Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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वियाहपण्णत्तिसुत्तं ( भगवईसुत्तं )
परिचय
★ द्वादशांगी में पंचम अंग का नाम 'व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र' है ।
★ इसका वर्तमान में प्रसिद्ध एवं प्रचलित नाम 'भगवती सूत्र' 'है 1
★ वृत्तिकार ने 'वियाहपण्णत्ति' शब्द के संस्कृत में पांच रूपान्तर करके इनका पृथक्-पृथक् निर्वचन किया है – (१) व्याख्या - प्रज्ञप्ति, (२) व्याख्याप्रज्ञाप्ति, (३) व्याख्या - प्रज्ञात्ति, (४) विवाहप्रज्ञप्ति, (५) विबाधप्रज्ञप्ति ।
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★ व्याख्या - प्रज्ञप्ति - (वि + आ + ख्या + प्र + ज्ञति ) – जिस ग्रन्थ में विविध प्रकार (पद्धति) से भगवान् महावीर द्वारा गौतमादि शिष्यों को उनके प्रश्नों के उत्तर के रूप में जीव-अजीव आदि अनेक ज्ञेय पदार्थों की व्यापकता एवं विशालतापूर्वक की गई व्याख्याओं (कथनों) का श्रीसुधर्मास्वामी द्वारा जम्बूस्वामी आदि शिष्यों के समक्ष प्रकर्षरूप से निरूपण (ज्ञप्ति) किया गया हो। अथवा जिस शास्त्र में विविध रूप से या विशेष रूप से भगवान् के कथन का प्रज्ञापन – प्रतिपादन किया गया हो । अथवा व्याख्याओं - अर्थ - प्रतिपादनाओं का जिसमें प्रकृष्ट ज्ञान (ज्ञप्ति) दिया गया हो, वह 'व्याख्या - प्रज्ञप्ति' है ।
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★ व्याख्याप्रज्ञाप्ति - (व्याख्या + प्रज्ञा + आति) और व्याख्याप्रज्ञात्ति - (व्याख्या + प्रज्ञा + आत्ति ) व्याख्या (अर्थ-कथन) की प्रज्ञा ( प्रज्ञान हेतुरूप बोध) की प्राप्ति (या ग्रहण) जिस ग्रन्थ से हो । अथवा व्याख्या करने में प्रज्ञ (पटु भगवान्) से प्रज्ञ (गणधर ) को जिस ग्रन्थ द्वारा ज्ञान की प्राप्ति हो, या ग्रहण करने का अवसर मिले।
★ विवाहप्रज्ञप्ति - (वि + वाह + प्रज्ञप्ति ) -जिस शास्त्र में विविध या विशिष्ट अर्थप्रवाहों या नयप्रवाहों का प्रज्ञापन (प्ररूपण या प्रबोधन) हो ।
★ विबाधप्रज्ञप्ति - जिस शास्त्र में बाधारहित अर्थात् प्रमाण से अबाधित निरूपण उपलब्ध हो । ★ भगवती - अन्य अंगों की अपेक्षा अधिक विशाल एवं अधिक आदरास्पद होने के कारण इसका दूसरा नाम 'भगवती' भी प्रसिद्ध है ।
★ अचेलक परम्परा में 'व्याख्याप्रज्ञप्ति' नाम का उल्लेख है । उपलब्ध व्याख्याप्रज्ञप्ति की शैली गौतम गणधर के प्रश्नों और भगवान् महावीर के उत्तरों के रूप में है, जिसे 'राजवार्तिककार' ने भी स्वीकार किया है।
१.
२.
व्याख्याप्रज्ञप्ति अभयदेववृत्ति, पत्रांक १, २, ३
(क) राजवार्तिक अ. ४, सू. २६, पृ. २४५, (ख) कषाय- पाहुड भा. १, पृ. १२५, (ग) अभयदेववृत्ति पत्रांक २, (घ) जैनसाहित्य का बृहद् इतिहास, भा. १, पृ. १८७, (ङ) 'शिक्षासमुच्चय' पृ. १०४ से ११२ में 'प्रज्ञापारमिता' को 'भगवती' कहा गया है ।
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