Book Title: Prachin Stavanavali
Author(s): Mannalal Mishrilal Chopda
Publisher: Mannalal Mishrilal Chopda
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ HABEL HHHHHHHHHHHHH जंगमयुग प्रधान श्रीजिनदत्त सूरीश्वरजी सद्गुरुभ्यो नमः BERBETHEHREEEEEEE HHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHH प्राचीन स्तवनावली प्रसिद्ध कर्ताःश्री श्री १०८ श्री गुरुणीजी महाराज 'आनन्दश्रीजी ___व श्री कल्याणश्रीजी के सदुपदेशसे 'जेसलमेर 'फलोधी' आदि गांवोंकी श्राविका वर्गBEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ •·.·• ॐ जंगमयुगप्रधान श्रीजिनदत्त सूरीश्वरजी सद्गुरुभ्यो नमः | प्राचीन स्तवनावली । - e: जिसको श्रीखरतर गच्छ गणाधीश्वर १००८ श्रीजिनयशः सूरिजी महाराजकी सुशिष्या श्रीमति १०८ श्री ' आनन्दश्रीजी' महाराज व श्रीकल्याणश्रीजी के सदुपदेश से मारवार्ड जेसल - मेर-फलोधी आदि नगरों की श्राविका वर्गने छपाकर प्रसिद्ध किया. 050060 मार्फत् मन्नालाल मिश्रीमल चोपड़ा रतलाम - ( मालवा ) प्रति १००० 卐 अमूल्य भेट. श्री वीर सं० २४६०, विक्रम सं० १९९०, सने १९३४. ............ ... Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Printed by Manilal Ugarchand at Shree Laxmi Printing Press : Kalupur : Tankshal : Ahmedabad. Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Tode-0-0:0-00-OCTOBEROSCOO:-coli भी जिनदत्तसूरिगुरु, आचारज गुणवान । लब्धिधारक आपसा, नहीं कोइ दूजा जान ROSTEREOSSEX प्रभावि ceco-o-00-00-00-00-00-00-00-00-00-0:=ococcccH पांच नदीको साधकर, साधे पांचो वीर। १.3.8033000202RLS पांचों योगिनी जीतकर, वशकिये बावन वीर Herocrocococ=oc-ococ-00-00-00-00-0:0-00-Ocsoo-o श्री जिन दन दादा सूरिश्वरजी सद्गुरु भ्यो नम:। HTOSoc-o-oesose:ODocomoeoc-e-H Lakshmi Art, थु मन्नालाल मिश्रीमल चौपड़ा रतलाम Bombay, 8. Page #5 --------------------------------------------------------------------------  Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना सज्जन नर नारिओ! इस असार संसार में अनादि कालसे भवभ्रमण करते हुए जीवको संसारके जन्म मरणादि दुःखोंसे छूटने के व्रत नियम दानानि अनेक उपायोंमें से श्रीजिनेश्वर देवकी भक्ति एक सर्वोत्तम उपाय है, श्रीजिनराजकी भक्तिके अनेक प्रकार हैं, उनमें तीर्थंकर देवके सद्भूत गुणोंका कीर्तन करना यह अत्युत्तम है, क्योंकि प्रभुगुणों में मनकी एकाग्रताही कर्मनिर्जराका खास हेतु है, और प्रभुगुणों में मनकी एकाग्रता जैसी प्रभुगुणोंको गानेसे होती है वैसी अन्यसे नहीं, जिस गायन विद्यासे अज्ञ आदिकभी मंत्रस्तंभितकी तरह मुग्ध बन जाते हैं उसी गायन कलासे श्रीवीतराग देवके गुणोंमें लयलीन हुए भक्त जीव अनेक भवोंके संचित क्लिष्ट कर्म क्षण भरमें नष्ट करदेते हैं, जैसेकि-मयणा सुंदरी, श्री श्रीपाल महाराजा तथा श्री खरतर गच्छ नायक श्रीमद् अभयदेवसरिजी महाराज आदिके कुष्ट रोगादि नष्ट हुए और ऋद्धि, संपत्ति, शासन उन्नति माप्त करी, इतनाही नहीं. बल्के रावण जैसे ने प्रमुगुण गानमें ही तल्लीन होके तीर्थकर नामकर्म बांधा है, इसीलिये माचीन फालके अनेक आचार्य आदि मुनिमहात्माओने स्वपरके हितार्थ अच्छे अच्छे भावपूर्ण स्तवन बनायेहैं, जोकि बहुत छप चुके हैं फिरभी बहुतसे ऐसे है कि जो अभीतक नहीं छपे, वैसे स्तवनोंका संग्रह इस 'स्तवनावली' में किया गया है। Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इसको श्रीखरतरगच्छ गगनांगण नभोमणि - अनेक भव्य प्रतिबोधक - शांत वचन - समदृष्टि - प्रशांत चित्त - पुन्यमूर्ति-मुनी"श्वर-श्रीमन्मोहनमुनिजी महाराज. प्रसिद्ध नाम श्रीमोहन 'लालजी महाराजके आज्ञानुवर्ति मुख्य शिष्य - परम शांत - परम 'तपस्वी आचार्य प्रवर श्रीमज्जिन यशः सूरीश्वरजी प्रसिद्ध नाम "पन्यासजी - श्रीजस मुनिजी महाराजकी आज्ञानुयायिनी साध्वी'श्रीमति आनन्दश्रीजी की विदुषी शिष्या श्रीमति कल्याणश्रीजीने "तैयार कियाहै, इस स्तवनावली में अन्यान्य स्तवनोंके साथ "श्रीजेसलमेर में बनाये हुए अनेक जूने जूने स्तवन हैं । #D इस पुस्तकको जेसलमेर (अभी आरबी) निवासी सुश्री राजमलजी सकलेचाकी धर्मपत्नी श्रीमति भूरीबाई आदि श्राविकाओंकी प्रेरणासे तथा उन्हीकी द्रव्य सहायता से छपाके प्रकाशित किया गया है, इसमें छापनेवालेकी गफलतसे या दोषसे जो कोई भूल रहगई हो उसको पाठक गण सुधारके पढें इति शम् ॥ संवत् १९८९ महासुदि रतलाम ( मालवा ) निवेदक, पं० केशरमुनिजी Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री श्री १००८ श्री जैनाचार्य श्री जिनयशः सूरिजी महाराज साहबका संक्षेप जीवनचरित्र " प्रिय वाचकवृन्द ? शान्तमूर्ति महातपस्पी श्रीमद् " जिनयशः सूरिजी " महाराजका जन्म सं० १९१२ में जोधपूर ' नगरे हुवाथा, गृहस्थापन में आपका नाम 'जेठमलजी' था. आपका जैनधर्म से अत्यन्त प्रेमथा, बाल्यावस्था से ही जिनेन्द्र पूजा - प्रतिक्रमण - ज्ञानाभ्यास आदि धर्मकरणी में लीन रहते थे । गृहस्थावस्था में ही आपने अठ्ठाई, पन्दरह, पैंतींश इक्कावक उपवास की तपश्चर्या कीथी । आपने अपनी २८ वर्षकी युवावस्था में ही निज जन्म भूमि जोधपूर में श्रीमान् पूज्यपाद धर्मधुरंधर परोपकार तत्पर शासन रक्षक सदुपदेश दाता प्रातः स्मरणीय, सुसंयमी प्रसिद्ध महात्मा "श्रीमन्मोहनलालजी" महाराजके पास सं० १९४० में बडे धामधूमके साथ दीक्षा ग्रहण की तबसे आपका नाम " श्रीमद् यशोमुनि " स्थापन हुवा. दीक्षा लेने के बाद भी आपने अट्ठाई, पन्द्रह, मासक्षमण आदि अनेक तपस्यायेंकी और अंग उपाङ्ग सूत्रादि श्री Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनागमका सम्यक् प्रकार योगोवहन भी किया, अतएव अमदाबाद नगर में श्री दयाविमलजी म. प्रमुख श्रीसंघने आपकों सं० १९५६ में “पंन्यास श्री यशोमुनिजी गणि" इस पदवी से विभूषित कियेथे. बालुचर मक्सोदाबाद निवासी श्री संघने " श्रीमद जिनयशः सूरिजी महाराज" यह आचार्यपदकी स्थापना सं० १९६९ जेठ सुदि ६ को की थी. सं० १९७० श्री पावपुरी (चरमतीर्थकर श्रीमहावीर प्रभु का निर्वाण प्राप्तिस्थान अति पवित्र तीर्थ भूमि ) में ५३ उपवास की तपस्या सहित श्रीवीर प्रभुका स्मरण करते हुए उन्हीके ध्यान में काल करके आप देवलोक में प्राप्त हुए, परिचय के लिये आपका चित्रभी इस पुस्तकमें रक्खा है. कल्याण श्री Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1- 10 १००८ श्रीमाजिनयशः सूरिजी महाराज. गणिपद-पंन्यासपद सं० १९५६ अमदाबाद. - - - - - आचार्यपद संवत् १९६९ जेठ सुदि ६ बालुचर मक्सुदाबाद. - - दीक्षा सं० १९४० जेठ सुदी ५ स्थान जोधपुर. toes थेस सरिजी जन्म संवत् १९१२ स्थान स्वर्गवास संवत् १९७० मगसर सुदि ३ सोमवार स्थान पावापुरी. जोधपूर. - - - H चोपड़ा, रतलाम. मार्फत्-मन्नालाल मिश्रीमल Lakshmi Art, Bombay, : Page #11 --------------------------------------------------------------------------  Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमति गुरुणीजी १०८ श्री आनन्दधीजी महाराज साहबका संक्षेप जीवनचरित्र प्रिय वाचकगण ? शान्तमूर्ति महातपस्वी श्रीआनन्दश्रीजी महाराजका जन्म गाम 'गंटीयाली' में विक्रम सं० १९२३ मिती फाल्गुन वदि १३ को हुवाथा मोसाल में आपका नाम "आणंदकँवरबाई" रक्खाथा, आपके लग्नमु० फलोधी में लक्ष्मीचंदजी गुलेच्छा के सुपुत्र मूलचन्दजी के साथ हुए थे. लग्न होनेके ४ वर्ष बाद याने २० वर्षकी वय में इस संसारकों असार जाण हजारों रुपये का द्रव्य छोड़ गांव फलोधी सं० १९४३ में आपने बडे धामधूम के साथ दीक्षा ग्रहण की. दीक्षा लेने के बाद आपने अट्ठाई, दश, एक पक्ष, साला, मासक्षमण, आदि छोटी मोटी वहुत तपश्चर्या की है. इसी तरह आपने सं० १९६३ मु० सुरत में श्रीमान् १००८ श्री" यशः मूरिजी महाराज के पास बडा जोग वहन किया. ___ यह प्राचीन स्तनावली पुस्तक भी आपश्री के व श्री कल्याणश्रीजी महाराज के सदुपदेशसे श्राविका वर्ग की तर्क से प्रकाशित हुई है। करीब १॥ वर्षसे आपकों एसी व्याधी प्राप्त हुई के Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिन पर दिन शरीर कृप होने लगा. आखिर मु० रतलाम में सं० १९९० मिती फागण मुदि १५ गुरुवार को ६७ वर्ष की वय में पंचपरमेष्टि के शुभध्यान में आपका देहान्त होगया, अंतसमयमें आपकी स्मृति अच्छी रही और श्रीकल्याणश्रीजी म० आपको जिनेन्द्र प्रभुका स्मरण कराने में व विनय वैयावच्च भक्ति में किसी तरह त्रुटि नहीं की ।। मन्नालाल चोपड़ा रतलाम. - इस पुस्तक के छपाने में द्रव्य सहायता देनेवाली, . सुश्राविकाओं की नामावली जे० पुखराजनी माता रु. १०) से० आनन्द कँवरबाई रु. छगनलालनी माता रु. ना० पानकँवरवाई रु.५०) रुपांबाई भतकाबाई रु. ४०) गुलाबबाई रु. ७) मुरजबाई रु. ३५) मीनाबाई रु. ७) भूरीबाई कस्तूरांबाई रु. २५) सुरजबाई केसरबाई रु. २५) गजरांबाई रु. ५) छगनीबाई रु. २०) छूटक रु. १५) Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री १००८ श्री आनन्द श्रीजी महाराज - - - - - - आचार्यपद जोग सं० १९६५ मगसर सुदी १५ स्थान ‘सूरत' जन्म सं० १९२३ फाल्गुण विदी १३ स्थान गंटियाली. दीक्षा सं० १९४३ मगसर विदी १ स्थान 'फलोधी' -o i चोपड़ा, रतलाम. मार्फत्-मन्नालाल मिश्रीमल Lakshmi Art Bombay 8. Page #15 --------------------------------------------------------------------------  Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीन स्तवनावली. ॥ अथ चैत्यवन्दन ॥ (मंगलाचरण) पहेला प्रणमुं प्रथम नाथ, श्री आदिजिनेश्वर । बीजा अजित जिनदेव, वंदु परमेश्वर ॥१॥श्रीसंभव भव संभव, त्रीभवन तारण । अभिनन्दनने समतिनाथ, दोय दोय दुःख निवारण ॥२॥ पद्मप्रभु. श्रीपाससुपास, चंदा प्रभु चन्द्र । प्रह उठाने वांदसुए, नवनिधि होवे जस सेव ॥३॥ विधीसु वांदु सुबुधीनाथ, शीतल सुख दायक । श्रीयांस ने श्री वासुपुज्य, जीवण जगनायक ॥४॥ वंदु विमल अनंत धर्म,एक चित्त चिंतामणी॥श्रीशान्ति करण सहु शान्ति कुंथुअर मल्लिमुक्तामणि ॥५॥ मुनिसुव्रत स्वामी वांदसुए, नमि नेमि कुवार । पार्श्व वीर जिन प्रणमुसुए, जे मुझ हर्ष अपार ॥६॥ त्रीभुवन मांहे जे जिनप्रासाद,शाश्वता अशाश्वता। Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . श्री प्राचीनस्नवनावली ते सवि वन्दु वर्तमान, अतीत अनागत ॥७॥ श्री सीमंधर विहरमान ए वीश तीर्थकर । अढी द्वीप माहे छाजे, महा मुनीश्वर ॥८॥ ते सवि वन्दु वगत वरणी, श्रीजिनशासन सार । जे निश्चय आराधसे ए, ते तरसे संसार ॥ ९॥ हवे श्रीशेजेजय आदीश्वर स्वामी, वंदु उज्जलगढ । अष्टापद ने समतशिखर वन्दु जिनवर नंदीश्वर ॥१०॥गौगे नवखंडापास जे जगने तारे । जीवित स्वामी जुगादि वन्दु सुपारे ॥११॥ भरूअच्छ वन्दु मुनिसुव्रत-थंभणपुर श्रीपास । पाटण ने पंचासरोए, जो प्रभु पूरे आश ॥१२॥दो देरिये श्रीशांतिनाथ, दो देरिये वंदु महावीर । मल विहार जुवार वीर साचोरी मंडण॥१३॥गोडीजीजीरावलोपास, वन्दु वरकाणे। पर्वत ए जाणो प्रसादा जे जग सहुने जाणो॥१४॥ राजगृही विहार करी, वन्दु वीर जिणंद । गोड़ी पास खामी, नगरे प्रणम् परम आणंद ॥१५॥ एक नमत चौगने पास, चउगति निवारण।रीजोले वर पारसनाथ, भवसायरने तारण ॥१६॥मांडवगड़ Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री प्राचीनस्तवनावली . . . . [३ ए गडध्याने, वन्दु सुविहाण । नंदायो रायोसिद्ध, जे जग सहुने जाणे ॥१७॥ नाभिराय कुल वांदसाए, ज्यांछे जिनवर देह । सुभीयाश्रीआदिनाथइन्द्र करे नित सेव ॥१८॥ नलिनी गुल्म विमाण विहाण समाण, राणपुरे वन्दु चौमुखे । नवपलकते चिरक कोड़ जिनवर दे सब सुख ॥ १९ ॥ माडे वाँदु श्रीसुपास-ते वगसीने तारे । बड़नगर इन्दौर वड़ो नगर जुम्हारे॥२०॥ आराधसाए उद्यम सारा, ज्यां छे भवन विहार । नाण तोयतो नामसारा जीवितखामी जुहार ॥२१॥ हवे श्रीशचुंजय आदिश्वरस्वामी, पामुलोढाणे।इहां विमाण वाडमेर जिनवर जोधाणे ॥२२॥ अवरजीके सहु गाम ठाम, ते सहु जीलावे । शिरोही मुख आदमुख, मुख वांदु टमकारे ॥२३॥ इमके तीर्थकर प्रणमुं वन्दु एक चित्त । अजर अमरपद लहे, पामु परम आणंद ॥२४॥ Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निस्तवन AAAAAAA ४] . . . . श्री प्राचीनस्तवनावली ॥अथ जय महाशय ॥ जय सबल सुरासर ममिय पायणाए, जय कंचन कोमल पभणे रायए । जय सुन्दर सुभवि सीर सौभागण, जयशान्तिजिनेश्वरभमणेरायए॥१॥ सुभ वैमापिकथी चवीया, खामी नयर हथना जरपुर गामए ॥ विश्वसेन नरेसर-गृह मझारए, पठराणी अचिरादेवी नार ए ॥२॥ तसु उदर सरोवर-राय हंस ए, अवतरिया हो जिनवर कुलमा वंश ए। आये-सातम भादवरे मास ए, नही अनुपम संख रास ए॥३॥ चवदे स्वप्न लया जननी ताम ए। निरखे सह गयवर जिनवर भोयण साम ए। जेठ वदि तेरस पढमे पक्ष ए। जायो जिणनायक भरणी रिख ए ॥४॥दिशि कुमरी छप्पन गुण विसाल ए। जल आसण लावे गणे रसाल ए। निरखे सहु नवीनवी सुहीरे क्रमए'कुर निर्मल तिहां सुख अचज डंभ ए ॥५॥ सुर गरिसलेवण जिनवर अंग ए। हवं नवण कराव चासठ इन्द्र ए। जल भारया हो रूपे सूवन्नमें ए। एम भणे कलश जोजन मे Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निस्तवनावर श्री प्राचीनस्तवनावली . . . . [५ सये ॥६॥ तो बावन चंदन नब कपूर ए, कस्तु-। रीओ केसर अगर धूप ए । रसमे विलेपण लावे इन्द्र ए। बहु भंगे ओलावे सुर गिरवर रंगए - ॥दोहा॥ हवे नवण विलेपणा, भाव धरे पण पेलो परम आणंद करो देवा परम आणंद करो। चौसठ सुरा सुर श्रीशांति जिनेसर रचे पूजन नव नब करे देवा रचे पूज नव नव करे. ॥ ढाल दूसरी ॥ सोहम केवडो चंपो मर वोए पलवानवण बोड वणवो गिरवो ए ॥१॥ पाडल परिमल सयल जग मोया ए । सिद्ध सेवंतीया सोयरे भासोय ए ॥२॥ पाडल परिमल गुण ए विशाल ए। वय कय जाय करणे नवा नवकये॥३॥ इण पर अवर वरे फूलमाला गणे ए। लेइ सुर असुर वरे देव लोयणे वणी ॥४॥ विवेक, करी पुज श्रीशांति तीर्थकर तेर मंडणपते रयणमयी सुन्दरी ॥५॥ तम तंदुर वाजंती Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६] . . . . श्री प्राचीनस्तवनावली वारस वह किन्नरी गीत गावंती सुखा वहु ॥६॥ रण रण नेवरा नाच ए, सुरवर पंखीया एक दीठी तिहां आण सही ॥७॥ ॥दोहा॥ कर ओच्छव भगते निरमल चित्ते थुणी अर हरख भलेव जिणे देवा थुणी हरख भलेव जिणे सिव जननी पासे नहीं अ अवासे पछे सुरनर असुरवरे देवा सुरनर असुर वरे. ॥ ढाल ३ तीसरी॥ अवतरीआओ कुंखे होय शान्त तिण कारण नामे खामी शान्त जोजन धनुष्य चालीश प्रमाण॥दोहा मृगलछन लावे अंतवर गीर अंतेवर चौसठ सहस्स भोग तयक्षीण क्षिण मयरराज भोग जेठ वदीचउदस वरस संयम श्री लयो आपणे दिवसा केवल श्रीलयो, पोष मास सहु नमे पुरी इन्द्रे आस पेडी उण धर्मतीर्थ भवजल निज तारण सामी शान्त ॥