Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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___ ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्रे काष्ठविशेषो यस्याः सा तथा, 'फलहंतरतडतडेतफुटुंतसंधिविगलंतलोहकीलिया' फलकान्तरेषु संयोजितफलकविवरेषु तडतडे ' ति शब्दं कुर्वन्त्यः, स्फुटन्तोविघटमानाः सन्धयः, अतएव विगलन्त्यो निस्सरन्त्यो लोहकीलिका यस्याः सा तथा, 'सव्यंगबियंभिया' सर्वाङ्ग विजृम्भिता सर्वाङ्गः सर्वावयवैः वि म्भिता विवृतमुखा जाता या सा तथा, 'पडिसडियरज्जू' परिशटितरज्जुः गलितरज्जुवती अतएव 'विसरंतसव्वगत्ता' विसरत्सर्वगात्रा-विशीर्यमागसर्वावयवा, आमगमल्लगभूया' आमकमल्लभूता=अपक्वशरावसदृशा, 'अकयपुण्णजणमणोरहो विव' अकृतपुण्यजनमनोरथ इव, अकृत पुण्यः हीनपुण्यो यो जनस्तस्य मनोरथ इव 'चिंतिज्जमाणगुरुइ' चिन्त्यमानगुर्वी चिन्त्यमाना-'कथमेतामापदं तरिष्यामी' तिविचार्यमाणेव गुर्वी-चिन्ताभारेणेव गुरुका, 'हाहाकयकण्णधारणावियवाणिय. मास काष्टविशेष टेढा हो गया था। (फलहंतरतडतडेंतफुटतसंधिविगलंतलोहकीलिया) काष्टके पटियोंको परस्पर जोडनेके लिये जो संधियों में लोहे के बडे२ कीले लगे हुए थेवे सब जब उसकी संधिया-जाड विघटित हो गई तब उनमें बाहर निकल आये थे (सव्यंगवियंभिया) अतः समस्त इसके जुड़े हुए अवयव खुल गये थे । (परिसडियरज्जू ) जित नी भी इस में रस्सियां लगी हुई थी वे सब की सब गल चुकी थीं। (विसरंतसव्वगत्ता) इससे समस्त जोड़ खुल गये थे। ( आम गमल्लक भूया) यह कच्चे मिट्टी के शरवाके समान हो गइ थी। (अकय पुण्ण जणमणोरहो विव ) अकृत पुण्य वाले मनुष्य के मनोरथ के समान यह निष्फल बन गई थी। (चिंतिज्जमाण गुरुई ) मैं इस आपत्ति को अब कैसे पार करूँगी इस चिंता से ही मानों यह बहुत भारी
यावसानी भ. परिभास नामनु सट विशेष-त्रांसु 45 आयु तु. ( फल हतर तडतडेत फुत संधि विगलतलोहकीलिया ) साना पाटीयायान में બીજાની સાથે તેને સાંધા મેળવવા જે લોખંડના મેટા ખીલાઓ કામમાં લેવાય છે તે બધા પાટિયાએ જ્યારે જુદા જુદા થઈ ગયા ત્યારે બહાર નીકળી આવ્યા उता. ( सव्वंग विय भिया) ॥ प्रभाये नावना या सेवा सांधाय। न्हा गया . ( परिसडियरज्जू ) तेनी मधी हरीया डावा यूटी उती. ( विसरतसव्वगत्ता) तेना या सांधाये। छु। ५ गया ता. (आम गमल्लकभूया) ते माटीनी या यांनी सभ २४ ता. ( अकयपुण्ण जण मणोरहाविव ) ओई ५ हिवसे गणे मेय पुश्यनु आम ज्यु नयी सेवा माणुसना मनाथनी म त नि थ ती . (चितिज्जमाण गुरुई) मावी ५ी तने। सामना ईवी रीत ४१४ ? and ॐ मा
શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૨