते १मते મોજાંઓમાં ઉછળતી તે નાવ સિદ્ધ વિદ્યાવાળી કોઈ વિદ્યાધર કન્યા પૃથ્વી 5५२थी नीजी ०५२ ती जय तम साती ती. ( भट्ट विज्जा विज्जाहर कन्नगा गगणतलाओ ओवयमाणीविव अथवा तो विधाभ्रष्ट थयेसी, विद्या विरभृत थयेसी मेवी विधाय२ अन्य मामाथी नीय उतरती हाय, ( महागह लवेगवित्तासिया विपलायमाणी भूयगवरकन्नगा इव ) 2424 तो अना ભત્પાદક વેગથી આકાંત થયેલી કેઈ નાગકન્યા જ આમતેમ નાસભાગ ४२ती काय, ( महाजणरसियसद्दवित्तत्था ठाणभट्टा धावमाणी आसकिसोरी विव ) अथवा तो माणुसोना घांधारथी भयभीत ७२ घोडीनुपछे तमे. anमाथी नासीन मामतेम हतुं तु डाय, ( गुरुजण दिट्ठा वराहा णिगुंज माणी सुयणकुलकन्नगा विव ) अथवा तो ना १ सानु
શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૨