Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र समवायांग और नन्दीसूत्र के अनुसार व्याख्याप्रज्ञप्ति में नाना प्रकार के ३६००० प्रश्नों का व्याख्यान (कथन) है; जो कि अनेक देवों, राजाओं, राजर्षियों, अनगारों तथा गणधर गौतम आदि द्वारा भगवान् से पूछे गए हैं। कषायपाहुड' के अनुसार प्रस्तुत आगम में जीव-अजीव, स्वसमय-परसमय, लोक-अलोक आदि की व्याख्या के रूप में ६० हजार प्रश्नोत्तर हैं। आचार्य अकलंक के मतानुसार इसमें 'जीव है या नहीं?' इस प्रकार के अनेक प्रश्नों का निरूपण है। आचार्य वीरसेन के मतानुसार व्याख्याप्रज्ञप्ति में प्रश्नोत्तरों के साथ ९६ हजार छिन्नछेदनयों से ज्ञापनीय शुभाशुभ का वर्णन है। प्राचीन सूची के अनुसार प्रस्तुत आगम में एक श्रुतस्कन्ध, सौ से अधिक अध्ययन (शतक), दश हजार उद्देशनकाल, दश हजार समुद्देशनकाल, छत्तीस हजार प्रश्नोत्तर तथा २८८००० (दो लाख अठासी हजार) पद एवं संख्यात अक्षर हैं। व्याख्याप्रज्ञप्ति की वर्णन परिधि में अनन्त गम, अनन्त पर्याय, परिमित त्रस और अनन्त स्थावर आते हैं। वर्तमान में उपलब्ध व्याख्याप्रज्ञप्ति' में ४१ शतक हैं। 'शतक' शब्द शत (सयं) का ही रूप है। प्रत्येक शतक में उद्देशकरूप उपविभाग हैं। कतिपय शतकों में दश-दश उद्देशक है, कुछ में इससे भी अधिक हैं। ४१वें शतक में १९६ उद्देशक हैं। प्रत्येक शतक का विषयनिर्देश शतक के प्रारम्भ में यथास्थान दिया गया है। पाठक वहां देखें। प्रस्तुत शास्त्र में भगवान् महावीर के जीवन का तथा, उनके शिष्य, भक्त, गृहस्थ, उपासक, अन्यतीर्थिक गृहस्थ, परिव्राजक, आजीवक एवं उनकी मान्यताओं का विस्तृत परिचय प्राप्त होता है। साथ ही उस युग में प्रचलित अनेक धर्म-सम्प्रदाय, दर्शन, मत एवं उनके अनुयायियों की मनोवृत्ति तथा कतिपय साधकों की जिज्ञासाप्रधान, सत्यग्राही, सरल, साम्प्रदायिक कट्टरता से रहित उदारवृत्ति भी परिलक्षित होती है। इसमें जैनसिद्धान्त, समाज, संस्कृति, राजनीति, इतिहास, भूगोल, गणित आदि सभी विषयों का स्पर्श किया गया है। विश्वविद्या की कोई भी ऐसी विधा नहीं है, जिसकी चर्चा प्रत्यक्ष या परोक्षरूप से इसमें न हुई हो। अन्य आगमों की अपेक्षा इसमें विषय-वस्तु की दृष्टि से विविधता है।
(क) समवायांग सू. ९३, नन्दीसूत्र सू. ८५,४९, (ख) तत्त्वार्थराजवार्तिक १/२०, (ग) कषायपाहुड भा. १, पृ. १२५, (घ) जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भा. १, पृ. १८९ (क) भगवतीसूत्र अ. वृत्ति पत्रांक ४
(ख) जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा, पृ. ११६, (ग) सूत्रकृतांग शीलांक वृत्ति पत्रांक ५ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भा. १, पृ. १८९ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा पृ. १२५, १२६, ११३