३॥ श्रीसीमंधर चक्कसरी मुनिपद भोगवे सह Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री प्राचीनस्तेवनावली . . . . ७ स्स वरस पच्चीस जेठ वदी तेरस वरस लक्ख संपूरन सामी लियोमोक्ष सम्पूर्ण स्वामी लयो मोक्ष ॥४॥ दुहा॥थुणिये सुजाण पांच कल्याण अणयर पुर श्री तिलो वरे देवा अणियर पुर श्री तिलोवरं श्री शान्त जिनेसर भवन जिनेसर हवे. विजय श्री शान्त करो, देवा हवे वीजे श्री शान्त करों ॥ सम्पूर्ण ॥ ॥ चौथका स्तवन ॥ देश मेवाडमें दीपता ए राह सोहे सहस्स फणा सोहामणा सोहे श्रीरे चिंतामण पासजी सोहे लोद्रवपुर महिमा, घणी, जब जागंती ज्योत उजासरे ॥सो० ॥१॥ होजी जग सहु आवे जातरी, दिन नवा नवा गेह गाटरे। सोहे स्नात्रपूजा नाटक भला, भला धूपधाणासु घाटरे ॥ सो० ॥२॥ ॥ढाल २री॥ सह्यां मोरी जूनो नगरभलो लोद्रवो, मांड्या सखरा मंडाण है सह्यां । पार्श्वनाथजीरो देहरो, Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ vwvvwvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvs. ८] . . . . श्री प्राचीनस्तवमावली आया सखरा मंडाण है सह्यां ॥जू०॥ १॥ सह्यां मोरी तीर्थ थानक तीर्थ थापियो, लीधो लीधो लक्ष्मीनो लाभ है सयां ॥ ज०॥२॥ सह्यां मोरी अन माता धन पिता, धन धन “थेरू” साय ॥ समां ॥ ज०॥३॥ ॥ दाल ३ री॥ धवल मंगल पांचे देहरारे, देव विमाण अवतार । दंड कलश धजा लव लवेरे । तील कोइ तोरण वार हर्षभर तीर्थ भेटस्यारे । आजमाने भमती २ मझार देइये तीनप्रदक्षणा सार श्रीपार्श्वनाथ जुवारीयां हर्षभर तीरथ भेटस्यां॥१॥ रणझण घंटा रणकतीरे, मांड्या खर्ग सुरबाद। मोटो तीरथ महिमा भलोरे, दीठा टले विखवाद । हर्षभर तीर्थ० ॥ २॥ समवसरण सोहामणोरे, अशोक वृक्ष अवतार । तीन छत्र शिर सोहतारे, त्रिभुवन तारणहार ॥ हर्ष० ॥३॥ ॥ दाळ चौथी॥ मुरत मोहन वेल'मुरत मोहन वेल हे, सखी Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री प्राचीनस्तवनावली म्हारी सहसफणा सोहे रलियावणा ये । अंगुली कमलीनी खेर रूडा सखी॥१॥मोरी आंखडीअणीयालीरे, फूल कमल केरी पाँखडीयारे, वदन पूनम को चांद।सखी०॥२॥अडले प्रमाणे रातादांत दाडिमे कुलीये पान चरण अवलंत पान चरण अवलंत है सखी ॥३॥मोरी नखचख रूप रेख वाणी सुवाणीय। जाय जोय मचकुंद,मेदल तीये चंपकलाल गुलाब; कंठ पीठ माय सुरंभ लये लये गलगले फूल माल ॥४॥ काने जी कुंडल मंडपरये शशी, जगमग ज्योति अपार ॥५॥चुनी चुनी जडिया मुगट घडिया सोवन घाट सुघाट । साहेलीये मोरी सोहे चिंतामणीजीरे पास। पूरे म्हारी मनडानी आस ॥६॥ सहेलडीये बाय बाजुबंद बेरखा सोहे चन्दन रये ससीया हीयाहार सार सिणगार सोहे वीचमोय सोय सिणगार;॥७॥पंचवर्ण अंगी घणीसुरंगीवीया जेसी वात मन वीकसे तन हुलसे सखी मोरज कोले घनसार सखीःमोरी सोहे ॥ ची० ॥८॥ Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०] श्री प्राचीनस्तंवनावली ॥ ढाल ५ मी ॥ अश्वसेन कुल चाँदलोरे माता वामा देवी रो नंदरे साह्यबीया । थारी सारे सुरनर सेवा, हुंतो देवारे ससीयर सेवा तोरे दर्शनरी स्वामी सुरतनी बलिहारी मुरतिनी बलिहाररे साह्यबीया ॥ १ ॥ तीन भुवनको राजीयोरे, जायो जायो पार्श्वकुंवाररे सा० ॥ २ ॥ तुहिं म्हारे जीवन आत्मारे, तुहिं म्हारे जीवन आधार । तुहिं म्हारे प्राण आधाररे सा० ॥३॥ दूजा देव तुझ ऊपरेरे, ओलु गोलु वारंवार । ओल गोलु वार हजाररे सा० ॥ ४ ॥ ॥ ढाल ६ ट्ठी ॥ साँभल जिनवर विनतिजी, थें छो चतुर सुजाण । सो बोले एक बोलसीजी, करवो आप समान चिंतामणी, म्हारे तुमसुं जी प्रीत ॥ १ ॥ करवो छे स्वामी मोहे दशाजी, करवो छे साहेब आप । भवइडा पीडा टलेजी, भवभव मांगू सेव ॥ चिं० ॥ २ ॥ आज नवनिध सिद्ध हुवाजी, आज भलो शुभ दिन | दंड कलश शिष्य जैतसीजी, जैतसीनी जोड प्रमाण ॥ चिं० ॥ ३ ॥ पुंसर्ण. Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री प्राचीनस्तवनावली ॥ आठमनी पूजा स्तवन लीख्यते ॥ ॥ ढाल १ ली। सोलमा जिनवर सेवियेजी, प्रह समे बे कर जोड।सुप्रसन्न वदन सोहामणो, पूरे वांछित कोड॥ सो० ॥१॥मुझ मन मोडं जिनगुणेजी। जिम साधु कर बंद राय। नाम सुणी मन हुलसेजी, लच्छी लीला थर थाय ॥ सो० ॥२॥ तुं जगजीवन वालहो जी, तुं गति तुं मति देव माहरो। चिंतित तुहिय सजीतण करो ताहरी सेव ॥ सो० ॥३॥ धन धन तेह न ताहरोजी, पूजा रचाइ शुभ रसाल। सुलभ बुद्धि हुवे ते सदाजी धन धन तसु अवतार ॥सो०। ॥ ४ ॥ रायपसेणी सूत्रमेंजी, पूजा सत्तरप्रकार । अति गणे उलसे आदरोजी, ते सुणजोई तिकाल ॥सो०॥५॥ ॥ढाल २॥ ... भवियण भगवंत पूजो भावसु, त्रिकरण शुद्र त्रिकाल हो भवियण, हवे विस्तार पूजा सुणो Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ MANNARMANANA । १२] . . . . श्री प्राचीनस्तवनावली आणी नबल स्नेहहो भवियण।भगवंत॥१॥स्नान करी पुजा दसे करी, पावन मनरंग हो भवि०। पेरीस एक पट धोतीयो, एक पट उतरासण सार हो भवि० भग०॥२॥ मस्तक तिलक सोहामणो मौन थइ मुखकोस हो भ० ॥ पूजा अनेक विधि कीजिये, छः दिशे राग न रीस हो भ० भ०॥३॥ रुमथो हत्थे धरिवो, पूजिस प्रतिमा एह । भ० । हवे विस्तार पूजा सुणो, आणी नवलो स्नेह हो भवि० भग० ॥४॥ ॥ ढाल ३ तीसरी ॥ सतर भेद पूजा सुणो, उत्तमनीअ करन रे हो. गोत्र तीर्थकर बांधीयो, भावे तो भव हरणी रे ॥ सत्तर० ॥१॥ गंगोदक खीरोदक बड़े, भौगाल विशालरे । पहेली पूजा कीजिये, प्रतिमानो पर वालो रे केशर भरियो कचोलडो, मृगमद चंदन भरीरे, दूजी पूजा कीजिये, कीजे तो भावना भेरीरे ॥ सत्तर०॥२॥ देव दुगपेडोमणी, तीजी तो पूजा Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री प्राचीनस्तवनावली [ १३ जाणोरे । चौधीरे पूजा अति सोहे, वासक्षेप खेव - णोरे ॥ सत० ॥ ३ ॥ पगजामो करी खंधेसरे, भाल कंठ पूजीजेरे, उदन अंतर वसे नबे, अंग तिलक भरीजे रे ॥ सत्तर० ॥ ४ ॥ दमणी पाडल केतकी, जाई जुई मचकुंदोरे । चमेल शरीर वन मालती, अति उद्दकुंद अलमलदारे ॥ सन्तर० ॥ ५ ॥ इण विधविध फूलावडी, प्रभु चरणे वरचावोरे । पंचमी पूजा करे जे, मन वांछित फल पायेोरे ॥सत्तर० ॥६॥ ॥ ढाल ४ थी ॥ • छट्ठी पूजा हवे सुणोरे, अति सुगंध सुविशाल । जिनवर कंठे मोमयोरे, वृद्ध वृद्ध भावे भेटियेरे, भयभंजन भगवंत फुलारी माल साहेब समरियेरे, सोलमा जिनवर संत ॥ साहेब० ॥ १ ॥ जिनवर अंगे अंगी रवीरे, लेइ पंचवर्णना फूल । सुर नर किन्नर मोमयोरे, सातमी पूजा अमोलरे ॥ साहेब ० ॥२॥ जिनवर कंठे मोरीयोरे, कस्तूरी कपूर। इणीपरे षूजा आठमीरे, जिणे कर्म किया चकचूर ॥ साहेब ० ॥ ३ ॥ Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४] . . . . श्री प्राचीनस्तवनावली प्रभु पर कोरणीरे, रत्न जडित सोविसाल ॥ पंचवर्णनी ध्वजा लहलहेरे, नमो अह प्रकास ॥ ॥साहेब०॥४॥ ॥ दाल ५ मी॥ __ आभरण ने अति दीपतोरे लाल, सोभे शांतिजिणंद सुखकारीरे। मेरे मनमें थें वसोरेलाल ॥ दिन दिनअधिक आनंद सुख०॥१॥मस्तक मुकट सोहामणोरेलाल॥काने कुंडलदोय सुख॥ बांय बाजुबंद बेरखारे लाल। कंठे नवसरथो हार ॥ सु० ॥२॥ बीयु पासे चवर वीजतारे लाल । सिंहासण सरदार सु०। तीन छत्र शिरे सोभतारे लाल; दशमी पूजा उदार सु०॥३॥दमणो पाडल केतकीरे लाल, राय चंपोराय बेल॥सु०॥विमल शरीर वनमालतीरे लाल, फूलगण अम मेल ॥सु॥४॥ फूलमेल रचीया भलारे लाल,फूल मंडप सुस्नेह-सु०फूल तणा सोहे चन्द्रवारे लाल, फूलांरी वंदरवाल सु०॥५॥ फुला तणा सोभे जुंमकारेलाल॥फुल-तोरणसुस्नेहा॥सु०॥ फूल धरे मन मोहीयोरे लाल, इग्यारमी पुजा एह ॥सु०॥६॥ Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री प्राचीनस्तवनावली . onnnnnn ॥ ढाल ६ ठी॥ जहां प्रतिमारे देवतारे, फूल फूल वर्षावेरे। सरस सुगंध सोहामणो, जोजन फूल विछावेरे। पग देतो पीडा नहीं होवेरे, जिनवर अतिशय पर भावेरे। फूल पगर अमर कीजियेरे,वारमी पूजासोहावेरे॥१॥ दर्पण भद्रासन भणेरे, नंदावत परधानोरे। पूरण कलश अम झगमगेरे श्रीवत्सने वर्द्धमानो रे ॥ आठमा मंगल साथीयारे, जिनवर आगल कीजेरे। इण परे पूजा तेरमीरे, नरभर लावो लीजेरे ॥कृष्ण अगर उखेवणारे। धूप करो सलारस धूपनोरे, चवदमी पूजा सोहामणीरे ॥२॥ श्री जिनवर गुण गाइयेरे, सुंदर रस कलश रूपसता सुर नर तास जीव पंदरमी पुजा अमोल हवे नाचे देवांगणा सजि सोले सिणगार । गमगम वाजे घूघरा, पायें नेवर झणकार ॥३॥ चन्द्रमुखी इणपर कहे,नाटक भेद बतीस । खइखई शब्द सोहामणो, गावे राग छत्रीस ॥४॥ सोलमी पूजा सुणो हवे,वाजा वाजत मृदंग। Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www १६] . . . . श्री प्राचीनस्तवनावली ताल कंसारिया झालर सुख पवित्र ॥५॥ वाजे वीणाजी वांसली, वाजीया जागीजी ढोल। मदन वेल वाजेमका गीतोरार मजोर ॥६॥ सतर भेद पूजा सुणो, सूत्र तणे अनुसार । भाव धरी नर जे करे, तस घर मंगलमाल ॥७॥ ॥ ढाल ७ सातमी ॥ जिन प्रतिमा जिन सारिखी,श्रीमुखसु जिनघर भाखेरे। यहां संशय कोइ नहीं, सौधर्म स्वामी साखरे ॥१॥ झूठ कदाग्रह वारियो, जिन प्रतिमा ते नवी माने रे, पण पापीयो ते भरे, परमारथ मूल न जाणेरे ॥२॥प्रभावती पूजो सदा, जिनप्रतिमा पूजणमें अपनेरे, श्री पंचम अंगे करी जिनप्रतिमा जे आसरणोरे ॥३॥ सूयाभे कीनी सदा, जिनपूजा सतर प्रकारेरे। द्रुपद सुता सखी द्रौपदी, श्री ज्ञाता अंग विचारोरे ॥४॥ आर्दक कुंवर मन निरमलो, प्रत्ये वूधी प्रतिमा दीठीरे, त्रिकरणे पूजो सदा, जिनप्रतिमा अंत सव साखीरे ॥५॥ मेस्वसे Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ nirmwAnnnnnn श्री प्राचीनस्तवनावली . . . . [१७ मोरो मन जेमे, सतिय मने भरतारोरे । जो मुज मन जिनवर वसे॥श्री फरबत कर सणगारोरे ॥६॥ अध्यने भावे करी मन अंगे पूजा कीजोरे । फरवत पुर मंडणसदा, श्रीशान्तिनाथ समरण कीजेरे॥७॥ ॥ कलश ॥ एम नेण ससीकला वर्षेमासआसु शुभभणी। श्रीफरवत मंडण दुरित खंडण संथुण्यो त्रिभुवन धणी । श्री रत्न हरखत पुरण वाचक पूरखें सुख संपदा । संसार सागर हुवा सुप्रसिद्ध सोलमा जिनवर सदा ॥ होजी सोलमा जिनवर सदा ॥ -00 ॥ अष्टमीनो स्तवन ॥ पंचतार्थ प्रणमुं सदा, समरी शारद माय। अष्टमी स्तवन हर्षे रचुं सुगुरु चरण पसाय ॥ ॥ ढाल ॥ __ हारे लाला जंबुद्वीपना भरतमां, मगधदेश महंतरे लाला-राजगृही नयरी मनोहरू,श्रेणिक बहु Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ AAAAAAAAAAAA. . श्री प्राचीनस्तवनावली बलवंतरे लाला। अष्टमी तिथि मनोहरू ॥ हारे० चेलणा राणी सुंदरू, सीयलवंती सरदाररे लाला श्रेणिक सुत बुध छाजता,नामे अभयकुमाररे लाला ॥ अष्टमी०॥२॥हारे लाला वर्गण आठमी एहथी, अष्ट साधे सुख निधानरे लाला-अष्टमद भांजे वन छे, प्रगटे समकित निधानरे लाला ॥ अ०॥३॥ हारे अष्टभय नासे एहथी, अष्ट वृद्धि तणो भंडाररे लाला। अष्ट प्रवचन ए संपजे, चारित्र तणो अणगाररे लाला ॥ अष्टमी०॥४॥ हारे लाला अष्टमी आराधन थकी, अष्टकर्म करे चकचूररे--लाला, नवनिध प्रगटे तस घरे, संपूरण सुख भरपूररे लाला ॥ अष्टमी० ॥५॥ हारे० अड दृष्टि ऊपजे एहथी, शिव साधू गुण अंकूररे लाला । सिद्धना आठ गुण संपजे, सिद्ध कमला रूप स्वरूपरे लाला ॥ अष्टमी०॥६॥ ॥ढाल २॥ जिहो राजगृही रलियामणि, जिहो विचरे वीरजिणंद । जिहो समवसरण इन्द्रे रच्युं, जिहो Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री प्राचीनस्तवनावली . . .......१९ सुरासुरनी वृंद ॥१॥ “जगत सहु वन्दो वीर जिणंद" ॥ टेक ॥ जिहो देव रचित सिंहासणे, जिहो बैठा श्री वर्धमान । जिहो अष्ट प्रतिहारज सोभता, जिहो भामंडल झलकंत ॥ जगत०॥२॥ जिहो अनंतगुणे जिनराजजी, जिहो पर उपकारी प्रधान। जिहो करूणासिंधु मनोहरू, जिहो त्रिलोके जगभाण ॥ जगत०॥३॥ जिहो चौतीश अतिशय विराजता, जि० वाणी गुण पेंतीश ॥ जिहो बारे परषदा भावसुं, जिहो भगत नमावे शीश ॥ जग० ॥४॥ जिहो मधुरी ध्वनि दिये देशना, जिहो जिम आषाढीरे मेघ । जिहो अष्टमी महिमा वरणवे, जिहो जगबंधु कहे तेम ॥ जगत०॥५॥ ॥ ढाल ३ तीसरी ॥ रुडीने रढीयालीरे वादीला थांरी वांसळीरे। तेतो म्हारे मंदरीये संभळाय ॥ ए देशी. ॥ रुडीने रढियालीरे प्रभुथारीदेशनारे, तेतोजोजन लगेसंभलायरे। तिगड़े विराजे जिन दिये देशनारे, Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ vvvvvvvvvvvvvvvvvvw. २०) . . . . श्री प्राचीनस्तवनावली श्रेणिकं वंदे प्रभुना पायरे । अष्टमी महिमा कहो कृपा करीरे, पुंछे गौतम अणगाररे ॥ अष्टमी आराधन फल सिद्धनुरे ॥१॥ वीर कहे तपथी महिमा एहनोरे; ऋषभनो जन्म कल्याणरे ऋषभ चारित्र हुवो निर्मलोरे; अजितनु जन्म कल्यागैरे ॥ अ०॥३॥ संभव चवन त्रीजा जिनेसरुरे, अभिनन्दन निरवागरे। सुमति जन्म सुपास चंवनछरे । सुविधि नेमि जन्म कल्यागरे ॥ अ० ॥३॥ मुनिसुव्रत, जन्म अति गुणनिधिरे, नेमि शिवपद लघु साररे। पारसेनाथ निर्वाण मनोहरुरे, ए तिथि परम आधाररे ॥ अ०॥४॥ उत्तम गणधर महिमा सांभलीरे, अष्टमी तिथि परिमाणरे । मंगल आठ तणी गणी मालिकारे । तसघर शिव कमला परधानरे । अ॥५॥ ॥ ढाल ४ चौथी॥ अविश्यक नियुक्तिर्य भासे, माहानिशीथ सूत्ररे । ऋषभ वैस देडवीरज आराध्यो, शिवसुख पायु पवित्ररे । ए तिथि महिमा वीर प्रकासे, Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . श्रा प्राचीनस्तवनावली...........१ भविक जीवने भासेरे । शासन तारो अनिचलराजे, दिनदिन दौलत वाधेर ॥१॥ “श्री जिनराज जगत उपकारी” ॥ त्रिशलारे नन्दन दोष निकन्दन, कर्म शत्रुने जीत्यारे। तीर्थकर महंत मनोहरू, दोष अढारने वारे ॥श्री०॥२॥ मन मधुकर जिन पदकज लीनो, हरखी निर्खि प्रभु ध्यावरे । शित्र कमला सुख देओ प्रभुजी, करुणानंद पद पाउं रे॥ ॥श्री० ॥३॥ वृक्ष अशोक सुर कुसुमनी वृष्टि, चामर छत्र बिराजेरे। आशन भामंडल जिन दीपे, दुर्दुभि अंबर गाजेरे ॥ श्री०॥४॥ खंभायत बंदर अतिय मनोहर, जिन प्रासाद घणा सोवेर । बिंब संख्यानो पार न लेवू, दरसण कर कर मन मोहियर ॥श्री०॥५॥ संवत अद्वारे ओगणचालीसे वर्षे, आसुमास उदाररे ॥ शुक्लपक्ष पंचमी गुरुवारे स्तवन रच्युं छे ताहीरुरे ॥श्री०॥६॥ पंडित देव सोभागी बुद्धि लावण्य, सोभागी तिणे नामरे । बुद्धि लावण्य लीयो सुख सम्पूर्ण,श्री संघने कोड कल्याणरे ॥ श्री० ॥७॥ Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ uuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuu २२] . . . . श्री प्राचीनस्नवनावली ॥एकादशी-श्रीमल्लिनाथजीरो स्तवन ॥ नवपदसमरी मन सुधे,वलि गौतम गणधार। सरस्वति माता चित्त धरूं, वाधे वचन उदार ॥१॥ मल्लिनाथ उगणीसमां, जिनवर जगमें जेह । गुण गाइश हुं तेहना, सुगुण सुणो धरी नेह ॥२॥ किण देशे किण नगरमें, कवण पिता कुण माय। पंचकल्याणक परगड़ा, विगत करि कहुं वात॥३॥ ॥ ढाल १ ली॥ रामचंद्रके वाग आंबो मोरी रयोरी ॥ ए देशी. इणहिज जम्बूद्वीप, क्षेत्र भरत सुखकारी। नयरी मिथुला नाम, अलिका ने अनुहारी ॥४॥ तिहा नृप कुम्भ कहाय, राणी प्रभावती नामे । शीयल गुणे अभिराम, जस पसरयो ठामो ठामे ॥५॥ एक दिवस तिहां नारी, सुता सेज मझारे। देखी चउदे स्वप्न. ते जागी तिण वारी ॥ ६॥ पहोंती पतिने पास, सुपन सहु ते कया। नृप Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री प्राचीनस्तवनावली . . . . [२३ हरखे मन मांहे, अनुपम ए ते लया ॥७॥ सुपन तणे अनुसार पुत्री होस्ये पुन्यवंती। अर्थ सुणिने एह, घर पहोंती गह गहंती ॥ ८॥ कहुं प्रव भव वात, तिहांथीचवीने आया। वितसोका नामे नगर, महाबल नाम कहाया ॥९॥ ते मिलिया छए मित्र, सहु मिली दीक्षा लीधी। महाबलवंता मित्र, तपमें माया कीधी ॥१०॥ थानिकसेव्यावीश, गौत्र तीर्थकर बांध्यो। स्त्रीवेद उदार, पुन्य में पाप ए साध्यो ॥११॥ अणसण करिय तिवार, जिनधर्म सु लय लाई । छए मित्र जयंत विमान, सुरपदवी तिहां पाई ॥१२॥ ॥ ढाल २ ॥ श्री चंदा प्रभु पाहुणारे, ए देसी। इणाहिज जम्बूद्वीप में रे, भरतक्षेत्र कहिवाय रे। छए मित्र तिहां जइ ऊपनारे, ते सुणजो चित लायरे॥इ०॥१॥ पडिबुद्धा इक्ष्वा गमेरे, चंद्रछाया अंगराय रे। शंख काशीनोराजीयोरे, रूपी कुणाला Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .. श्री चीनस्तयमावली कहाथरे । इ० ॥२॥ आदीन जितशत्रु देशमेरे, जितशत्रु पंचाल कहायरे । जयंत थी चवीने सहुरे, इहां अवतार लहायरे ॥ महाबल जीव तिहां थकीरे, पुन्यवंत प्रधानरे । फागुण सुदि चोथनेरे, चविया जयंत विमानरे। इ०॥४॥प्रभावती ऊर अवतस्यारे, माल हुआ जब लीनरे।डोहलोएहवो ऊपनोरे, पिण पूरचा रहे दीनरे ॥ इ० ५॥जल थल ऊपना फूलडारे, सोवु सेज विछायरे। पंचवर्ण फूलना चंद्रवारे, सुगंध रूप सुहायरे ॥इ०॥ ६ ॥ नवसर हार फूलां लणारे, हुं पहिलं मनरंगरे। वाणव्यन्तरे तिहां देवतारे, पूरे तेह सुरंगरे॥इ०७॥मगसर सुदि इग्यारसेरे, जायोश्रीपुत्रीरत्नरे। अरधा निशी बोल्या पछी रे, माताजी हरखी मनरंगेरे ॥ ८॥ ॥ ढाल ३ तीसरी ॥ .. आदर जीव क्षमा गुण आदर ॥ ए देशी. - छपन कुंवारी आइ तिहां हरखे, जिनबर वंदि पायजी। जन्ममहोत्सव करिये जुमतिसुं, Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री प्राचीनस्तपावली [२५ गइ गइ गृहमति लायजी ॥ ६० ॥ १ ॥ चोसठ इन्द्र तिके प्रिण आवी, मेरू शिखर न्हवरायजी । गीत मधुर ध्वनि वाटिक करके, मूकी गया निज आवास जी ॥ छ० ॥ २ ॥ ह्निवे परभात थियो कुंभ राजा, जन्म महोत्सव कीधजी ॥ दशोट्ठण बहु जनने जीमावी, मल्लिकुंवरी नाम दीधजी ॥ छ० ॥ ३॥ एकरात बरस थया केहि ऊणा, अवधि प्रयुजी तामजी । पूर्व भव छय मित्रा केरो, लही आगम नामजी ॥ छ० ॥ ४ ॥ ते मुझ रूपे मोह्या सघला, आवश्ये इणे ठामजी । इम जाणी कुंवरी गृह मांहें, कनक मुरति करी तामजी ॥ छ० ॥५॥ मस्तक छेद कवल एक मूके, आप जिमे तीन मांहिजी ॥ देव शक्ति ते दुरगंध प्रगटी, मित्र देखाइ उछा हजी ॥ छ० ॥ ६ ॥ ते देखी छए मित्र प्रतिबुधा, सहु गया निज गेहजी ॥ हिवे मल्लि दिक्षा अवसर जाणी, दिये वरसीदान तेहजी ॥ छ० ॥ ७ ॥ Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ wwwwwwwwwwwwwwwww ~~ श्री प्राचीनस्तवनावली ॥ ढाळ चौथी॥ श्री जिनपतिमा हो जिन सारखी कही॥ एदेशी॥ मिगशर सुदि इग्यारस आवीया, तीनसे नर ले साथ । तीनसोनारी हो वली लीधी दीक्षा, छोड़ी सहु घर आथ ॥ मि० ॥ १॥ तिण हिज दिन संध्या समय थया, लहियो केवल राज । ततखिण समवसरण देवे कांधो, सीधा सघला काज ॥ मि०॥२॥ परषदा बारे ही बैठी तिहां। सुणे धर्म धरि नेह ॥ तिण समे छए मित्र पिण आवीया, ले दीक्षा तजि नेह ॥ मि० ॥३॥ अट्ठावीशगणधर स्थापियाजिणवरे, साधु सहसचालीश। साध्वी सहस पचावन जेहने, करें धर्म विश्वावीश ॥ मि०॥४॥ सहस चौराशी एक लख श्रावक, श्रावकणी लख तीन ॥ सहस पेंसठ छे ऊपर जेहने, तप जप नी या रीत ॥ मि०॥५॥ सहस पचावन आयु पालीने, उपशम धरिय उदार ॥ पर उपकारी हो श्रीजिनवर तणो, नाम लियो Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री प्राचीनस्तवनावली . . . . [२७ निस्तार ॥मि०॥६॥ पांचसे साधु अढिशे साध्वी, ले साथे परिवार । समेतशिखरे जिनवर चालिया, सुमति गुपति सुविचार ॥ मि०॥७॥ ॥ ढाल ५ मी॥ ॥आज हो पट मारा थपायो ॥ ए देशी ॥ मल्लि हो समेतसिखर सिधाया, गिरिवर देखी बहु सुख पाया ॥ सघला साधारे मन भाया । छोड़ी सकल संसारनी माया ॥ म०॥१॥ पुढवी पद पर पंकज लीधा, साधारा मन वंछित सीधा। डाभ संथारेसु मन दीधा॥धर्म शुक्ल ध्यानसाथे लीधा ॥ म०॥२॥ चौरीशी लक्ष जीव खमाया, पाप अढारे दूर गमाया। सिद्ध वधु मिलवा उमाया। पडिलेहि छोड़ी निज काया ॥ म०॥३॥ साधवी अंतर परषदा रहिये, वारह परषदा साधुनीकहिये, काउसग्ग करीने काया दहिये ॥ सिद्ध ध्यानसुं शिवपद लहिये ॥म०॥४॥ ऋतु वसंत फागुण सुखदाई, शुक्लपक्ष बारस अतिसाई । अर्धनिशि Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ ] श्री प्राचीनस्तवनावली जब भ्ररमी आई। तब महिजिन मुक्ति सिरिपाई ॥ ० ॥ ५ ॥ अविन्यासी अधिकार कहाई । परमय यतेन्द्र सुख कहिये । समाध्यान सरबंग सहाई । परम रस सर्व सोहाई ॥ मु० ॥ ६ ॥ सिद्ध बुद्ध अविरुद्ध ए कहिये, आदि न कोई एहनो लहिये ॥ जिन वचने कर सर दहिये ॥ अनुपम भावमां सदाही रहिये ॥ म० ॥ ७ ॥ ॥ कलश ॥ संवत सतरेसे छप्पने आसुमास उदारए । प्रतिपदा तिथि शुक्लपक्षे, जेसलमेर मझारए ॥ प्रधान पाठक श्रीकुशलधीरे, गुरुजी सानिद्ध करी । ए स्तवन कीधा कुशल लाभे, धर्म राग मनमे धरी ॥ ......... ॥ श्री पार्श्वनाथ स्वामीको सत्तर दालियो । पुरिसादाणी परगड़ो, जेसलमेर जिणंद । पंचकल्याणक जेहना पूजीश परमानंद ॥ १ ॥ जिनवरना गुण गावता, लहिये समकित सार । Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचानस्तबनावला ~ ~ ~ ~~~~~ ~~~ ~ ~ ~ ~ vvv. ~ ~ ~ श्री प्राचीनस्तबनावली . . . . .[२९ गोत्र तीर्थकर बांधीये, लहु तरिये संसार ॥ ३ ॥ रागभेद रलियामणो, जाणे चतुरसुजाण । भाव भगतिगुणभाखतां, जीवित जन्म प्रमाण ॥३॥ ॥ दाल १ ली॥ राग रामगिरी। जम्बूद्वीप माहे भलु,भरत क्षेत्र। नयरी वणारसी। ऋद्धि विचित्र ॥ ज० ॥१॥मरपति अश्वसेभ नाएपूत रामगिरिमनोहरी। देवीवामा कल्प॥ ॥ढील २ दूसरी॥ राग देसावें ॥ दशम सुर लोक चवी भूरि सुख भोगवी चैत्र वदि चोथ निशिगुण भरया हो प्रभुजी गु० ॥१॥ अश्वसेन राजा घरे, माता वामा उरे। हंस मानस सुर अवतरया हो प्रभुजी॥।॥२॥ चउदे सुपना लह्या, संत आगल कह्या। राय तिहां पाल कहे, मति विचारीये, अहो सुत्त विचारिये ॥३॥हम कुल Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०] . . . . श्री प्राचीनस्तवनावली गुणनिलो, पुत्र होसे भलो, दश दिशा खरग ज्युं, उद्योतकारी अहो उ० ॥३॥ ॥ढाल ३ री॥ · राग सारंग। अश्वसेन राय के सुत जायो, बामा राणी के सुत जायो ॥ पोस पढम दशमी दिने स्वामी, वंस इक्ष्वाग सुहायो॥अ०॥ १०॥ छप्पन दिशि कुमरी मिली गायो। नारकीया सुखपायो॥ अ०॥ ११ ॥ चौसठ इन्द्र मिली मनरंगे, मेरु शिखर न्हवरायो ॥अ०॥१२॥ शुभ अनुकुल समीरण वायु ॥आणंद अंग नमायो॥अ०॥१३॥थाल विशालभरी मुक्ताफल, सारंग वदन वधायो ॥ अ०॥ १४ ॥ ॥ढाल ४ थी॥ ॥राग वसंत॥ .. सुपन्न पन्नग पेख्यो प्रभुनी सार, प्रभु नाम दियो श्री पार्श्वकुमार । स्वामी नव करतन लीला Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री प्राचीनस्तवनावली [३१ वर्ण सोये, ॥ १५ ॥ प्रभावती राणी भरिये गुण अनंत । सुरनर नारी मन माहें वसंत । चित्तमाहें वसंत । सा० ॥ १६ ॥ भुजंग लंछन रूपे जगत मोह्यो ए । सा० ॥ GN ॥ दाल ५ मी ॥ ॥ राग वइरागी ॥ कमह कठण तप करत कानन मठ, पंचाग्नि साधे चित वहे अभिमान । कुमति देखाड़ बहु जनको मिथ्यात्व पाडे । तव प्रभु गज चड़ी आएरी उद्यान ॥ ० ॥ १७॥ जलतो भुजंग लीधो, परमेष्टि मंत्र दीधो । धरणिंद कीधो-कृपानिधि शुभ ध्यान ॥ क० ॥ १८ ॥ मिथ्यात्व मारग टाल्यो, कमठको मान गाल्यो । लोक देइ राडी तेरो तपरे अग्यान ॥ क० ॥ १९ ॥ ॥ ढाल ६ ट्ठी ॥ श्रीराग ॥.. लोकान्तिक सुर आया जंपे जयकार | जिणने जणावे दीक्षा तणो अधिकार ॥ लो० ॥ Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . . श्री प्राचीनस्तकमावली ३२] इग्यारस पोस सणी, प्रभु त्रिभुवन धणी; कर्म छेद न भणी ॥ तजति संसार । लो० ॥ २० ॥ पंचमुष्टिं लींचकरी, प्रभु अणगार हुआ संयम शरीरा गुणवंत भंडार ॥ लो० ॥ २१ ॥ ॥ ढाल ७ सातमी ॥ राग कानडो॥ अमेम अमाय अकोह मच्छर नहीं ॥ लवलेस लोभ सनरी, अप्रतिबंध अकिंचन अमदन दायक संकल अमयदानरो । अम०॥२२॥ सुमति गुपति सोभित मुनिनायक । उपयोग एक धर्म ध्वानरो ॥ पंच इन्द्रिय विषयारस जीत्यो॥ स्पर्शन रसनं प्राण चक्षु कानरो॥ अम० ॥ २३ । ॥ ढाल ८ मी ॥ राग आशावरी ॥ पासजिणंद स्वामी हौं। तोरी अनंत क्षमा॥ शक्ति थकी तुं सहे उपसर्म । ततरिवण तोड़े कर्म बंधन वर्ग ॥ पा ॥ २४ ॥ कमठ बढ्यो कोपे Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ mi श्री प्राचीनस्तवनावली . . . . [३३ प्रभु ऊपरे, मेघ घटा वरसे जल बहु परि ॥ पा० ॥२५॥ धरणिंद आवी कमठ धिकारयो, जिन आशातना करतो वारयो ॥ पा० ॥ २६ ॥ ॥ दाल ९ मी ॥ राग गुडा॥ चेत्र पढम चोथ वासरे, जिनवर अहम तष आदरे । प्रभु पासरे। पूरे आशरे ॥ २७॥ चार कर्मनो क्षय करी, पामीश निर्मल केवल सिरि ॥ सुर आवेरे ॥ गुण गावेर ॥२८॥ माणकहेम रूपा तणो, विरचे तिगड़ो, सुर जिन तणो ॥ प्रभु सोहे रे, मन मोहेरे ॥२९॥ कुसुम वृष्टि विह संतिया। भागु डर दुख हंसतिया ॥ प्रभु संगरे । मन रंगेरे ॥३०॥ ॥ ढाल १० दशमी ॥ राग मारू ॥ धन धन ते नरजी, तेहनो जन्म प्रमाण । बारह परषदा मांहि बेसी। श्रवण सुणे तेरी वाणी ॥ ध०॥३१॥ तीन छत्र शिर उपरी सोहे, Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ ] श्री प्राचीनस्तवनावली चामर ढोल इन्द्रजी । गयणं गण सुर दुंदुंभी वाजे, पेखता परमानंदजी ॥ ध० ॥ ३२ ॥ मालन कौशिक राग आलापत, अमृत वाणी अनूपजी ॥ केवलज्ञानी धर्म प्रकाशे, जीवदया क्षमा रूपजी ॥ ध० ॥ ३३ ॥ ॥ ढाल ११ इग्यारमी ॥ राग गोडी ॥ मोह मिथ्यात्व निंद्रा तजो, जीव जागोरे २, परिहरो पंच प्रमाद || भविक जी० ॥ जी० ॥ जिनवर दे उपदेश, धर्म ध्यान लागोरे ॥ ३४ ॥ डाभ अणी जल बिंदुवो || जी० पडता न लागे वार । भ० जी० ॥ ३५ ॥ रागद्वेषक पांडुवा जी० मति करजो विषवाद ॥ भ० जी० ॥ ॥ ३६ ॥ इणिपरे चंचल आउखों, जी० सकल कुटुम्ब परिवार भ० जी० ॥ ३७ ॥ ।। ढाल १२ मी ॥ राग केदारो || सो वर्ष पाली आउखो, तेतीश मुनि परिवार । वगारी पाणी प्रभुरया, मास संलेखणा सार ॥ ३८ ॥ Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री प्राचीनस्तवनावली . . . . [३५ जिणंदराय चढ्योरे, समेत गिरिंद ॥ तिहां पाम्यो रे, परमाणंद जि० ॥ प्रभु श्रावण सुदि आठम दिने, श्रीपास शिवपुर गाम। निज कर्म ततखिण चूरिया, जिके दारुण परिणाम ॥ जि०॥३९॥ ॥ढाल १३ मी॥ राग परदो॥ तुं अरिहंत अकल, अखल स्वरूपी तुं निराकार। निरंजन ज्योति रूपी ॥ तु० ॥ ४०॥ ए पिंडस्थपद रूपस्थ। रूपातीत ध्यान हैरी । ए मन भंग भविभगवंत॥बहु परि दोर हैरी॥तु०॥४१॥ ॥ ढाळ १४ मी ॥ राग सूहव । संसार सागर दुःक्ख जल निवड़ति नर बोहित । शुद्ध भाव समकित वासना। शिव सुख करण समत्थ॥ ४२ ॥ जिन प्रतिमा जिन सारिखी वन्दनीक । भगति करो निरभिक जि०॥भगवति ज्ञाता प्रमुख ने। उपदिशी प्रतिमा एह। तो विण जिके माने नहीं, मूढ पशु हुवे तेह ॥जि०॥४३॥ Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री प्राचीनस्तवनावली ॥ ढाल १५ मी ॥ राग खंभायती ॥ जेसलमेर जीरावलोरे, नागद्रह करे हेडेरे । सोरीसरो संखेश्वरोरे, गोडीपूर दुःख फेडेरे ॥ ४४ ॥ तोरी जागती जगनायक । महिमा जग धणीरे, तुंतो तीर्थे सुख संपति ॥ पूरण सुरमणिरे ॥ टेक ॥ कलिकुंड आबु अमीझरेर, फलवर्द्धिपूर जोधाणे रे । तारंगपूर पंचासरेरे, खंभायत वरकाणेरे ॥४५॥ ३६].. ॥ ढाल १६ मी ॥ राग कल्याण ॥ निजी मेरो मानव भव आज प्रमाणरे ॥ तुं त्रिभुवनपति सुण्यो जग भाण । भाव भगति आनन्द मति आणरे | मेरो० ४६ ॥ च्यवन१ जन्मर दीक्षा३ ज्ञान४ निरवाणरे५ इणपरे पंचकल्याणक जाणरे || मेरो० ॥ ४७ ॥ ॥ ढाल १७ सतरमी ॥ (कलश) इम थुण्यो जेसलमेर मंडण, दुरित खंडण शुभ मने । रस करण दरसन तरणी वरसे, ( १६५६) Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री प्राचीनस्तवनावली . . . ३७ आदि जिन पारण दिने ॥ जिनचंद सूरज सकल चंदन । मृगमदा केशरी करी। प्रह समय सुंदर पार्श्व पूजे, तेहनी धन्यासिरी ॥४८॥ NAGORoom श्री शान्तिनाथ जिनस्तवनं श्री शान्ति जिनेश्वर सोलमारेलाल, शान्ति तणा किरताररे सोभागी ॥ श्री० ॥ आंकणी ॥ नगर हस्थिीनापुर दीपता रे लाल, जाणे अलख स्वरूप रे सोभागी। राज करे रलियामणो रे लाल ॥ विश्वसेन भूवालरे-सोभागी०।श्री ॥१॥ तसतरुणी रानी अति दीपतारे लाल, अचिरा रूप रसालरे सोभागी ॥ सुख सेजांय पोठ्या थकारे लाल पोढंती आवासरे सोभागी ॥ श्री०॥२॥ गजगति चाले मलकतारे लाल, सुन्दर पियुजीरे पासरे सो० चउदे सुपन्न स्वामी मे लियारे लाल। हुवा हरख अपाररे सो० ॥ च० ॥३॥ हस्ति वृषभ सिंह दीपतारे लाल । लक्ष्मी पुष्पनीमाळरे Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Vvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvarun ३८) . . . .. __ श्री प्राचीनस्तवनावली सोभागी ॥ चंद सूरज धजा सोभणारे लाल । कुंभ कलश सुविचाररे सोभागी॥च०॥४॥पद्म सरोवर क्षीर समुरे लाल। बारमे देवविमानरे ॥ सो० ॥ बे बारणे रत्ने दिवला दीपतारे लाल । धुम पडिया अति तेजरे ॥ सो० ॥ च०॥५॥ राजाजी दीयो बेसणोरे लाल। घणोइ दीनो सनमानरे सोभागी॥ राजाजीपंडित बुलावीयार लाल । पूछे प्रश्न विचाररे सोभागी ॥रा०॥६॥ सुपना तो देखी राजा हरखियारे लाल। पुत्र होसी सरदाररे सो० ॥ तुम कुल सोभा दीपावसेरे लाल। हम कुल तणोई आधाररे ॥ सो० ॥ श्री० ॥७॥ अनुक्रमे प्रभुजी जन्मीयारे लाल। जेठ विदीतेरस वाररे सो० ॥ कंचन वरणो शरीर छे रे लो । दीपे दीपे तेज अपाररे सो०॥श्री॥८॥छप्पन कुमारी मिली करीरे लाल। सूतक, कर्म निवाररे सो०। चोसठ इन्द्र पधारियारे लाल॥मुख जंपे जयकाररे सो० ॥श्री०॥९॥ इन्द्र इन्द्राणी मिली करीरे लाल। लेगया मेरुरे पासरे सो० । स्नात्र महोत्सव Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -~vvvvvvv श्री प्राचीनस्तवनावली . . . . [३९ सुर करेरे लाल। पूजा विविधप्रकाररे सो०॥श्री० ॥ १० ॥ भुंगल भेरी अंत घणारे लाल। लावे छे नवी नवी रीतरे सो०। इन्द्र ता ता थई नाचियारे लाल। इन्द्राणी गावे छे गीतरे सो०॥श्री०॥११॥ इणंद नणंद मिली करीरे लाल, ले गया माताजी के पासरे सो०। राजाजी महोत्सव मंडावीयारे लाल । दे दे दान अपाररे सो०॥श्री०॥१२॥हस्ती " तो दीना राजा घूमतारे लाल। ऊपर लाल अंबा डरे सो० । घोडा तो दीना राजा हीसणारे लाल। मोतीय जडित पलाणरे सो० ॥श्री०॥१३॥सोनो तो दिनो राजा सोभणोरे लाल। रूपा को अंत न पाररे सो०। मोती तो दीना राजा ऊजळारे लाल। श्रीफल तंबोल अपाररे सो० ॥१४॥ थालां तो दीनी राजा ऊजलीरे लाल।दीनी दीनी कनक कचोलरे सो०। मोती तो दीना राजा मोजरारे लाल । दीनी दीनी पंडिताने सीखरे सो०॥ श्री० ॥ १५॥ राजलीला सुख भोगीयारे लाल । भोगता भोग विलासरे सो० । वैरागे मन वालियारे लाल। Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४. . . . . श्री प्राचीनस्तवनावली ओ संसार असाररे सो० ॥१६॥राज छोडी संजम लीयोरे लाल। करता उग्र विहाररे सो० ॥ तप तपीया अति आकरारे लाल। जाणे मेरु समानरे सो॥श्री०॥१७॥ कर्म खपाय हुआ केवलीरे लाल। पहोंता छे मुक्ति मझाररे सो०। कर जोडी कवीयण कहर लाल। म्हारी आवागमन निवाररे सो० ॥मने भवजल पार उताररे सो० मने मुक्ति मारग पोचायरे सो०। मारो जन्म मरण निवाररे सो०॥ १८॥ ॥स्तवन॥ सोहे सोरठ देशमें, तीरथ उत्तम एह । जात्रा करण आवे घणा, जिहां भविजन गुण गेह ॥१॥ जिण ए गिरि फरस्यो नहीं, नवी निरख्यो नयणेह । शक्ति छता विण अनुभवे, गर्भावास नर तेह ॥२॥दीपे मरूधर देशमें, फल वर्द्धापूर सार। तिण के वासी बहु गुण, सुकृत भंडार।ओसवंश अधिक जस,गडिया गोत्रसु नाम। Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रा प्राचीनस्तवनावली . . . . [४१ राज सभा श्रृंगारक, संघवी राजाराम ॥२॥ लूणिया गोत्र सुशोभित, संघवी तिलोकचन्द गिरिवरकी महिमा सुण, पायो परमाणंद ॥ कुंकुमपत्रि भेजके, बोलायो बहु संघ । प्रथम करी पालीपूरे, रथयात्रा मनरंग । मिरजापुर जेनगरका, किशनगडावी काण । मेड़ता सोजत नागोर, जेशलमेर जोधाण ॥ पालीपूर जालोरका, पालणपूर भीनमाल । संघ समेला संचरे, पाटण नगर विशाल ॥७॥ तिहां जिनचैत्य जुहारके, देव द्रव्य कर वृद्धि ।शस्वेश्वर प्रभु भेटिया, करी आतम गुण शुद्धि ॥ पाटण राधनपूर तणा, अमदावादी संघ। साथ लेइ गिरिनारे भेट्या नेमि उमंघ॥ श्री जिनचंद पटोधर श्री खरतर गच्छनाथ। श्री जिन हर्ष सूरिसर, बोलाविया निज साथ । खरतर आचारज युग, श्री जिनचन्द मुनीश। श्री सिद्धसूर कवला पति, साथे धूरिसु जागइ ॥९॥ संवेगी साधु वली, समयोचित गुणवंत । संघ साथे बहु विचरे, धरता समतावंत ॥ सामायिक पडिकमणादिक Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२ ] श्री प्राचीनस्तवनावली 1 होय जसु संजोग । धर्म तणो उपदेश प्रवर्ते, विघ्न वियोग ॥ १० ॥ कोश वृद्धि पूजादिक, तिहां करके शुभ काज । अनुक्रम विमलाचल गिरि, आया संघ समाज ॥ हाथी घोड़ा रथ बहु, पयदल करत अवाज ॥ संघ तणी रक्षा करे, भय जावे सब भाज ॥ ११ ॥ दूर थकी गिरि देखके, माणिक मोती मेह | संघ सहित दुप संघ पति, वधावे गुण गेह ॥ तलहटी यात्रा ओछब करी, फरस्या श्री गिरिराय । ऋषभ जिनन्द जुहारिया, आनन्द अंग न माय ॥ १२ ॥ आज भलो ऊग्यो दिन, प्रगट्यो सुकृत आज । आज जन्म सकलो भयो, भेट्या श्री गिरिराज । विविध परे जिनराजकी, पूजा करी उछरंग। गुरु भक्ति साहम्मी वच्छल, करी हर ख्यो संघ ॥ १३ ॥ अंबा चक्केसरी गोमुख, कवड जक्ष सुपसाय । मनह मनोरथ सब फल्या, संघतणा सुख दाय ॥ भावशुद्ध करी ए गिरि, फरस्ये जे नरनार । नरकादिक दुर्गति नहीं, पावे ते संसार ॥ १४ ॥ Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री प्राचीनस्तवनावली . . . . [४३ ॥ कलश ॥ इम विमलगिरिवर मौलि मंडण आदि जिनवर संथुण्यो । अट्ठारेसे छासठ माधव, शुक्ल द्वितीया गुण भण्या। श्रीमंत अमृत धर्मवाचक शिष्य निज मनमें धरथा । इण परे क्षमा कल्याण पाठक आत्मगुण निर्मल करथा ॥ ॥ श्री समयमुन्दरजी कृत पोषधवतनो स्तवन ॥ ॥दोहा॥ जेसलमेर नगर भलो, जिहां श्री पार्श्वजिणंद। प्रह उठी नित प्रणमता, आपे परमाणंद ॥१॥ तासु चरण प्रणमी करी, पौषध विधि विस्तार । पभणिसुंश्रावक हित भणि, आगमने अनुसार॥२॥ पोसो पोसो सहु करे, पोसो करे सहु कोय। पिए पोसा विध सांभलो, जिम निस्तारो होय ॥३॥ ॥ढाल॥ ॥ प्रभु प्रणमुरे, पार्श्वजिनेश्वर थंभणा ॥ए राह ॥ पहिले दिनरे, सांज समे उपगरण सहु, Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४] . . . . श्री प्राचीनस्तवनावली पडिलेहीरे, रूडी परे राखे बहु । पाछली रातेरे, साधु समीप आवी करी, राइ प्रायच्छितरे, प्रथम करे मन संवरी ॥ त्रुटक॥ संवरी श्रावक करें पोसो, अट्ठ पोहरी गुरू मुखे। उचरेदंडक तीनवेला, सामायिक पिण तिणमुखे॥ पछे करे पडिक्कमणो, साधु वंदे तिहा कणे । कर्म भूमी आठमे मंगलिक कुला भणे ॥१॥ पडिलेहणरे, अंगहीये सघली करे। उपासरेरे, पूंजी काजो उद्धरे । इरियावहीरे, थापना आगे पडिक्कमे॥ करे सिज्झायरे, साधू ताहुने पाय नमे॥ पाय नमे सघला साधु केरे, सुणेसुगुरू वखाणए। ध्यान करे अथवा गुणे प्रकरण कहे अरथसुजाण ए॥ पोण पडिलेहण करीने मात्रा पिण पडिलेह ए। जल घड़ा लोटी बाटकाने पडिलेहवा वली तेह ए ॥२॥ गुरु साथेरे, चैत्य प्रवाडी करे खरी। देव बन्दनरे, शकस्तव पांचे करी । उपासरेरे, आइ इरि Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री प्राचीनस्तवनावली . . . . .[४५ यावहि पडिक्कमे ॥ आगणोरे आलोई नीचा नमे॥ नीचा नमे बेसणे बैसे, मिच्छामि दुक्कड़ देईने। तिविहार हो तो पाणी पीकर मुंहपति पडिलेइने॥ नवकार गुणतो पाठ भणतां पहोर तीजे दिन रहे। पडिकमी इरियावही पहेली, बहु पडिलेहण करे॥३॥ ____धर्मशालेरे, पूंजी इरियावही पडिक्कमे, पाडलीरे, थापना पडिलेहे समे । मुहपतिरे पडिलेहे ऊभा थई । करे गुरू मुखरे, पच्चक्खाण मन गह गई ॥ पछे देइ खमासमण वस्त्र सघला आपणा। पडिलेहवा मात्रा तीण परिचरवलो पुंजण तणा॥ देहनी चिंता काज जांताकरेभगवन आवस्सही। मारगे इरियासमिति सोधे, आवता कहे निस्सही॥ ॥ढाल १ ली। ॥ कर जोडी विनवूजी, एराह ॥ हिव भवियणरे तुमे साँभलोजी ॥ गुरूने नमावो शीश । सामायक पोसा तणाजी ॥ दूषण Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६] . . . . श्री प्राचीनस्तवनावली टालो बत्रीश ॥ वली बत्रीश दूषण वारतानेमारने पासे पालठी। करे काम सावज ले उटिंगण आलस कर करडका मोडए॥ खणे खाजी वीसामणि करावे, ऊंघमल कर छोड़ए ॥५॥ ढाल दश दूषण हिवे मन तणाजी। सांभलजो चित्त एक । अनोपम अधिक नल हे किरियाजी मनमे नहीं विवेक॥ ॥ सुविवेक धन जस लाभ वांछे, करे पोसो विहतो। पोसो करीने करे नियाणो, पुत्र प्रमुख ने इहतो॥ अभिमान रीसे करे पोसो, धरे फल संदेह ए। वली विनय विवेक लिगार न करे, मन दूषण दश एह ए॥६॥ __ वचन तणा दूषण दसेजी, जाणो इणे प्रकार। कुवचन बोलो लोकनेजी । दे दूषण सहिकार ॥ ___ सहसात्कारे कलंक दे वली आपछंदे बोलए। संक्षेप सूत्र करे आलावें कलह करे निटोलए। उपवास करीने करे विकथा मांडी न राखे संपदा Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Annnnnnnn श्री प्राचीनस्तवनावली . . . . [४७ आइ बैठो ऊठो एहवी, कहे भाषा सरवदा ॥७॥ काया वचन मन तणाजी।दूषण ए बत्रीश ॥ टाले दूषण तेहनोजी, पोसो विश्वावीश ॥ विश्वावीश बोले वली उघाड़े मुख आपणे । छूटा ग्रहीसे बात न करे, पांच दूषण परिहरे॥ उपवास करीने दिवस पोसोनकीघोहवे तो करे । इक पक्ख छोड़ी नहींतो उत्तराध्ययनेआखर अनुसरे॥ चउपहोरी पोसो कह्योजी, सूत्र सिद्धांत विचार । हरिभद्र सूरि विवरो कह्योजी, वाइसइ सरसार । बाइसे सरसार बोले, दिवस प्रति करिवो नहीं। पोसो अतिथि संविभाग बिहु परव दिवस करीवोसही। दृष्टि शब्द तणे अरथे, सेलंगा चारिज करे। पोसो पजसण सर्व कल्याणक, तिथि पणे ए आदरे ॥९॥ उपधाने पोसो कह्योजी,सूत्र निशिथ प्रमाण। दुविहार तिविहार जीमणोजी, एक विगय घृत जाण।आचारणी परंपर पूरवे आचारिज कही। Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ NAAM ४८] . . . . - श्री प्राचीन स्तवनावली भगवंत भाख्यो सत्य एहवो, खांचा ताण करवी नहीं, तिविहार पोसो चार पहुरी, अठपहुरी, सीमकरी तीन गच्छ तणी आचरणी, अवधि छे पण आदरी ॥१०॥ ॥ढाल १ ली ॥ कपर हुवे अति उजलोरे ॥ ए राह ॥ सांझ समे थंडिल करेरे, वारु वारंवार। इरियावहि इम पडिक्कमेरे, जयतिहुण कहे सार ॥ संवेगी श्रावक सांचो पोसो एह । एतो भगवंत भाख्यो तेह ॥ सं० ॥१॥ अरध बिंब रवी आथमे रे, सूत्रे कह्यो सुविचार । तवन कहे तिणहिज समे रे, तारा दिसे बे चार ॥ सं० ॥२॥ काल बेला इम पडिकमेरे, लांबी खमासण देइ । शुद्ध क्रियानी खप करेरे, मन संवेगे धरेइ ॥२०॥३॥ जिनदत्त सूरि काउस्सग्ग करेरे, पडिकमणाने छेह। पडिकमणो पूरो थयोरे, खरतरनो विधी एह ॥ सं०॥४॥ मधुर स्वरे राते करेरे, पोहर सीम Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री प्राचीनस्तवनावली .. . [४९ सिज्झाय । गीत गावे वैराग्यनारे, पातिक दूर पुलाय ॥ सं०॥४॥ ॥ ढाल-मारग देशक मोक्षनोरे, ए राह. ॥ वड़ी बहु पडिपुन्य पौरसीरे, वांदे बेहु उलास। संथारे गाथा भणेरे,खामे जीवां नारासोरे॥ ते नर नारीया सफल करे अवतारोरे । निशी पोसो करे भावना बारे भावरे ॥ ते ॥ १॥ पाप अठारे परिहरे, चित धरे सरणा चार । डाभ संथारे साथरोरे, ध्यान धरे सुविचारोरे ॥ ते॥२॥धर्म जागरीयां जागतारे, करे मनोरथ एह । संयम लेवां जिण दिनेरे, धन्य दिवस मुझ तेहोरे ॥ ॥ ते०॥ ३॥ संख श्रावक पोसो कियोरे, वीर वखाण्यो तेह तिण परे तिण पोसो कियोरे, तिम करजो सुजगेहो ॥ ते०॥४॥ बियंभा पाटणनो धणीरे, नाम उदायनणय। तिण राते पोसो कियो, वीर वन्दन चित लायोरे ॥ते॥५॥ तुंगिया Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०] . .. श्री प्राचीनस्तवनावली नगरीना धणीरे, श्रावक शुद्ध अनेक । तिण विध ते पोसो कियोरे, तिम करज्यो सुविवेकोरे॥ते०॥ ॥६॥ लख श्रावक पोसो कियोरे, आनन्द ने कामदेव । वलि दृष्टान्त सुवातनोरे मन धरज्यो नित मेवोरे ॥ ते०॥७॥ ॥ ढाल १ ली ॥ पाछली राते ऊठीने हो श्रावक होय सावधान । राइ प्रायश्चित काउसग्ग करे हो, देव वन्दे सुविधान ॥१॥ संवेगी श्रावक हो पोसानी विधी एह मिलती सूत्र सिद्धान्तने हो,मति मन करजो संदेह ॥२०॥ ऊंचे सुर बोले नहीं हो, दोष कह्या भगवंत, वली सामायिक लेवे हो, पडिकमण करे तस ॥ सं० ॥२॥ पडिलेहण किरिया करे हो, सघली पूरव रीत। सहु सिज्झाज किया पछे हो, सुगुरु वन्दे धरी प्रीत ॥ सं०॥३॥ पहिली पोसो पारिने हो, सामायिक पिण पार । पडिलाभे अण Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री प्राचीनस्तवनावली [ ५१ गारने हो, अतिथ संविभाग विचार ॥ सं० ॥ ४ ॥ विधि सहित पोसो करे हो, बहु फलदायक होय । अविधि संघाते कजिता हो, काजसरे नहीं कोय ॥ सं० ॥ ५ ॥ पिण विधिनी खप कीजतारे, अविधि हुवे जे कांइ ॥ मिच्छामि दुक्कडं दीजता हो, छूटक वारे थाय ॥ सं० ॥ ६ ॥ पोसो ओसो करमनो हो, टाले दुःख | अशुभ कर्म क्षय करे हो, आपे शाश्वता सुख ॥ सं० ॥ ७ ॥ उत्कृष्ट पोसो तणी हो, विधि कही उपगार । जेसलमेरी संघने आगह कियो सुविचार ॥ सं० ॥ ८ ॥ सोलसे बासठ समे हो, नगर मरोट मझार । मागसिर सुदि एकम दिने हो, शुभदिन सदगुरु वार ॥ सं० ॥ ९ ॥ श्रीजिनचंद सूरिसरू हो, श्री जिनसिंह सूरीश । सकलचंद सुपसायले हो, समयसुंदर भणे शीश ॥ सं० ॥ १० ॥ ॥ स्तवन ॥ ॥ विछयानी देशी ॥ हांरे लाला संभव जिनवर विनति, अवधारो Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नस्तव uuuuuuuuuuuuuuuuu uvumwuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuu ५२] . . . . श्री प्राचीनस्तवनावली परम कृपालरे लाला । जोग क्षेम करणपणो, निज सेवक जन प्रतिपालरे लाला ॥ सं० ॥ हारे सुक्ष्म बादर भव माहिने, हुंभमियो काल अनंतरे लाला। दुःख अनंता भोगव्या, तुझ दरशण एकंतरे लाला ॥सं०॥२॥ हारे० तुझ दरसण मुझ मन वस्यो, संभालु श्वासो श्वासरे लाला । पर सुर पर दरसण तणो, न करूं प्रसंग हुल्लासरे लाला ॥ सं०॥३॥ हां भवभव निज दरसण तणो, मुझ जोग करो महाराजरे लाला। ए मनवांछित माहरो, पूरीजे सुर सिरताजरे लाला ॥२०॥४॥ हां० संप्रति तुझ प्रसादी, में पायो दरशन जेहरे लाला, तेहने क्षेम रहो सदा, हुं मांगु छु प्रभु एहरे लाला ॥ ॥ सं० ॥५॥ हारे० लाला पर उपकारी जगतमें, तुम समवड अवर न कोयरे लाला वांछित पूरण सुरतरु, तुम सेवित शिवसुख होयरे लाला ॥ सं०॥ ॥६॥ हां० अट्ठारे गुणत्तरे, सुदि तेरस माघ सुमासरे लाला श्री संघ चैत्य करावियु, अजमेर नगर Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ wwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwmar श्री प्राचीनस्तवनापली . .. .. .. [५३ हल्लासरे लाला ॥ सं० ॥ ७॥ हां० पधराव्या तिण चैत्यमें, प्रभु संघ सकल उछरंगरे लाला लक्ष्मी लीला हो जिन, सेव्यां बहु पुन्य अभंगरे लाला ॥सं०॥॥८॥हां सेवक अमृत धर्मलो, उवज्झाय क्षमा कल्याणरे लाला इणविध सुविनति करूं, करिये संघ कल्याणरे लाला ॥ सु०॥९॥ ॥ नलखेड़ श्री चन्द्रप्रभु जिन स्तवन ।। ॥ राग--भविकानी देशी ॥ देश मनोहर मालम मांही, गाम वसे नल खेड़ा। ओसवंशी शुद्ध धर्म के सगी, श्राद्ध बसे बड़भागीरे भविका चन्द्र प्रभु जिन वन्दो॥ वन्दित होत आन्दोर, भविका ॥चं० ॥ टेक॥जीर्ण उद्धार कियो जिन चैत्य, संघ मिली बहु भक्ते । पूरण हुवे उद्यापन कीनो, शुभ चड़ते परिणामरे ॥भ० ॥०॥२॥ शाल उगणीसो बयासी वर्षे, मृगसिर सुदि शुभ दशमी । वार बुध शुभ लग्न के माहि, Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ AMAN ५४] . . . . श्री प्राचीनस्तवनावली होय जय जय शब्दरे ॥भ०॥०॥३॥सुविहित गच्छ परंपर मांहे, दीपे अधिक अधिक। अंजन शलाका विधिसुं कीनो, रत्नमुनि गुरुरायारे ॥ भ०॥ चं०॥४॥ मूलनायक चंदा प्रभु जिनकी, प्रतिमा तखते राजे अजितनाथआदि जिनवरकी, प्रतिमा उभय पासरे ॥ भ०॥ चं०॥५॥ विकट कलियुगमें भविजनकुं, जिनमूर्ति आधार । भवदुःख हरणी शिवसुख करणी, भवोदधी पार उतरणारे ॥भ०॥ चं०॥६॥ समकित देश सर्व विरती जनकी, ध्यावत होत भवपार ॥ चन्द्रवदनी चन्दसम गौरी, देख बूझी दाह तनकीरे ॥ भ०॥ चं० ॥७॥ श्री जिनदत्त सूरि सद्गुरूकी, मुरति और पादुका । कुशलसूरि आदि सद्गुरुकी, मुझ मन अधिक सुहायरे ॥ भ० ॥०॥८॥ पूजे ध्यावे जे नर भावे, पामे लील विलास । रतनमुनि सद्गुरूको बाल, लब्धि न मेली कालरे ॥ भ० ॥ ॥चं०॥९॥ Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री प्राचीनस्तवनावली ॥ श्री मंडोदा पार्श्वनाथजीका स्तवन । ॥ राग माढ ॥ मंडोदा स्वामी, अंतरजामी, वंदो वारंवार ॥टेक ॥ अश्वसेन कुल चंदलोर, वामादेवीको नंद । वनारसीमें जन्म लियोरे, वरत्या जयजयकार हो ॥ मं० ॥१॥ श्याम वदन तनु शोभतारे, अहि लंछन मनुहार । शत वरसनो आउखोरे, नव हाथ देह प्रमाण हो ॥म०॥२॥ मस्तके मुगट दीपतारे, कानोमें कुंडल सार । वांहे वाजुबंद बेरकारे, गले नवसरयो हार हो ॥मं० ॥३॥ सेंधीयासाही राज्यमेरे, मंडोदा गांवके माय । पार्श्वप्रभुकी प्रतिमा सोहे, आनन्दको नहीं पार हो ॥ मं० ॥४॥ दूर देशथी आयो चलके, दरसण करवा काज । दरसन करके मग्न हुवा में, टालो भवना पाप हो ॥ म०॥५॥ सभा मंडप माही मैने निरख्या, कुशलसूरीन्द गुरुराय । कुशल को Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६] . ... श्री प्राचीनस्तवनाक्ली करता भवदुःख हरता, वांद्या सद्गुरु राय हो । ॥मं०॥६॥ संवत् उगणीसो त्यासीमारे, पोस वदि शुभ मास । तिथि दशमी दिन भेटियारे, वरत्या मंगल माल हो ॥ मं० ॥ ७॥ श्री जिन यश सूरि तणारे, रत्नमुनि महाराज । तेना चरण पसायथीरे, प्रेममुनि गुण गाय हो ॥ मं०॥८॥ ॥ अथ श्री दादाजीनो स्तोत्र ___श्री जैन धर्मे प्रथित प्रभावः। संसार वासेन विखिन्न चित्त । भव्यात्म संसेवित पाद पद्मो ॥ जीयादगुरू: श्री कुशल्लाख्यसूरिः॥१॥ स्वप्रज्ञया निर्जित वादि चक्र, सद्भक्त जीवेच्छित कल्पवृक्षः। सर्वज्ञसिद्धान्त रहस्य वेत्ता ॥ जी० ॥ मिथ्यान्धकारं रवि चद्विधूय । सिद्धान्त वाणी किरणैर बोधि ॥ भव्यात्मपद्मानि जगत्तडागे। येन प्रभुः श्री कुशलः स जीयात् ॥३॥ भव्याब्धिसंतारग जैनधर्म ॥ निच्छिद्र नौ चालन सुप्रवीणः। प्रचंड Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री प्राचीनस्तवनापली . . . . [५७ पाखंड मतान्धकार, विनाशने सूर्यसमः प्रतापी ॥४॥ त्वन्नाम मन्त्रं मनुजाः सदाये, स्मरंति दोषा न भवंति तेषां । ग्रामे च प्रर्या जलधौ स्मशाने । नद्यामरण्ये दिवसे च रात्रौ ॥५॥ सौभाग्य लक्ष्मी धनधान्य सौख्य, सत्पुत्र पौत्रादि कलत्र भाजो । त्वन्नाम मंत्र स्मरणाद्भवंति। भव्याः सदा श्री कुशलः सजीयात् ॥ ६ ॥ निर्नाशिता शेषकु वादिमार्गा, माधुर्य वाक्येन युग प्रधानः । भव्या कृतिभव्यजना भिरामौ । जीयाद्गुरूः श्री कुशलाख्यसूरिः ॥ ७॥ सत्प्रेम दृष्टि गुण रत्न शशिः, दिशोविसर्पत्सु यशो मुनीन्द्रः। सद्भिर्वरैः सूरि गुणैविराजि । सुवर्ण लब्धिर्जन मोहनश्च ॥ ८॥ प्रातः समुच्छाय पठेदिदंयः स्तोत्र पवित्रं कुशलाख्यसूरेः। भयानि नश्यंति भवंति तस्या, सौख्यानि चेहैव परत्रमोक्षः॥९॥ | ॥ अथ कुशल गुरु देव स्तुतिः ॥ सुखं सर्वा संवत् वसति पदयोर्यस्य वदने । Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८] श्री प्राचीनस्तवनावली " विनिद्रा बागीशा हृदय कमले संबिददधिकम् । वीरागः सर्वांगे ष्वपि च भगवद्भक्तिरनिशं ॥ समृध्यर्थं वंदे कुशलगुरुदेवस्य चरणौ ॥ १ ॥ निशिखापाधीनं निशदिन मर्धानौ समयिनां परंवाणी लक्ष्म्योर्निलयमपितद्दाननिपुणौ । सदायौ वर्तें ते जय इव पाथोजपुगुलं ॥ समृध्यर्थं वंदे० ॥ २ ॥ क्षिपतौ तौ प्रेक्षांसरसिरुहयोय मृदुलयो - जपा पुष्पा भासोः किशलयजिता शेषमहसोः । लसल्लेखा लक्ष्मप्रकटितपरा श्री सदनयोः ॥ समृध्यर्थं वंदे ० ॥ ३॥ सुरेभ्यः स्वरथेभ्य कतिपयदिनैर्यः फलमथो । कदाचिदृतेद्राकश्रियमपि दरिद्रायपरमां । सुरदुत्यत्कोपासतइतिबुधौ यौ भुविगतौ, समृध्यर्थं वंदे ० ॥ ४ ॥ सुरैरास्वाद्यंते परमगुरूधर्मोपदिशतः सदाकामंपीतामृतरस वरांशैर पिगिरः । श्रुतायस्य श्रियः श्रियमपिदिशति स्थिरधियां ॥ समृध्यर्थं वंदे० ॥ ५ ॥ निधिसर्वाश्रीणामनधि करणौ सर्वविपदां मृदुस्निग्धौ शौणा वुपचितन Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ vouwvvvvvv wvvvvwww श्री प्राचीनस्तवनावली . . . . [५९ खौगूढघुटिकौ । समानो प्रात्तुंग प्रपदपद शाखा विलसितौ ॥ समृध्यर्थं वंदे ॥६॥ ययौर सुते धनसुख धरा धाम रमणिः शरीरा रोग्यत्वं विनय नय विद्यानिणपुतां । गुणा नौदार्यादीन पीतनय लक्ष्मीः श्रितनृणां॥ समृध्यर्थ वंदे० ॥७॥ भयंकारागारामयसमरपारीन्द्र फणभृन्महापारावारः द्विरदवनवेश्वानरभवम् ॥ नडाकिन्याधुग्रग्रह गरलजत्यत्समृणतः ॥ समृध्यर्थं वंदे०॥८॥ इत्थं श्री जिनपद्म सूरि रचितं दिव्वाष्टकं सद्गुरौः, पुण्यं मंत्र मयं मनोज्ञ फलदं पापौघ विध्वंसनम् ॥ भक्तयाः यः पठति प्रभात समये, सर्वत्र तस्य ध्रुवं । वश्याभूपतयो भवंत सततं लक्ष्मीश्चिर स्थायिनी ॥ ॥ इति समाप्तं ॥ ॥ श्री सद्गुरुभ्योनमः॥ गुणै गांभीर्या यैर्विजित जलधेः श्रीखरतरः । सुरगच्छीय श्रीमोहन मुनिगुरोः सेवनपरः। अभुयः Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०] . . . . श्री प्राचीन स्तवनावली सद्भक्त्यापदकमल्योः श्री गुरुजिन ॥ “ यशः सूरिमा वितरतु सदासोऽतुल सुखं” ॥ १ ॥ मरुदेश श्री योधपुर नगर स्थामल विसौ-सवाल ज्ञातीये जति सुशमिनो यस्य जननं॥ समे संवचक्षु विधुखगविधौ श्री गुरुजिन ॥ यशः ॥२॥ मुदायस्याख्यांजेठमल इतितत्मातृजनका । वकार्दा यो बाल्येप्यजनि कुशलोहत्प्रगदिते। क्रियाद्यानुष्टाने खरतरतपः श्री गुरुजिन ॥ यश० ॥३॥ समीपाद्यो श्री मोहनमुनि गुरोधर्मममलं । निशम्योच्चैः शिष्यो जनि गगनदिशां केंदु समये । गृही वादीक्षांयोधपुर नगरे श्री गुरुजिन ॥ यशः० ॥४॥ सदागुर्वाज्ञाष्ट प्रवचनजनी पालन परो । गुणैः कांतोमूलोत्तर गुणरूचि,श्रीमुखात् । क्रमाजातोयः श्री जिन समयवित् श्री गुरुजिन ॥ यशः० ॥५॥ विधाप्यास्मैयौगोद्वहन कमदापभिशरनंद चन्द्राब्दे पंन्यास पदममलंराजनगरे । समीपात्पूज्यैः पंपदधर मुनेः श्री गुरुजिन ॥ यशः०॥६॥ अभूद्यस्याब्दे नंदरस खगको सूरि पदवी। हिमसूदावादे Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री प्राचीनस्तवनावली . . . . . [६१ शुचितर तपः शोषित तनुः । लसत् षटत्रिंशत्सूरिगुणगणभृत् श्री गुरुजिन ॥ यशः० ॥७॥ मुदा यः कृत्वा श्री चरमजिन निवाण परिपूत । पापापूर्या व्योम-मुनिखगको देव निलयं । गतो द्वापंचाशदिनमनशनं श्री गुरुजिन ॥ यश० ॥८॥ resotaar ॥ अथ बीजनीथुई ॥ पूर्व विदेह पुखलावइ विजये,श्री पुंडरिकणी नयरीजी। ऋद्धिसिद्धि नवनिधि अनर्गल, निर्जरपुरी सुखकारीजी। कनक कमल सुर निर्मित ऊपर, चरण धरे जिणंदाजी,सीमंधर जिन वीजे दरशण, करता पामे आनंदाजी ॥१॥ पर संयोग अनित्यता जाणी, सुख विभावी निकामिजी । ज्योति रूप निज भाव संभारी,भाव क्षायक अभिरामीजी। जगजन संशयव्यूह निकंदी आपे निजगुणधामीजी। भाव धरी त्रिभुवन जिन नमतां जिन सुख आनन्द Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२] . . . . ... श्री प्राचीनस्तवनावली पामीजी ॥ २॥ भव भ्रम धर्म समाबन जलधरो, भूमि चेतन शुभ कारीजी। समकित बीजे फूल्यो तरुवर, उत्तर गुण दलसारीजी अनुभव ज्ञानामृत फल उत्तम, भविजन हर्ष वधाईजी ॥ जिनप्रवचन निज रमणे रमतां, चेतनता प्रगटाइजी ॥ ३ ॥ जिनवर आनन पंकज कोशे, विकशित नित्य निवासीजी । अनुपम रूप लावण्य शिरोमणि, सकल कळा सुविलासीजी ॥ सुमति आपे भारती देवी, ज्ञान ध्यान सुख कंदोजी । नव निधि वाचक चारित्र नंदी, पामे परम आनंदोजी ॥ ४॥ ॥ पंचमीनी थुई ॥ पुरी पुंडीरकणी समवसरणगत, भाषे श्री जिनरायाजी । सूरसेन नरपति उपदेशे, पंचमी तप बतलायाजी ॥ चउविहार व्रत मुनि मुख करिये, ज्ञान भक्ति वली कीजेजी । एह उपदेशक सीमंधरजिन, पंचमी तिथि प्रणमीजेजी ॥१॥ आश्रव पंच अवरोधन करके, पंच संवर गुण Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री प्राचीनस्तवनावली . . . . [६३ धारीजी। पंचेन्द्रिय सुख विषय तजिने, पंच सुमति लहे भारीजी। लोका लोक प्रकाशक पंचम ज्ञान दिवाकर जायाजी । पांचम तिथि जिन पंच कल्याणक, प्रणमुं शिवसुख दायाजी ॥२॥ रजत कनक मणि पाटा ऊपर, पुस्तक सहु स्थापीजेजी। थापनाचारिज ठवणी आगल, मंडल नंदी रचीजेजी ॥ पुस्तक पूजी थापनाचारज, नंदी पूजन कीजेजी॥ सुदि पांचम इणविध जिन प्रवचन, शुभ श्रावक सेवीजेजी ॥३॥ कार्तिक सुदि पंचमी तिथि रूडी, तप करिये शुभ भावेजी। पंचानुत्तर पदभोगवी, पंचमी गति सुख पावेजी॥ खरतर नवनिध वाचक चारित्र, थापे हर्ष अपारोजी। नित प्रति जसु शासनसूरि आपे, ऋद्धि सिद्धि सुख सारोजी ॥४॥ ॥ अष्टमीनी थुई ॥ भवारि निवारण, परमाणंद गुण गेह । अर्जुन कनक प्रभ, वज्रमणिच्छविदेह ।। भवि जन हित Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४ ] श्री प्राचीनस्तवनावली हे ते, अष्टमी तप प्रकाश | चन्द्रप्रभु जिनवर, प्रणमु चन्द्र प्रभास ॥ १ ॥ दस त्रिक सांचव करूं जिनवर मन्दिर जाय । द्रव्य भावें पूजा, करिये । चित हुलसाय ॥ सहु दुरित विहंडन, भव भव पाप पलाय । त्रिभुवन जिन नमिये, नुतर शिव सुख दाय ॥ २ ॥ आठम दिन करिये, मुनि सुव्रत चउविहार | आठ पहरी पौषध, कीजे मद परिहार || आठे मंगल कारण, सेवीजे सुखकार । जिन आगम पूजिये, धारी चित्त मझार ॥ ३ ॥ चक्री सुख भोगवी, केवल ज्ञान निपाय । श्रीखरतर गच्छ, नवनिधि उदय पसाय ॥ अष्टमी तप करता, वाचक चारित्र नंदी । तसुजन भृकुटी सुर, सानिध करे सुख कंदी ॥ ४ ॥ एकादशीनी स्तुति. श्री अरनाथ संजम आदरियो, नमिजिन केवली जायाजी । मल्लिजिनेश्वर जन्म प्रव्रज्या, केवल ज्ञान सुभायाजी ॥ मगसिर सुदि एकादशी Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री प्राचीनस्तक्नावली. . . . . . [६५ रूडी, भविजन शिवसुख दायाजी । तिण कारण अर नमि मल्लीजिन, प्रणमीजे चित्तलायाजी ॥१॥ भरते ऐरवत दशखेत्रे इम गिणता, पंचाशत कल्याणोजी। पंचाशत त्रिक काले गिणता, नम शरशशिमित जाणोजी। काल अनंत करी इमहिज गणता, कल्याणक सेवंताजी, सुदिग्यारस जिनध्यान धरता, पामे लाभ अनंताजी ॥२॥ सुदि एकादशी चउविहार व्रत, पौषध अट्ठ पहरीलीजेजी।पुस्तकदेखी डेढसो कल्याणक, थिरचित जाप जपीजे जी.कर्म निकाचित. कर्दम. रविकर, शमपरिणाम ग्रहीजेजी। त्रिकरण कर जिन प्रवचन पूजत, निर्मल बोध लहीजेजी ॥३॥ इग्यारे वरस इग्यारस तप कर, उजमणो वली कीजेजी। दिनदिन अधिकी भावना भावो, संपद सहज वरीजेजी। खरतर गच्छ नव निधि उदयकर,वाचक चारित्र नंदोजी। शान्निद्ध करे जसु शासन देवी, आपे श्री सुख कंदोजी ॥४॥ Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६ ] . . . . श्री प्राचीनस्तवनावली दीवालीनी थुई ॥ - चउद सहसमुनिवरगण साथे, गाम नगर विचरंताजी। छेहलो चउमासो हस्तिपाल नृप, शुक्ल शालाये करताजी ॥ पावापुरी अमावस कार्तिक, नागकरन स्वाति योगोजी. वीर जिनेसर शिवपुरलीनो, प्रणमो ते भवि लोगोजी ॥१॥तिण अवसर नवदुगुणा भूपति, पौषधव्रत सम भावेजी सोले प्रहर लग देशना सुणंता, अनुभव जोग रमावेजी॥ त्रिभुवन नायक जग जन बंधु, चिंतामणि जग त्राताजी। सयल जिनेश्वर भावे प्रणमुं, ज्ञानामृत घट दाताजी॥२॥ नंदीश्वर पावन्न जिनालय मंडल विपुल रचीजेजी। पूजाकर जिन बिंब सनात्रे, पंचामृत कर कीजेजी॥संजम ज्ञान निवाण कल्याणक, भावे जाप जपीजेजी। दीवाली तप सूचक आगम, नित प्रति भविसेवीजेजी ॥३॥ वीर चरित मुनि मुखथी सुणता, भवभव पाप पलायेजी । काति अमावस तप आदरता, संपदा सहज Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री प्राचीनस्तवनावली . . . . [६७ निपावेजी । खरतर गच्छ नवनिधिसुपसाये, वाचक चारित्र नंदोजी। देवदेवी जसु शान्ति सिद्धायिका, आपे शिव सुख कंदोजी ॥४॥ - जग जग मन मोहन, पुरुषसिंह निरभिक। गुणमणि रयणकर, पुरुषोत्तम पुंडरीक ॥भविकजन लंकृत, दिनकर कर परकाश । अहनिशि त्रिकरण कर सेवं, चित्त चिंतामणि पास ॥१॥ चउविह सुर नरपति, भक्ति भर इग चित्त। अविचल सुख काजे, सेव परम पवित्त । जे अतीत अनागत, वर्तमान जिनराय, ते नितप्रति प्रणमुं, परमानंद सुखदाय ॥२॥भवजलधि अगाधे, दृढतर प्रवहण जान, रिपुवर्ग विहंडन आपे शिवसुख खान । नयभंग निक्षेप, स्याद्वाद मतसार । शुद्ध पराणति भासे, जिन प्रवचन चित्तधार॥४॥पद्मसम राजे, सरसति रूप उदार । पउमावइ देवी, जिनशासन सुखकार ॥ खरतरगच्छ वाचक नवनिधि उदय कराय। सुखसंपति आपे, चारित्रभणि सुपसाय ॥४॥ Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www ६८] . . . . श्री प्राचीनस्तनावली ॥ श्री सिद्धचक्रथुई ॥ शुभ भावे वन्दो, सिद्धचक्र सुखकंद जेहना जप तपथी, भाजे भव भव फंद।श्रीपालने मयणा, विधिथी ए तपकीध ॥ नवपदथी पामे, अष्ट सिद्ध नव निद्ध ॥१॥ जिन सिद्ध आचारज, पाठक श्री मुनिराजः ।दर्शन ज्ञान चारित्र, नवमे तप कहेवाय; एक एक पद ध्यांता, जीव तस्या संसार । चौवीस जिन प्रणमुं, कीधो भवि उपकार ॥२॥आसु बली चैत्र मास, सुदि सातमथी जाण । ओली कीजे शुभ मन, आंबिल कर पञ्चक्खाण । पद पदनो गुणणो, कीजे भाव जगीश। आगम मांही बोल्या, ध्यावो तुम निशदीश ॥३॥ विमलादिक देव, देवी चकेसरी माय । सिद्धचक्रना सेवक, आपे वांछित दान ॥ स्वरतरगच्छ दिनकर, श्री जिन अत्रय सूरींद। तस चरण पसाये, भाखे श्री जिनचंद ॥४॥ Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री प्राचीनस्तवनावली ॥ अथ श्री जिनराज कृत वहरमान जिन वीशी लिख्यते ॥ पोपट चाल्यो रे परणवा ए देशी। मुझ हियडो हे जालूउ, भाखर गिण इन भीत । आवे जावे रहे एकलो, करवा तुममु प्रीत ॥ श्रीमंधर करजो मया ॥१॥ धरजो आवहड़ नेह ॥ अमची अवगुण जोइने, रखे दिखायो छेह ॥ श्री. ॥२॥ तुमची भगत घणु घणा, अणहुंते इ ककोड़ । अमची मीटन को चढे, साहेब तुमची जोड़ ॥ श्री० ॥३॥ दक्षिण भरत अमे रहुं, पुष्फलावती जिमराज । कोइक दिन मिलवा तणो, दीसे छे अंतराय ॥ श्री० ॥४॥ दीधी देव न पाँखड़ी, आq केम हजूर । पिण जाणजो मोरी वन्दना, प्रह उगमते सूर ॥श्री०॥५॥ कागलियो लिखुं कारमो, कीजे सी मनुहार। अमची एहिज विनती, आवागमण निवार ॥ भव जल पार उतार ॥श्री. Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ wwww ७] . . श्री प्राचीनस्तवनावली ॥६॥ परम दयाल कृपाल छो, करजो अवसर सार ॥ श्री जिनराज इसुं कहे, मत मूकोसुविचार ॥श्री०॥७॥ ढाल दूसरी अवला केम उवेखिये ए देशी । सैमुख हुनसकुकही, आडीआवेलाज। रहिपिणनसकुं बापजी, इम किम सिझे काजोरे ॥ वीरा चांदला। तुं जाइस तिण देशोरे॥श्री मंधर भणी ॥ कहि जो मुझ संदेशो रे ॥ वि०॥२॥ तुं अंतर जामी अछे, जाणे मननी वात । तो पिण आश न पूरवे, एसी तुमची धातोरे ॥ वी०॥३॥ में तो कर वामो दिशा, तुमसु अविहड स्नेह । फल प्राप्त सारू हुवे, पिण मतदाखो छेहोरे ॥ वी० ॥ ४॥ तेहने कही समझाविये, जे हुवे आप अजाण । पिण जिनराज समो अछे, अवर न एवड़ो जाण रे॥ वी० ॥५॥ Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री प्राचीनस्तवनावली [ ७१ ढाल तीसरी मन मधुकर मोहीरयो ए देशी । बाहि समापो हो बाहुजी, जिम मो मन थिरथाय रे । जिण तिण बाह विलंवता, मान महातम जायरे ॥ बा० ॥ १ ॥ सबला रे शरणे पडया, गंज न सके कोइ रे । पाधरसी सरणे पडचा, कारज सिद्ध न होइरे ॥ बा० ॥ २ ॥ तुम सरिखो थाय वलुं ॥ कर पखो जगनाहरे ॥ तोनाण, सुपनांतरे. हुं हनी प्रवाहरे ॥ बा० ॥ ३ ॥ शरणागत वच्छल तुमे, हुं शरणागत सामरे । जेम माने हो ते करूँ, स्युं कहिये लेइ नामरे ॥ बा० ॥ ४ ॥ जो सेवक कर जाणसो, तो इतलो मुझ राजरे ॥ मीठाई मोटा तणी, जीविजे जिनराज रे ॥ बा० ॥ ५ ॥ ढाल ४ चौथी ॥ करजोड़ी आगरही, ए देशी ॥ सामी सुबाहु जिणन्दनो, जइये मुख निरखे Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 24 AAVA ७२] . . . . . श्री प्राचीनस्तत्वनावली सनरे । सकल मनोरथ मालिका, तइये सफल करेसनरे ॥धर्म जागरीया जागतां ॥१॥ समरंता गुण प्रामनरे ॥ पांणी वली एहवु रहे, माहरे मन परणामनरे ॥१०॥२॥ अमिअ समाणे बोलडा, बारह परषदा साथनरे ॥ सांभल भवथी ऊभगी, बत लेशु प्रभु हाथनरे ॥ध०॥३॥ जन्म लगे पासे रही, भगत करीस निश दिशनरे॥ तप जप संजम खप करी, मन सुध विसवा बीशनरे ॥ ध०॥४॥ आपण पे जाइ गोचरी, आणीस शुद्ध आहारनरे ॥ साधु सहुने सांचवी, देइस देह आधारनरे ॥ध०॥५॥ चार कर्म चक चूरने, पामीश केवल नाणनरे ॥ श्री जिनराज पसाउले, चढस्ये बोल प्रमाणनरे ॥ध०॥६॥ ढाल ५ पांचमी ॥ धन धन आदर कुवार संजमी ए देशी ॥ तुं गति तुं मति तुं सांचो धणी, तुं बंधव तुं तात । तुज सम अवरन को मुझ वालहो सम Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री प्राचीनस्तक्लायती .. . . . [७३ संसाम सुजात ॥ तु० ॥ हरिहर ब्रह्मादिक आसधतां, न टले गर्भावास । तिण इण भव कीपी में आखड़ी, शीश नमावण तास ॥ तुं० ॥ २॥ जे पोतेपरनी आशाकरे, तेस्युं पुरे आसा संतोष्यो प्रिण रांक न देसके, अविचल लील विलास ॥तुं०॥॥ अंतरगत सुमनसु अलोकतां, ए कीधो निस्वार । तुझ विण देव न को बीजो अछे, शिव सुखनो दातार ॥ तुं०॥४॥ करो महर भव जल थल हर थकी, प्रवहण सम जिनराज । जो करी ग्रह सेवक ने तारस्यो, तो हिज रहसी लाज तुं० ॥५॥ दाल छड़ी देशी हमीरियानी स्वामी स्वयं प्रभु साँभलो, करो निवाल काज। जगजीवन विरूद गरीब निवाजनो। जिम जगपुंड थिर थाय ॥ ज०॥सां० ॥१॥ पोताना अरियण हण्या, तिण अरियण कहंत ॥ ज०॥ जो मुझ अरिदल निरदलों, सो सांचो अरिहल । Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ પ્લેટ श्री प्राचीन स्तवनावली ज० ॥ सां० ॥ २ ॥ तुं स्युं तारे तेहने, जे सूधा अणगार ॥ ज० ॥ तारक विरूद खरो करो, तो मुझ सरीखो तार ॥ ज० सां० ॥ ३ ॥ अंतर जामी माहरो, तुं किण कारण होइ ॥ ज० ॥ अंतरगत लेवा भणी, कागल न दियो कोय ॥ ज० ॥ सां० ॥४॥ नेह गहेला मानवी भाखे, तिम भासं ॥ ज० ॥ भारीखिमा जिनराजजी । कहने छेह न दहंत ॥ ज० ॥ सां० ॥ ५ ॥ ढाल ७ सातमी आज धुराउं वांधलो. ए देशी । में तो ते जाण्यो नहीं हो साहिब । जेसो तुमसु रंग । तोहि छांड न को सके, हो० पाणी वली तुझ संग ॥ १ ॥ कोडे ज्ञानहें जालूवो । तुझ सांचो ससनेह ॥ फेरहेलो ते नको दीयो हो० तो पिण तुझसु नेह || को० ॥ २ ॥ आदर मान न को दियो हो० ॥ करे न को वगसीस ॥ तो पिण ऊभा उलंगे हों • इन्द्रादिक निश दिश || को० ॥ Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री प्राचीनस्तवनावली . . . . [७५ ३॥ ए म्हारो ए पारको हो० करे न कोइ विचार ॥ तो पिण आवी न जूडे हो० आगल परषदा वार ॥ को०॥४॥ सुख दुःख पिण पूछ नहीं हो तो पिण तुम सुप्रीत ॥ ऋषभानन सहु को कहे हो. ए तुझ नवली रीत ॥ को०॥५॥ नयणे नयण निहालता हो मोहे सहु असमाज। आपण पे अलगो रहे हो. मोह थकी जिनराज ॥ को०॥६॥ ढाल ८ आठमी रूडो म्हारो गुरूजी कलपडो ॥ ए देशी ॥ अनंतवीरज में ताहरो, नाम सुण्यो जिनराज । हिव जिम तिम बल फौरवी, आपो अविचल राज ॥ अ०॥१॥जो हुँ जोर्बु मो दिशा। तो न मिले तिलमात । पिण तो चिंतवतां सहूं, वैर पडेसी वात ॥ अ० ॥२॥ जे में कीधी नवनवी, करणी क्रोड प्रकार । तिण हुंति प्रभु छोडवो, तो हुंवे छूटक वार ॥अ०॥३॥ भवसायर विहामणो, जिहां किण वाटने घाट । तुं तारे तोहिज तरू, Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . . श्री प्राचीनस्तवनावली सवला ऊजड वाट ॥ अ०॥४॥ छोडुं सहु उछाछला, कोड़ विणासे काम।पिणमावित न मिटसके, जिम तिम पूरे हाम ॥ अ० ॥५॥ ढाल ९ नवमी आदर जीव क्षबागुण आदर ॥ ए राह ॥ आपण पेहुंआवी नसकुं, मूक्योछे परधानजी । जो साचीसी सेवा सारे, तो राखे ज्यो मामजी। “मुझ मन तुम चरणे लय लीनो.” जिम मधुकर मकरंदनी। पाणी वली पिण पास नछांडे, लीनो सुम मकरंदजी।मु०॥२॥ चपल पणे चूकस्यो तो पिण, मत छोडावो तीरजी। तुरत उत्तर आपे तटकी, गिरूवा हुवे गम्भीरजी ॥ मु०॥३॥ वीजा ने वगसीस करंता, मतमुको विसारजी॥पतिवंचक ऊपर हो पातिक, अबर न छे संसारजी ॥ मु०॥४ ॥वात सहुनो परमारथ, साँभल स्वाम विसालजी श्री जिनराज निराशय करजो, करजो कांइ संभालजी । मु० ॥५॥ Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री प्राचीनस्वयमावली .. . .. . [७४ ढाल १० दशमी मेघमुनि कोइ डमडोल्योरें ॥ ए देशी॥ कीजे छे जेहने सहुजी, वचने वचन प्रमाण । ते जो आपण पे मिलेजी, तो हुंचे कोड कल्याण ॥१॥ “सुर प्रभु अवधारो अरदास, जिम तिम प्रो मोरी आस॥ सु०॥” देइ तीन प्रदक्षणाजी, आणी अधिक जगीश । प्रभु आगल ऊभो रहिजी; प्रश्न करूं दश वीश ॥सु०२॥ वली पूछ हिवे केटलोजी, भमवो छ संसारः। आँधीना सेटे पडयोजी, भमता नावे पार” सू० ॥३॥ पोतानी करणी पखेजी, तारी न सकेस्वाम। पिण वाटेवहतां सहजी, पूछे केतलो गांमः॥ सू० ॥४॥ जिण दिन प्रभुदर्शन हुस्ये जी, लेखे पडस्ये तेह। धन दिन ते जिनसजनोजी, इण पर बोले जेह ॥ सू०॥ ५॥ ___ढाल ११ इग्यारमी जोसीडा सोवन मुस्की कानमें ॥ ए देशी ॥ एक सबल मननो धोखो टल्योरे, लाधो Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८] . . . . श्री प्राचीनस्तवनावली साहिब चतुरसुजाणरे। जे हुं भगत कर सते जाणस्येरे, वज्रधर केवलनाण प्रमाणरे ॥ ए॥१॥ दूर थकी पण जो साचे मनेरे। समरण करस्युं वार विचाररे॥ तो पिण ते अहिलो जास्ये नहींरे, फलस्ये भव २ प्रकाररे ॥ ए०॥२॥अंतरगत अंतर जो मिलेरे, ते प्रभु साचो सुखनो बीजरे। जे गुणने अवगुण जाणे नहींरे, तेस्युंकरवो निशदिन धीजरे ॥ए०॥३॥ चूक पडे जो किणही वातनोरे, तो पिण न धरे तिलभर रीसरे। तूसे पिण कदयें रूसे नहींरे, ए मुझ प्रभुनी अधिक जगीश ॥ ए०॥४॥ ते तो कहिये नाहिन कीजियेरे ॥जेहने आठे प्रहर अंधेररे ॥श्री जिनराज अवरसू मिढतारे ॥ मेरू अने सरसवनो फेररे ॥ ए०॥५॥ ढाल १२ बारमी ॥ वैरागी थयो ए देशी॥ समाचारी जूजईरे, आवे मन संदेह । सीसा Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ~ श्री प्राचीनस्तवनावली . . . . [७९ चीकर सरदहुंरे, सवल विमासणा ए होरे ॥ १॥ चंद्रानन जिन । कीजे कवण प्रकाशेरे । इण दुःषमआरे। में लीधो अवतारोरे ॥ च० ॥२॥ आगम बल तेहवो नहीं रे, संशय पड़ असदिव । सूधी समझ न को पड़े रे, भारी कर्मोरो जीवोरे ॥ चं०॥३॥ इष्ट रागराता अछेरे, केहने पूंछं जाय। आपणपो थापे सहुरे, तिणमो मनड़ो लायोरे॥ चं० ॥ ४॥ विहरमान जिन साँभलोरे। खरिय मिलण मनखंत होवे दरसन जिनराजनोरे, तो भांजे मन भ्रांतोरे ॥ चं०॥५॥ ॥ढाल १३ मी॥ ॥ आयो म्हारी संहिया गच्छपति ए राह ॥ जोवो म्हारी आई उण दिश चालतो है ॥ कागलियो लखदीजे हो । अंतरजामी थी अलगा रह्या हे, कागळयाहि कीजे हे ॥ जो०॥१॥ साहिबीयो तो छे वैरागीयो हे, फेर जबाब न देसे है, पण प्रभुनी सेवामाहे रह्या है। सहिजे काज सरे Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ~~ ८०] . . . .- श्री प्राचीनस्तपनावली सहे ॥ जो० ॥२॥ साहिषने अमची खपका नहीं है, पिण छे गरजः अमारे हे। जोसाचीसी भगत कहाविवेहे, तो भवजल निध तिर हे ॥ जो० ॥३॥ साजनीया पिण दूर गजे दिये हे, तिण थकी दूर रहिजे है ॥जो छोड़ावे गभावासती है, तिणसु सकनिमीलीजे है ॥ जो० ॥४॥ नाम जपीजे श्री चन्द्रयाहुनो है, निश दिन ध्यान धरीजे है। तेस लहीजे करी जिनराज नोहे, जिणकर लेख लिखीजे है। जो॥५॥ ॥ ढाल १४ चउदमी।। ॥ आबु शिखर सुहामणो, ए देशी ॥ स्वामी भुजंग मताहरो, नाम जपे सहु कोइ। पिणः तेहनी पर ते तजी, तिण मुझ अचरिज होइ ॥स्वा ॥१॥ तुं सपगोपग रोपने, चढे बोल प्रमाण। आगम वचन तुं चले, न चले हिया त्रांण ॥.स्वा०॥२॥तुंगयवर गति चालतो,न धरे तिल भर वांकः। मोर गरूङ सेवा करे, नाणे केह निशंकः Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री प्राचीनस्तननावली. [at ॥ स्वा० ॥ ३ ॥ दो जिहो पिण तुं नहीं, न धरे विष लवलेस ॥ अमिय समाणे बोलड़े, दे सहुने उपदेश ॥ स्वा० ॥ ४ ॥ अथवा नाम भुंजगमें, साच कहे कवीराज ॥ अवर सहु सर्प लोटिया, तुं मणिधर महाराज ॥ स्वा० ॥ ५ ॥ ॥ ढाल १५ पंदरमी ॥ ॥ वीर वरवाणी राणी चेलणाजी ए देशी ॥ नेम प्रभु माहरी विनतिजी, साँभलो धर्म धूरीण । फेरवो तुझ विचे तेहवोजी, को नहीं जाण प्रवीण ॥ नेम० ॥ १ ॥ हुं प्रभु दास तुं मुझ धणीजी, आपणे सगपण एह ते भणी स्युं कहि दाखवुंजी, जगति जाणो करो तेह ॥ नेम० ॥ २ ॥ भगति तुझ अवर धारा तरेजी ॥ आसण अपूजता जाय ॥ आपवि मासीने जोइजोजी, लाभ तो केह न थाय ॥ ने० ॥ ३ ॥ प्रारथया पहिडे नहींजी उत्तम एह आरा निपट उवेखा मूके नहींजी, नेटकाई करे सार ॥ ने० ॥ ४ ॥ आपणे उत्तरे जिहां रहेजी, अवर ६ Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२] . . . . श्री प्राचीनस्तवनावली करे नहीं स्वाम । ते जिनराज निवाजियोजी, आपणो अवसर पाम ॥ ने०॥६॥ ॥ ढाल १६ सोलमी॥ ॥ परतिख पास अमिझरो ए देशी॥ ईश्वर जिन वैरागीयो, रागीथी अधिक कदि वाजेरे । जिनपरि प्रभु वखाणीये, ते परि सगली तुझ छाजेरे ॥ ई० ॥१॥ तु क्रोधी क्रोधे चढयो, अरियणना कंद निकंदेरे। अभिमानी सिर सेहरो, तुं चाले आपणी छंदेरे ॥ ई० ॥२॥ मायावी माया रची, सह को नाम न वंचेरे । तुं लोभी गुण में लही, लाखे ज्ञाने ले संचेरे ॥ ई०॥३॥ सेवक पिण पोता तणो, तु जोव निजर न देईरे । देइ कान न साँभले, किणहीनी वात कदेईरे ॥ ई० ॥४॥ अलख अगोचर तुं जयो, किणहि तुझ अंत न पायोरे। भगत वच्छल जिनराजियो, पिण जिनराज कहायोरो॥ ई० ॥५॥ Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री प्राचीनस्तवनावली , . . . [a ॥ ढाल १७ सतरमी॥ ... ॥ वहिली नवलण करजो इण ढशमें रे ए देशी॥ मुझ ने हो दरसण न्याय न तु दिये हो, नवली छे मुझ रीत । जे सुं हो तुमसे निशदिन रूसणो हो, म्हारे तिण सुप्रीत ॥मु० ॥१॥जेहने ते वनयासी दीयो हूं तो हो. धरतो नवि विश्वास। तेहने हो आदरसुं तेडायने हो, में राख्यो ले पास ॥ मु०॥२॥ जिणसु हो कांइं मिटन मेलतोरे, करतो कुरूप सदीव में तिणसु एकारो मांडियाहो, लागो म्हारो जीव ॥ मु०॥३॥ वयण न लोपे तुं पिण जेहनोरे, काम कहुँ पिण. तेह । न्हाक नमन पिण न करूं तेह ने हो, परित अछे मुझ होय ॥ मु०॥४॥ मुझ करणी सामु नवि जोइये हो, वीरसेन जिनराज । पर दुःख काटण विरूद विचारने हो, दरसण दो जिनराज ॥ मु०॥५॥.... || ढाल १८ अडारमी॥ ॥ वेग पधारो हो रंगलथी ए देशी ॥ सै मुख साहिबने मिया ॥. फेर पड़े न Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ww a] . . . . श्री प्राचीनस्तवनाक्ली तुज कोइ ॥ उलगड़ी अलगा रह्या, संदेसड़े न होइ ॥१॥ देवजसा दरसण दिए, ए मुझ खरा अरूहाडी। अतुल बली जिम तिम करी, एह प्रमाणे चाड़ी ॥ दे०॥२॥ जो छोरू कर जाणसो, तो पूरवस्यो लाड़ अलवेसर इण वातनो, मत जोणो को पाड़ ॥ दे०॥३॥ मननी वात सहु कहु, जो भेटु जगनाथ । कहिवो छे मुझ वसु, करिवो छे तुम हाथ ॥ दे० ॥४॥ वहती वात सहु कहे, पर पूठे जिनराज । पिण मुंहडेन मिटी सके, दीठा आ वेलाज ॥ दे०॥५॥ ॥ ढाल १९ उमणीशमी ॥ मनमोहन । ए देशी।। लही मानव अवतार, गुरू मुख त्रिविध त्रिविध उचरूं, न पले निरतिचार, परभवनो डर तिलभर नवि धरूं ॥१॥ए प्रभु आगलजे वीतक सवि भाषिये, मनका सल कूडकपट सो राखिये, ॥ ए० ॥२॥ पर अवगुण चिहुं मांही, आणी सांक Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री प्राचीनस्तवनावली । न कामे भाषिया । दीधा कूडा कलंक, पोताने स्वारथ अण पूजते ॥ ए०॥३॥ दुं परने उपदेश, आगम वचने अति आकरु । जाणे लोक महंत। पिण ते मूल न आचरू ॥ ए०॥ ४ ॥ एक अछे आधार, सर्दहणा सांची प्रभु ऊपरे । महा भद्र जिनराज, ते प्रभु जे सेवकने उधरे॥ए०॥५॥ ॥ढाल २० वीशवीं॥ ॥ सुखदाई रे, ए देशी ॥ मिलि आवोरे, मिलि आवोरे ।श्री अजितवीर जिनगुण गावोरे ॥ मि०॥ अति सुस्वरस ध्वस हेली रे । मेन मेलु भुगत गहेली रे, मिथ्या मति दूर रहेली रे। बेसो दश वीश सहेली रे ॥मि० ॥१॥ प्रभु परतिख नयणा न दीसे रे, मेलो न दियो जगदीशे रे। परपूठे ध्यान धरीसे रे। तो पिण भव जलनिधि तरीसेरे ॥ मि०॥२॥ रावण विणाधरी खंधे रे। जातो गुण विध प्रबंधे रे । लूटी तं तन संधे रे। तिण गोत्र तीर्थकर बंधे रे ॥ मि. Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ wwwww ६६] . . . . श्री प्राचीनस्तवनावली ॥३॥ चित्ते भगती वेसी पूरीजे रे, तो अशुभ कर्म चूरीजे रे। शिवपुर नेहत्थो दीजे रे। मानव भव लाहो लीजे रे ॥ मि० ॥ ४॥ तेहिज जिहास लहीजे रे । प्रभुनो सुजस कहिजे रे। जिनराज सखाई कीजे रे ॥ मन वांछित सुख पामीजे रे ॥ मि०॥५॥ ॥ ढाल २१ इकवीशमी ॥ लोक स्वरूप विचारो आतम हित भणी । ए देशी. वीश जिणेसर जग जयवंता जाणीये रे । अढाई द्वीप मझार ॥ धन ते गाम नगर पूर प्रभु विचरता रे, साधु तणो परिवार ॥ वीश० ॥१॥ वासुदेव बलदेव भगति नित सांचवे रे । लहिवा भवजल तीर ॥ चौराशी लक्ष पूर्वनो आउखो रे, गुण गिरुवा गम्भीर ॥ वीश० ॥ २॥ वृषभ लंछन सोभित तनु अवगाहनारे, पणसय धनूष प्रमाण। समवसरण बारह परषदा प्रतिबोधता रे। जगगुरू अमृत वाण ॥ वीश० ॥३॥ धन धन ते जिहा Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री प्राचीनस्तवनावली . . . ८७ प्रभु गुण गाइये रे, आणी मन आणंद । धन धन ते दिन जिण दिन भावे भेटिये रे। विहरमान जिणचंद ॥ वीश० ॥४॥ खरतरगच्छ जुगवर जिनसिंह सूरिन्दने रे, शीश धरिये जगीश ॥ श्री जिनराज वचन अनुसारे थुण्यो रे। विहरमान जिनवीश ॥ वीश०॥५॥ ॥श्री देवचन्द्रजी कृत श्री शत्रुजयगिरि स्तवनं ॥ ___भरत निज भावसुं ए । ए देशी शत्रुजय गिरि भेटिये ए, भेटिये कर्म किलेश। नमो गिरिराजने ए॥ मिथ्या दोष निवारवाए, धारवा समकित देश॥नमो० ॥१॥ काल अनादि भवोदधिए, भमता भव समुदाय ॥ न० ॥ ध्यान पात्र सम जाणजोए । एहिज तीरथराय ॥न० ॥२॥ मानव भव पामी करीए, ए तीरथ गुणगेह ॥न०॥ जेणे नवि भेट्या जुगतिए, ते दुःखीया माहे रहे। नमो० ॥३॥ इहां सिद्धापण कोड़ीसुए, गणधर श्री पुंडरीक ॥न०॥ चैत्र शुक्ल पूनम दिनेए, निज Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ rammmmmmm ८८] . . . . श्री प्राचीनस्तवनावली सत्ता गुण ठीक ॥ नमो०॥४॥ फाल्गुन सुदि सातम लह्यो ए, नमिवि नमीये शिवथान ॥न०॥ चौसठ नमि पुत्री वरूए, आठमे केवलज्ञान॥न० ॥५॥ सागरमुनि तीन कोडिथीए, कोडिथी मुनि श्री सार ॥ न०॥ तेरे कोडिथी शिव वरूए,सोमश्री अणगार ॥ “ सेवो गिरिराजनेए” ॥६॥ ऋषभ वंशी आदित जशाए। तसु सुत आदित्य क्रांति ॥ नमो० ॥ एक लाख परिवारसुंए, पाम्या परम प्रशांत ॥सेवो० ॥७॥ ऋषभवंशी मुनिवर बहुए, गणधर कोडि असंख ॥ न०॥ शिव पहोंता सिद्धाचलेए, निरममने निरकंख ॥ से०॥८॥ दश कोडिथी शिव लघुए, द्राविड़ने वारी खिल्ल ॥नमो०॥ चउद सहस निग्रंथथीए, दमितारा निसल्ल ॥सेवो० ॥९॥ आदिनाथ उपगारथीए, कोडी सत्तर अणगार ॥ न०॥ अजितसेन मुनिसरूए, पाम्या सुख अपार ॥ से०॥ १० ॥ आनन्द रक्षित भावनाए, भावता शिवपुरपत्त ॥ न०॥ कालासी इग सह Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री प्राचीनस्तवनावली .. . . . [८९ स्सीए, मुनिसुभद्र सयसत्त ॥ से० ॥११॥ रामचंद्र पण कोडिथीए, नारदमुनि पीसताल ॥ नमो० ॥ पांढव कोडि वीशथीए, शिवपोता समकाल ॥ सेवो० ॥ ११ ॥ सांब प्रद्युम्न मुनिसरूए, मुनि साड़ात्रण कोड़ ॥न०॥ विमलाचले निरमल थइए, ते प्रणमुं बे कर जोड ॥ सेवो० ॥ १३ ॥ थावच्चा सुत शुकमुनिए, सेलग पंथक सिद्ध ॥ नमो० ॥ वासुदेव घरणी शिव लहयुए, सहस्त्र पांत्रीश प्रबुद्ध ॥सेवो० ॥१४॥ वैदरभिनिकर्मताए, सामिसल चोफाल ॥ नमो० ॥ श्री वासुसार अनंतताए, पामी गुण संभाल ॥ सेवो०॥१५॥ सिद्धा बहु मुनि इण गिरिवरेए, यादववंश अनेक ॥ नमो० ॥श्रेणिक कुल साधु साधवीए, सिद्ध थया थिर टेक॥ सेवो०॥ १६ ॥ विद्याधर भूचर घणाए, इहां पाम्या गुण कोड़ी ॥ नमो० ॥ आतम हेते एहनीए, कोण करी सके होडि ॥ सेवो० ॥१७॥ तिवारे तीरथ पतिए, ए तीर्थे बहुवार ॥ नमो० ॥ Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०] . . . .. श्री प्राचीन स्तवनावली आव्या भविजन तारवाए, निरनम निरहंकार ॥ सेवो० ॥१८॥ पुंडरीक गिरिनी सेवनाए, जेह करे भवि जीव ॥ नमो० ॥ ते आतम निर्मल करीए, पामे सुख सदैव ॥ सेवो० ॥ १९॥ ए गिरिराजने सेवताए, देवचन्द्र पद लहे सार ॥ नमो० ॥ भव भव ए तीरथ सेवनाए, होजो परम आधार ॥सेवो० ॥२०॥ ॥कलश ॥ इम सकल तीरथ नाथ शत्रुजय, शिखर मंडण जिनवरो, श्री नाभिनन्दन जग आनन्दन विमल शिव सुख आगरो। शुचिपूर्ण चिदघन ज्ञान दर्शन सिद्ध उद्योत शुभ मने॥ निज आत्म सत्ता शुद्ध करवा, वीरजिन केवल दिने ॥ श्रीसुविहित खरतरगच्छ जिनचन्द्रसूरि साखा गुण निलो। उवझाय वरे श्रीराजसागर, शीश पाठक सिरतिलो। श्री ज्ञानधर्म सुशिष्य पाठक राजहंस गुण वरोः । तसु चरण सेवक देवचन्द्रो विनव्योजगहित करो॥ APoscom Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ N-AN श्री प्राचीनस्तवनावली . . . : ९९ ॥ श्री सिद्धगिरिराजनो लघु स्तवन । चालो मोरी सहियाँ श्री विमलाचल है। जिहां श्री ऋषभजिणंद हे। पूर्व नवाणुवार, समोसरथा है । केवलज्ञान दिणंद है ॥ चा०॥१॥ शुद्ध तत्व रसीया बहु मुनिवरू है, किध अयोगी भाव हे ते संभारी नमता नीपजे है। निरमल आत्म स्वभाव है। चा०॥२॥पांच कोडीथी मासी अणसणे है, पुंडरीक मुनिराय है, चैत्री पूनम सिद्ध थया तिणे है, पुंडरीक गिरि कहेवाय है ॥ चा०॥ ॥३॥ विधिसुं जे सिद्धाचल भेटसे है, करी उत्तम परिणाम है। नीमा भव्य कह्यो ते जिणवरे है, ए तीरथ अभिराम है ॥ चा० ॥ ४॥ सुरनर किन्नर गुण गावे मुदा है, प्रणमे प्रहसमे, रीझे है। देवचन्द्र ए तीरथ सेवता हे, सकल मनोरथ रीझे है। चा०॥५॥ Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ... श्री प्राचीनस्तवनावली ~ wwwww ॥ श्री पार्श्वजिन स्तवन ॥ पारस तोरी निरखण दे असवारी, अरजी सुणो प्रभु म्हारी ॥ पा० ॥ टेक ॥ काशीदेश वणारसी नगरी, दिन दशमी जयकारी । वामाराणी कूँखथी प्रभुजी, जन्म लियो सुखकारी ॥ पा०॥१॥ छप्पनदिग् कुमरी हुलराया, हर्ष हिये अति भारी। चौसठ इन्द्र करे वली महोच्छव, तरवा भवजल पारी ॥ पा० ॥२॥ एक क्रोढ साठ लाख सोहे छे, कलश महा मनुहारी । बारे जोजन पोला पेटे, पच्चास जोजन ऊंचा धारी ॥ पा०॥३॥ नीचा ऊंचा जोजन पहोला, निर्मल भरियो वारी । फूल चंगेरी बाबनाचन्दन, केशरनोधमसारी॥पा०॥४॥ इणिपरे ओच्छव सुरपति कीनो, जोइजो सूत्र संभारी। सुर गिरि ऊपर पांडुक वनमें, पांडुशिला। अति भारी ॥ पा०॥ ५॥ अश्वसेनराय उत्सव कीनो, दान दीयो दिल धारी ॥ शेरनी श्रेष्ठता जवे जुक्ते, बैठा गोख मझारी ॥ पा०॥६॥ लोक Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री प्राचीनस्तवनावली [ ९३ सहु पूजापो लहिने, कमठ पूजनकारी । प्रभु पधारथा देखण काजे, नाग जले तिण वारी ॥ पाο ॥ ७ ॥ काष्ट फड़ावी नाग निकाल्यो, संभलाव्यो मंत्र भारी ॥ समकित लइने सुरपति हुवो, घरणेन्द्र एकावतारी ॥ पा० ॥ ८ ॥ उगणीसे इगतालीश वर्षे, पोष दशमी रढियाली । आहोर नगरमें उच्छव कीनो, संघ सकल बलिहारी ॥ पा० ॥ ९ ॥ सुन्दर मुरति प्रभुनी विराजे, भविजन कुं सुखकारी । कीर्तिचंद सम सोभे जगमें, केशरमुनि जयकारी ॥ पा० ॥ १० ॥ ॥ श्रीनेमप्रभुकी बारेमासी (निहालकी ) || राजूल ऊभी विनवे रे पिया, सुणजो नेम कुंवार | आप पोते संयम लीयो रे वारी, जाय वढ्या गिरनार || अब घर आजा जादव नेमजी रे ॥ १ ॥ टेक ॥ खुद कोइ दाख्यो नहीं रे पिया, लीधो संजम भार ॥ ली० ॥ बिन अवगुण पिया Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९४] श्री प्राचीनस्तवनावली mmm परहरी रे वारी, चूक बतावो भरतार || अब० ॥२॥ आशा विलुद्धी में रही रे पिया, हंस रही मन, हुस० मनमाय ॥ दिन जावे पिया वरस ज्युं रे वारी, छ गुणी रात, छ० गणाय ॥ अब० ॥ ३ ॥ भूखा तो भोजन चाहे रे पिया, तिसिया चाहे ति० नीर ॥ में तो तुमको चाहतहुं रे वारी सांभल नेमकुंवार ॥ अब० ॥ ४ ॥ मेहलां वरसे मेहला रे पिया, आभा चमके ॥ आ० ॥ वीज ॥ तुम क्यों रूषीने रह्या रे वारी, आई श्रावणरी ॥ तीज ॥ अब० ॥ ५ ॥ श्रावण आयो साहिबा रे वारी, गाज रह्यो घन ॥ गा० घोर ॥ बूंद लागे पिया वाहरी रे । वारी जादव लियो चित्त ॥ जा० चोर ॥ अब० ॥ ६ ॥ नेनिजिणंद पाछा वल्या रे वारी आयो भाद्रव ॥ आयो० मास || दादुर पीपैया बोलिया रे || दा० वारी प्रीतम नहीं मुझ पास ॥ अब० ॥ ७ ॥ नैने नींद आवे नहीं रे पिया, आयो मास | आयो० आसोज । नेमि मुझ मूकी गया Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री प्राचीनस्तवनावली . रे वारी अब किम माणु पिया मोज ॥अब०॥८॥ कार्तिक कंत न बाहुल्या रे पिया, ऊभी जोवू ऊभी० वाट ॥ म्हेल पधारो साहिबा रे पिया सूनी हीडोला खाट ॥ अब० ॥९॥ मगसर वैरी आवीयो रे पिया, देवण लागो ॥ देवण. दुःख ॥ऊंडे पड़दे पिया पोढव्या रे वारी, सर्व गया मुझ सुख ॥ अब०॥ १०॥ नेमजिणंद पाछा वल्या रे वारी आयो रे पापी आयो० पोसो तुम क्यों गिरि बेसी रह्या रे वारी, अबही छोड़ो पिया रोस ॥ अब० ॥ ११ ॥ माह महिनो आवीयो रे पिया, वाजे शीतल ॥ वाजे० वाय। शीयाले की रैन मेरे, वारी वालम आवे दाय ॥ अब० ॥ १२ ॥ ठंड पडे देह काँपती रे पिया, नहीं नणदलरा नहीं० वीर ॥ रातही काडं रोवती रे पिया, आसुड़े भीजो चीर ॥ अब० ॥ १३ ॥ फागुण पिया आवीयो रे वारी, सबको मन ॥ स० हरखाय । में फ्रागुण पिया केम रमुं रे वारी, वालम गयो वनमाय ॥ अब Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ wuuuuuuuuuuu . . श्री प्राचीनस्तवनावली ॥ १४ ॥ चैतज मासज चमकियो रे पिया, फूल्यो सब वन ॥ फू० राय । फूलीह तिरिया कामणी रे वारी, कन्त पियो सुखदाय ॥ अब० ॥ १५ ॥ वैशाखा वेलू जलेरे पिया, दाझे तनसुख ॥दाझे० माल ॥ कामणगारो कंथजी रे, वारी, वेगा आय संभाल ॥ अब० ॥ १६ ॥ जैठ तपे लू आकरी रे पिया, पूछ सकी नहीं। पूछ० वात। गिरिगुफा विराजिया रे, वारी, जादव नेमिनाथ ॥ अब० ॥१७॥ आषाढी आछी तरे रे बारी, छोड्यो सब छोड्यो० संसार । तीनसया परिवारसुं रे, वारी, पहोंती गड़ गिरनार ॥ अब० ॥ १८ ॥ राग भरी राजीमति रे वारा, लीधो संयम । लीयो० भार। चउपन दिन पेला गइरे । वारी, पहुंता मुक्ती मझार ॥ अब० ॥१९॥ सदगुरू साचा भेटियारे वारी, अमरचन्दजी, अ० गुरूराय । रूपचंद पाये नमीरे, वारी, राखो मुझ चरणा रे पास ॥ अब० ॥२०॥ चिहुं एक नव जाणीये रे वारी, भला Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री प्राचीनस्तवगायली . . . . [९७ इग्यारे भला. गणधर । श्रावण मास तिथि अष्टमीरे वारी, चन्द्रवार सुखकार ॥ अब० ॥ २१ ।। मरुधर देश मांहे अछेरे वारी, नाम सुख, नाम चंद श्रावक तो सब सुखी वसेरे वारी, करे धर्मका काम ॥अब० ॥२२॥ झरमर वरसे मेहलारे वारी, चिहुं दिशि चमके, चिहुं० वीजराजूल ऊभी गोखड़ेर वारी, मदन करत मनखीज ॥अब०॥२३॥ श्रीधन्ना अणगारनी सिज्झाय ॥ एक दिन वीरवाणी सुणीनेरे धन्नो, आयो जननी पास, कहे जिनधर्म जाण्यो सही ए माता, काल जाये श्वासोश्वास ॥ “ माता हुँतो लेशुं है, जननी लेशु संजम भार। ए संसार असार छे माता लेशु संजम भार" ॥ टेक ॥ १॥ शीयालामें शी घणो धन्ना, उनाले लू झाल । चौमासे झड़ वादलीरे धन्ना, ए दुःख किम सहे बाल ॥ धन्ना हुँतो वारीरे जाया, मत लेवो संजमभार ॥ २॥ हिमाले Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ wwwimwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwww ९८] . . . . श्री प्राचीनस्तवनावली पस्वी रहे ए माता, किम सेसी शितकाल। चौमासामे घर नहीं माता, बैसे पांखड़ा ढार ॥माता० ॥३॥ वन में तो रहेवो एकलोरे धन्ना कुण करे थारी सारथे दुःख कांइ देख्यो नहींरे धन्ना, संजम विखम अपार॥ धन्ना०॥४॥वनमें तोरहेवे मृगला ए माता, कुण करे वांरी सार । चरे फिरे सुखमे रहे माता, दुःख छ न लिगार ॥ माता० ॥५॥ भूख तृषा छे दोहिलीरे धन्ना, नहीं मिले सूझतो आहार। असूजतो मुनि लेवे नहींरे धन्ना, संजम खांडानी धार॥धन्ना०॥६॥भूख तृषा नहीं दोहली ए माता, दोहिलो नरकनो दुःखा सुर वैदना में सही माता, नहीं लियो सुख लिगार॥ माता० ॥ ७॥ पाय अलवाणे चालणारे धन्ना, माथे सहणोरे ताप ! घर घर भिक्षा मांगणीरे धन्ना, एह बड़ो संताप ॥ धन्ना०॥८॥ माथे ताप सह्यो घणो ए माता, अलवाणे कई वार। भव भव में भमतो फिरयो ए माता, नहीं लियोसुख लिगार॥माता० Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री प्राचीनस्तवनावली [ ९९ I ॥ ९ ॥ लोच हुवे अतिदोहिलोरे धन्ना, थें छो अति सुखमाल गुरू आणामें चालणोरे धन्ना, संजम नहीं छे खियाल ॥ धन्ना० १० ॥ लोच नहीं छे दोहिलोए माता, दोहिलो गर्भ भंडार । शूल वेदना में सही माता, संसार में नहीं सुख ॥ माताο ॥ ११ ॥ पातरामाहिं वेरणोरे धन्ना, खावणो का चलीमांह | नित्य भूमिये सोवणोरे धन्ना, धरिये न दुःख मन मांह ॥ धन्ना० ॥ १२ ॥ वार अनंती जीवड़ो ए माता, जीम्यो ठीकर खंड । शूली वर सूतो रह्यो माता, नरक में सही बहु ठंड ॥ माता० ॥ १३ ॥ धन्न घणो घर मांहिनेरे धन्ना, ए सुखलेणी नार । छोड्यासे पछ तावसोर धन्ना, मेरु ज्युं संजम भार ॥ धन्ना० ॥ १४ ॥ धन्नरे वे घर मांहिनेरे ए माता, नारी देसी छोड़ | चारित्र तो चिंतामणि ए माता शिवरमणी रो मोड़ ॥ माता० ॥ १५ ॥ नित ऊठी घोडला फेरतारे धन्ना, नित ऊठी वागा जाय । ए बत्तीसी राणीयारे धन्ना, ऊभी रही विलखाय ॥ Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १००] श्री प्राचीनस्तवनावली धन्ना० ॥ १६ ॥ नित ऊठ घोड़ला फेरताए माता, नित ऊठी वांगा जाय। ए बत्तीशी राणीया ए माता, निश्चय नरक ले जाय || माता० ॥ १७ ॥ तुं मुझ आंधा लाकड़ीरे धन्ना, जे कोइ टेको होय । जो लाकड़ी टूटी पड़ेरे धन्ना, अंध खराबी होय ॥ धन्ना० ॥ १८ ॥ रत्न जड़तरो पींजरो ए माता, सूओ जाणे छे फंद । काम भोग संसारना ए माता, दीसे छे दुःख दंद ॥ माता० १९ ॥ माताने समझायनेरे धन्नो, जावा लागो जा म ताम आवीने वीनवेहो पिउ, हाथ जोड़ीने शाम ॥ पिउ मति जावोरे, मति जावो छोड़ी नार” ॥ २० ॥ घणे आडंबर परणिया हो पिउ, भोगवो भोग रसाल । झटके छोड़िने चालिया हो पिउ, ऊठे छे मनमें झाल ॥ पिउ० ॥ २१ ॥ वार अनंती परणीया ए प्यारी, तुम सरिखा घणी नार । छोड़ी छोड़ने चालिया ए प्यारी, कोइ न आवी लार ॥ "प्यारी म्हेंतो लेशांए, प्यारी लेशां संजम भार " ॥ २२ ॥ भर यौवन सुख भोगवो Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री प्राचीनस्तवनावली . . . . [१०१ हो पिऊ, प्रत्यक्ष सुख छे एह छोड्या से पछतावसो हो पिऊ, करसणीज्युं चूके मेह ॥ पिऊ० ॥२३॥ में तो कांइ चूका नहीं ए प्यारी, तुम चूकाप्रत्यक्ष । सुख छे थोड़ा कालनो ए प्यारी, पीछे मारसी जक्षाप्यारी०॥२४॥म्हेतो जाणाछां आपने हो वि० लालच लागो छे जेह । मोक्ष नारी नहीं दीपती हो पिऊ, मोक्ष छे म्हारी देह ॥ पिऊ०, ॥२५॥ मलमूत्रनी थारी देहड़ी है प्यारी, मोक्ष छे सिद्ध स्वरूप । इतरा दिन भोले रह्यो ए प्यारी, में जाण्यो अंध कप ॥ प्यारी०॥२६॥ एम कही धन्नो चालियोरे धर्मी, आयो प्रभु के पास । संजम लहीने सीखवे धर्मि, नित करे अंग सिझाय ॥ " शिरोमणि साधुजी, कहेवाणा तपसी सार” ॥ ॥२७॥ अणसण कर अनुतर गयाजी, वरत्या छे जय जयकार ॥ शिरोमणि ॥ समयसुन्दरजनिी विनतिजी, मान लीजो म्हाराज ॥ शिरो० ॥२८॥ Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२] . . . . . श्री प्राचीनस्तवनावली ॥जंबु कुअरकी सिज्झाय ॥ जंबु कयो मानलेरे जाया, मत ले संजम भार ॥ ए आठोइ कामणीरे जंबु, अप्सरारे उणि यार । परणाने काइ परिहरोरे, यांरो किम निकलेरे जमार ॥ जं० ॥१॥ ए आठोइ कामणीरे जंबु, तुझ विण विलखी थाय । रवि आथमीये किम सरे यारों, वदनमुखी कमलाय ॥जं॥२॥ मन हीना छे मानवी माता, मन मन ने भरपूर । रूपे रमणी जो रमे माता, जस दुरगति छे नहीं दूर ॥ माता० ॥३॥ पाली पोसी मोटो कियोरे जाया, इम किम दे छटकाय । माता पिता झूरे घणा थारे, दया नहीं दिलमाय ॥ जं० ॥ ४॥ छिन्नु क्रोड़ सोनैया हुंताजी, श्री श्रीभंडार मांय, नन्याणु कोडनो दायजोरे जाया, धन आवे छे आज॥जं० ॥५॥ एक लोटो पाणी पीयो माता, मात पिता छे अनेक । सघलारी दया पालसु माता, आप Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ naww.inwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwww भी प्राचीनस्तवनावली . . . . [१०३ समान छे लेख ॥ माता० ॥६॥ ए आठोइ कामणी जाया, सुख विलसो संसार । दिन पाछा पडिया पीछे जाया, भले लीजो संयम भार ॥जं० ॥७॥ रत्नजडितरो पीजरो माता, सूवो जाणे छे फंद। काम भोग संसारना माता, ज्ञानी वतावे छे फंद ॥ माता०॥८॥ तु मुझ अंधा लाकड़ी जाया, तु मुझ प्राण आधार । तुझ विन म्हारे जग सुनो जाया, तुझ विण घडीरे छमास ॥ ज०॥९॥ मात पिता मेलावडोमाता, मिलिया अनंति वार। तारण समरथ को नहीं ए माता, मातपितापरिवार ॥ माता०॥१०॥ पंचमहाव्रत पालणो जाया, पांचोइ मेरू समान । वावीश परीसह जीतनारे जाया, चारित्र खांडानी धार ॥ ज०॥ ११ ॥ ए आठोंइ कामणी जंबु, समझावी एकण हात । ए जिनरो धर्म ओलख्यो, एतो लेसे संजम भार ॥ जं०॥१२॥ मोह मति करो माताजी, माता, मोह कियो बंधे कर्म । आडा कांइ फिरों थे तो, करोजी Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४] . .. .. . श्री प्राचीनस्तवनावली श्रीजिन धर्म ॥ माता० ॥ १३ ॥ मात पिताने तारिया जंबु, तारी छे आठोइ नार । सासु सुसराने सारीया जंबु, तारया छे पांचसो चोर "जंबु भले घेतीयो जाया, भले ले संजम भार" ॥ १४ ॥ पांचसो सतावीस सुजाणसुं, लीधो छे संजम भार। इग्यारे जीव भुक्ते गया, ए तो वरत्या छे जय जयकार ॥ जंबु० ॥१५॥ ॥ क्रोध की सिज्झाय ॥ क्रोध कियो आछो नहीं, आलतां लक्ष्मी नासेजी। दुःख दारिद्र घरमे धसे, कोडोना पाप उपार्जेजी ॥ "क्षमारे किया सुख पामीजे" ॥ ओ भाख्यो श्री जगदीशोजी ॥ जे सुख चाहो जीवको थे, कोइमत करजोरीसोजी ॥१॥ गाल वैचीजे राडमें, लाडु नहीं वेचीजेजी । वालोपिण वैरी हुवे, इसड़ो काम न कीजेजी ॥ २० ॥ २॥ बाप बेटो भाई भाई, सासु वहु गुरू चेलाजी । क्रोध थकी Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री प्राचीनस्तयनावली [ . १०५ उछल पड़े, न जाणे नेडी सगाईजी ॥ क्ष० ॥ ३॥ क्रोधी नर कालो पड़े, आसखरी वात विगाड़ेजी ॥ आगोरे पीछो जोवे नहीं, लाखीणी प्रीत घटावेजी ॥ क्ष० ॥ ४ ॥ कोइरे वचन करड़ो कहे, अथवा ते आघो पीछोजी ॥ दव ने दाध्ये ने पांगरे, नहीं पांगरे वचनोरो विंध्योजी ॥ ० ॥ ५ ॥ ज्यारे घरमें एक क्रोधी सघलाने संतापेजी । ज्यारे घर में सघला क्रोधी ज्यारां किसा हवालाजी ॥ क्ष० ॥ ॥ ६ ॥ तपस्या तपे ना रिसरे, आ आंखमा मरच किम आंजेजी । तपस्या विणासे क्रोधथी, आ दूध विणासे कांजीजी ॥ क्ष० ॥ ७ ॥ क्षमारे किंवा शंका महीं, आगे फल लागे आछाजी । खंधक ऋषि क्षमा करी, बेनोइ खाल उतारीजी ॥ रायप्रदेशी देखने, ओ तत्क्षण लीधो मोक्षजी ॥ क्ष० ॥ ८॥ समयसुन्दर कहे क्रोधने, तमे दीजो देसोटाजी । क्रोध तजे शिवपुर लहे, पामे भवनो पारजी ॥ ॥ क्ष० ॥ ९ ॥ Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६ ] श्री प्राचीनस्तवनावली ॥ अथ बारे व्रतनी सिज्झाय ॥ गौतम गणधरजीरे पाँय नमीजे, सद्गुरूजीरी वाणी काने सुणीजे ॥ " इणिपरे श्रावक बारह व्रत लीजे " ॥ लीजे लीजे ने जिनवर पूजीजे ॥ बारह व्रतनी टीप लिखि जे ॥ इणि० ॥१॥ पहिले जीवदया पालीजे ॥ तो निरोगी काया पामी जे ॥ इण० ॥ २ ॥ दूजे मृषा झूठ न बोले, तोछतो अछतो आल न दीजे ॥ इण० ॥ ३ ॥ त्रीजे अदता चौरी न कीजे, तो पडि वस्तु हाथे न लीजे ॥ इण० ॥ ४ ॥ चोथे चोखो शील पालीजे, तो रत्न पावड़ाये मोक्षपद लीजे ॥ इणि० ॥ ५ ॥ पंचमे परिग्रह परिमाण कीजे । तो पांचे इन्द्रिय पोते वश कीजे ॥ इण० ॥ ६ ॥ छेट्टे दिशिनी मर्यादा कीजे, तो छः कायजीवाने अभयदान दीजे ॥ इणि० ॥ ७ ॥ सातमे भोगोपभोग कहिजे, तो छति समर्था आहार तजीजे ॥ इणि० ॥ ८ ॥ Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री प्राचीनस्तधनावली . . . . ११०७ आठमे अनर्थ दंड न कीजे । तो आठ कर्म यो क्षय कीजे ॥ इणि ॥ ९॥ नवमे सामायक व्रत करीजे, तो अवतीने आहकारी न दीजे ॥ इणि. ॥१०॥ दशमें देशावगासिक करीजे ॥ तो एकासण वेग ध्यान धरीजे ॥ इणि० ॥११॥इग्यारमे पौषधोपवास करीजे। तो व्रत लिया पछे खंड न कीजे ॥ इणि॥१२॥ बारमे अतिथि संविभाग करीजे । तो साधु सम्यक्त्वीने सुजतो दीजे ॥ इणि० ॥१३॥ संलेषणाको पाट भणिजे, तो पादु पक्षण अणसण कीजे॥ इणि०॥ १४ ॥ दश श्रावक संथारो कीनो ॥ तो अगरवती परभती काउस्सग्ग कीजे ॥ इणि० ॥१५॥ श्रीविनयमुनिजी इणिपरे बोले । तो नहीं कोइ साधु समकितानी जोड़े ॥इणि ॥ १६ ॥ resosor. Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०६] . .. .. . श्री प्राचीनस्तवमावली ॥ परनारी गमन निषेध सिज्झाय ॥ - नर चतुर सुजाण, परनारीसुं प्रीत कबु न कीजिये ॥ सुण वाला सेण, देख पराइ नार हरख नवी कीजिये ॥ सांझ पड़े दिन आथमे, तेहनोजीव भमरा परे भने । वली घरनो कारज नइ गमे ॥ ॥न०॥ परनारीसु प्रीतड़ली, क्षण एक लागे मीठड़ली; पीछे तोड़े भवनी प्रीतड़ली ॥ नर०॥२॥ तान मोदन प्यालो पायदेसी, थारा शस्त्र वस्त्र खोसी लेसी, थारा हाथमें हाँडी देइदेसी ॥ नर० ॥३॥थारो जोबन लेती लूटीने, थारों धन लेती सब खुटीने; पछे रोसी हियड़ो फूटीने ॥नर० ॥४॥जोबन हारीने काइ करस्यो, देहीनो देव तुमे हरस्यो; पछे दुरगति माही जाइ पडसो ॥ नर० ॥५॥ उदयरत्नकी सीखड़ली, तुम चाखो अनुभव सुखड़ली। एहथी भांजे भव भृखड़ली॥ नर० ॥६॥ Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री प्राचीनस्तवमावली . . . . [१०९ ॥अथ नेमनाथजीनो स्तवन ८ वारनो ॥ सोमवारे प्रभुजी पधारयारे ।मथुरा नगरीमा आयारे। छप्पन कोड़ जादव मली आया॥ “केजो श्री नेमजी केम ना आयारे ॥१॥ मंगलवारेथी तोरण आयारे। पशु नाद सुणी मन थायारे ॥ पूछे शाश्वती केम मंगाव्या ॥ के०॥३॥ बुधवारे दया मन आणीरे। पशु छोड़ावे क्षमा गुण जाणीरे। राणी राजूल रोष भराणी ॥ के० ॥ ३ ॥ गुरूवारथी गिरनारे चढियारे । सहस्स पूर्व सह परिवरियारे । ठामो ठामथी पगला वरिया ॥ के०॥४॥ शुक्रवारे सहसा वन विराजेरे। प्रभु त्रिगड़ागड़मा राजेरे ॥ मेग वरणी देशापुर गाजे ॥ के०॥५॥ शनीवारेथी संजम धारीरे । लागे केवल ज्ञाननी ताडीरे॥ सहसावनमा मेल्या नर नारी ॥के० ॥६॥ अदीत्ते आणंदकारीरे। प्रभु गायोथी सुखकारीरे॥ श्रावक ने हितकारी ॥ के० ॥ ७॥ राजूल ऊभी Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११०] . . . . श्री प्राचीनस्तवनावली विनवेरे, संजम लेउं तुम पासेरे । तुम गुरू थवाथी हुवे हुल्लासे ॥ के० ॥ ८॥ साधु अठारा हजार विराजेर ॥ साध्वीया चालीस हजाररे । चौदे पूर्व धर सो चार ॥ के० ॥९॥पन्नरसो अवधी ज्ञानना धरियारे । पन्नरसो वेक्रिय लब्धीना धरियारे । केवल ज्ञान पंदरसो जाण ॥ के० ॥ १० ॥ एक सहस्स मनः पर्यव ज्ञानीरे । वाद करवाना आठसो जाणीरे । एक लाख उगणोत्तर सहस्स श्रावक ॥के०॥११॥त्रण लाख चालीस हजार श्रावीकारे। पांचसो दो छत्रीस मुनि साथेरे। एक सहस्र आयुष्य थयो जाणी ॥ के० ॥ १२॥ आषाढ शुक्ल अष्टमी दिनेरे, चित्रा नक्षत्र सायंकालेरे ॥ प्रभु मोक्ष थया हुल्लासे ॥ के० ॥ १३ ॥संवत् उगणीसो सित्तर शालेरे। मिगसर विदी छठ कहीसरे । बुधवार ने निशदिश ॥ के० ॥ १४ ॥ मोहन मुनिजीना पसायरे । शिष्य यश सूरिजी पूरे आशरे । गायो राजगृह मांय हुल्लासे ॥ के० ॥ १५ ॥ Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री प्राचीनस्तवनावली [१११ ॥ स्तवन । गुमानी घर वरसत क्यों नहीं पानी । वरसत क्यों नहीं पानी हो ॥ गु० ॥ जीव जंत सब तरसन लागा, ए धरती सोही कुमलाणी ॥ हो० गु० ॥ १ ॥ सूक गया सरोवर, ऊड गया हंसाए, बेलड़ी आई कमलाणी ॥ हो गु० ॥ २ ॥ हरी हरी बूँद घटा जुं कहाइए, सरोवर नीर गलोला ॥ हो गु० ॥ ३ ॥ दादुर मोर पपैया बोलेए, कोयल मधुरीस वाणी हो ॥ गु० ॥ ४ ॥ सुर कहे प्रभु तु मारे भजनसेए, इण भवथीए मुझ तारो । परभवथी मोय तारो ॥ हो गु० ॥ ५ ॥ ॥ अथ स्तवन दादाजीका || अरे लाला श्रीजिनदत्त सूरिश्वरू, दादा प्रह ऊगमते सूररे लाला, भाव धरी पूजो सदा, कुंकुम घस मेली कपूररे लाला ॥ श्री० ॥ १ ॥ जीती चौसठ जोगणी, वश कीया बावन वीररे लाला ॥ Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११२] . . . . श्री प्राचीन स्तवनावली मंत्र बले कर साधीया, जिणपंच नदी पंच पीररे लाला ॥ श्री० ॥२॥ प्रतिबोध्या श्रावक श्राविका, मील लाख सवा सहदेशरे लाला। जैन धर्म दीपावियो, खरतरगच्छ कमल दीनेश ॥ श्री०॥३॥ हिंसा टालीजीवनी, जे सिंध सवासो देशरे लाला। दानव मानव देवता, माने सह आण नरेशरे लाला । श्री०॥ ४ ॥ जुग प्रधान पद जेहने, देवे परतिख हुइ दीधरे लाला। पुन्य पुरूष जग परगड़ो, जिण करणी उत्तम कीधरे लाला॥श्री०॥५॥ कामित दायक कलियुग, सांचो सुर तरू अवताररे लाला । समरण श्याम घटा करी, महियल वरसे जलधाररे लाला ॥श्री०॥६॥आज विषम पंचम आए, जेहना मोटा अबदातरे लाला । नामे न पडे वीजली, न हुए छल छिद्र तिल मात्ररे लाला || श्री० ॥७॥ संवत बार इग्यारमे,आषाढ शुक्लपक्ष जाणरे लाला। इग्यारस सदगुरू तणी, अजमेर नगर निरवाणरे लाला ॥ श्री०॥ ८॥ Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री प्राचीनस्तवनावली . .. .. . १९३ महर करी मुझ ऊपरे, गुरू पूर निजर निहालरे लाला। राज हरख कर जोडने, गुरू वंदे चरण त्रिकालरे लाला ॥श्री० ॥ ९॥ ___ आयो आयोरी समरता दादोजी आयो । संकट देख सेवक कुं सद्गुरू देरावरत्ये थायोरी। समरता० ॥१॥ वर्षे मेहने रात अंधेरी, वाउफेण सवलो वायो। पंच नदी हमे बैठे बेडी दरिये चित्त डरायो ॥ समरता० ॥ २॥ उच्च भणी पहुंचावण आयो, खरतर संघ सवायो । समयसुन्दर कहे कुशल कुशल गुरू, परमानंद सुख पायोरी ॥ समरता० ॥३॥ ॥ स्तवन १ लुं॥ ॥ राग प्रभाती ॥ उठोने मोरा आतमराम-ए देशी ॥ सिद्धगिरि ध्यावो विमल जावो, कंचनगिरि वेलां वधावोरे ॥ सिद्ध०॥ए आँकणी ॥ इण गिर वरियारी महिमा मोटी, कहतां न लागे खोटीरे। Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ AAAA ११४] . . . . श्री प्राचीनस्तवनावली रायण रूंख समोसरथा स्वामी, पूर्व नवाणुं मोटीरे ॥ सिद्ध० ॥१॥ पांच कोडीसुं पुंडरीक सिद्धा, बेबे कोडिशुं नमि विनमि जाणोरे । दश कोडि परिवारे द्राविड़, वारि खिल्ल वखाणोरे ॥ सिद्ध० ॥ २॥ राम भरत पांडव नारद ऋषिराया, गुण प्रभुका इहां गायारे । कर्म खपावी केवल पाया, हुवा शिवरमणी रायारे ॥ सिद्ध० ॥३॥ थावच्चा पुत्र ने शुक शैलक मुनि, देवकीनन्दन सिद्धारे । शांब प्रद्युम्न कुमार इहा सिद्धा, कारज निजनिज कीधारे ॥ सिद्ध० ॥ ४॥ गिरिवरे जिनजीकी सेवा हेवा, नितनित मुझने होजोरे । जिनज्ञाने जिनध्याने रहिने, 'जिनचन्द्र' पद लेजोरे ॥सिद्ध०॥५॥ ॥ स्तवन २ जुं॥ सिद्धाचल मंडण स्वामीरे-ए देशी। . चौमासु सिद्धाचल रहियेरे, मंदिर तलाटीये नित जइयेरे । हारे जिन दर्शनना द्वेषि न थइये Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री प्राचीनस्तवनावली . . . . [११५ जातीडा जातीड़ा जिनदर्शन सुख कंदोरे । हारे एतो टाले भवनो फंदो-जातीडा जिनदर्शन मत निंदोरे ॥१॥ अमे जयणाथी इहां जासुरे, प्रभु आणाने दिल मांहे धरसुंरे । हारे तेथी आराधक अमे तरसुं ॥ जातीडा सिद्धगिरि चौमासु करियरे ॥ २॥ अमे जिनदर्शनना रंगीर, ढकना नहीं संगीरे । हारे किम थइये जिनदर्शनना भंगी॥ जा० ॥३॥ वषाले गिरि मुनि जावेरे । कोश अढी श्रीवीर फरमावरे । हां रे कल्पसूत्र विरुद्ध किम कहावे ॥ जातीडा० ॥ ४ ॥ सिद्धगिरि जिन दर्शन सारूंरे, एतो लागे मुजमन प्यारूंरे । हारे जिनदर्शन 'जिनचन्द्र' तारूं ॥ जा०॥५॥ ॥ स्तवन ३ जुं॥ सिद्धाचल दर्शन करवाने, मनडु उमायुं मारुं भविजन भवजल तरवाने-ए देशी ॥ चौमासु सिद्धाचल करसुंजी, तलाटी मंदिर दर्शन करीने पावन थांसुजी ॥एआकणी ॥ आदि Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११६] . ..... . श्रा प्राचीनस्तबनावली जिणंद इहा आवीयारे, पूर्व नवाणु वार । अजित शान्ति चौमासु कीधो, गणधर मुनि परिवार ॥ सिद्धा०॥१॥ दर्शन करवा जे जन जावे, तेने निंदे निषेधे। शंका थइ समाधान स्तवनथी, करसुं आतम बोधे । सिद्धा० ॥२॥ आणा माने जिन तणारे, ते संघ आण प्रमाणा । जिन दर्शन निषेधनुरे, किम झूठ डफाण ॥ सिद्धा०॥३॥ वर्षाले अढी कोश ऊंचारे, गिरि चढ़े अणगार । कल्पसूत्रे आणा वीरनीरे, किम नहीं मानुं विचार ॥ सिद्धा० ॥४॥ट्रंकेतिम तलाटीयेरे, पगले मंदिरेन जवाय। शास्त्रे तेवो निषेध नहींरे, आगे जाता ने जवाय॥ सिद्धा० ॥ ५॥ तलाटी मंदिर दर्शनेरे, जे जावे भव्य जीव । तेने किम निषेधियेरे, हृढक परे करी खीव ॥ सिद्धा०॥६॥ सिद्धगिरि मंदिर दर्शनेरे, जो वर्जु नरनार । दुर्लभ होय जीवड़ोरे, भमे घणो संसार ॥ सिद्धा०॥ ७॥ पगतिया पनर डूंगर चढीरे, पगला देखुं नहीं दोष । चढी आगे पग Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री प्राचीनस्तवनावली . . . . ११७ तियां। जिन देखुरे किम मार्नु कहो दोष ॥ सिद्धा० ॥८॥ जो कहूं जीव विराधनारे, जयणाथी नहीं होय । तो तलाटी पगले मंदिरेरे । जयणाए चालो सहु कोय ॥ सिद्धा० ॥ ९॥ अंधेरेने बूंवरेरे, वर्षते फूस फूसे जाय । जयणा विना इम जावतारे, विराधकते थाय ॥ सिद्धा० ॥ १० ॥ जयणाए इहां चालवुरे, जयणाए बेसंत । पाप कर्म बांधे नहींरे, इम भाखे भगवंत ॥सिद्धा०॥ ११ ॥ एकेकु डगलु भरेरे, गिरि सन्मुख उजमाल । कोडिरे भव सहसना करयारे, पाप खपे तत्काल ॥ सिद्धा०॥१२॥ पगतियां पनर डूंगर चढीरे, आगे ऊपर चढे जेह। तेने विराधक बोलतारे, सूत्र विरूद्ध होय तेह ॥ सिद्धा० ॥१३॥ तलाटी पगले दर्शनेरे, नहीं विराधक तेह । तलाटी मंदिर दर्शनेरे, नहीं विराधक एह ॥ सिद्धा० ॥ १४ ॥ तलाटी पगले दर्शनेरे, होय आराधक जेह । तलाटी मंदिर दर्शनेरे होय आराधक तेह ॥ सिद्धा० ॥ १५ ॥ जिन दर्शन Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ vvvvvvvvv.WAM ११८]. . . . . श्री प्राचीन स्तवनावली पूजन थकीरे, पामे परमानंद । भव भव दर्शन जिन तणुरे, मुझने होजो जिनचंद॥ सिद्धा०॥१६॥ पुंडरीक गणधर चैत्यवन्दन . पुंडरिक गणधर ने नमुं, भावधरी उछरंग। प्रथम जिणंद गणधर विषे, ए सहुमें अति चंग ॥१॥ आदि जिणंद आदेशथी, आव्या विमल गिरिंदं । आदरी अणसण अति भलु, पंचकोड़ी मुनिचंद ॥२॥ सिद्धध्यान ध्याता थकाए, करी कर्मनो नाश ॥ चैत्री पूनम शिवसुख लयं, यो जिनचंद्र ते वास ॥३॥ श्री पुंडरीक गणधर-स्तवन नमो नमो पुंडरीक गणधरूरे लो। आदि जिणंद गणधार, मन मोह्युरे ।आदि जिणंद उपदेशथीरे लो। सिद्धगिरि मुक्ति धार ॥ मन मोह्युरे Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री प्राचीनस्तवनावली [१.१९ ॥ नमो० ॥ १ ॥ सिद्धाचल अणसण करीरे लो, धरता सिद्धनु ध्यान ॥ मन मोरे | पंचकोड़ी परिवारथीरे लो । पाम्या केवल ज्ञान । मन० ॥ नमो० ॥ २ ॥ चैत्री पूनम मुग्ते गयारे लो, सादी अनंत करो वास ॥ मन० ॥ भव भव सरणो तेहनारे लो । ए मांगु जिनचन्द्र आस ॥ मन० ॥ नमो० ॥ ३ ॥ थुइ १ कल्याण ते श्रेय रूपे, मानियाए, माता बे कुंखे महावीर तो सर्व जिन जननी कुंखेए, आव्या कल्याण तिम धारतो । भाखी जिन पडिमा पूजाए, ऋतुवंती न पूजे देवतो । पूजती ऋतुवंती जे थायए, पूजे न ते प्रभाविक देवतो ॥ १ ॥ (नोट - ए थुई ४ वेला पडिकमणामां पण बोलाय ) थुई ४ कल्याण गर्भ हि वीर हरण ते धारण, त्रिशला कुंखे अवतरीया (संक्रमिया) जी । कल्याण श्रेय Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ now १२०] . . . . श्री प्राचीनस्तवनावली फल कल्याण सुपने, बे माता इन्द्रादि सह मान्या जी ॥ नीच उच्च बे गोत्रे अच्छेलै कल्याण जे तें किम कहुं अकल्याण जी। कल्याण जे उच्च गोत्रे ते नीच विपाक निंद्य, कही किम था', अकल्याण जी॥१॥ सर्व जिन माता कुंखे, जब आव्या, 'क मन्ने कल्लाऐं फलमान्या जी। कल्याण ते श्रेय सुख समृद्धि पुत्र लाभ, सुपने पाठके दिखलायाजी ॥ राणी राजा इन्द्रे सर्वे तिम मान्या, श्रुत केवली भद्रबाहुएजी। कल्पसूत्रपंचाशके जिन गर्भ धारण, कल्याण श्रेय बतावेजी ॥२॥ श्री जिन पडिमा पूजा भारवी, ऋतुवंती नहीं पूजे नारजी। धन हाणी काया रोग इह भवे होवे, शासन मलिनता कारजी ॥ जिन अंग पूजती, ऋतुवंती थाय जे, करे देव प्रभाव निसारजी। ते स्त्रि न पूजे, देवाधिष्ट मूल बिंब, जे शासन उन्नति कारजी ॥ ३॥ वीर शासन सिद्धायिका देवी, सुरगण करे सदा सारजी । कीर-कल्याण श्रेय गुण गण गातां, श्रेय फल Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री प्राचीनस्तबनावली . . . . [१२१ कल्याण अपारजी ॥ नीच निंद्य अकल्याणक भूत मानी, किम बांधु कर्मनो भारजी। जिन आशातना अवगुण बोले,श्रीजिन चन्द्रशासन दूरजी ॥४॥ reason समाय नगरी द्वारिकामा नेमि जिनेश्वर, विचरतांप्रभु आविया।कृष्ण नरेश्वर वधाइ सुणीने, जीत नगारा बजराव्या प्रभुजी नहीं जाउं नर्कनी घर नहीं नहीं जाउं नर्कनी घेर ॥१॥ सहस्र अट्ठारे साधुजी विदीसुं, वाद्यां अधिक हरखे। पछे नेमि जिनेश्वर केरा ऊभा मुखड़ा निरखे ॥प्रभु०॥शा नेमि कहेरे तुमे चार निवारी, तीन तणा दुःख सहा कृष्ण कहेरे हुँ फरी फरी वंदु, हियडे हर्ष घणेरो ॥प्रभु० ॥३॥ नेमि कहे तुम टाल्या न टरसे, मानौं ते एक वात ॥ कृष्ण कहे मारे बाल ब्रह्मचारी, नेमि जिनेश्वर भ्राता ॥प्रभु०॥४॥ पेटे आवीयो ते Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२२] , .. . . श्री प्राचीनस्तवनावली भोणीयो भेटे पुत्र कुपुत्रज जायो । भलो मँडो पण जादवकुळनो, तुम बांधव केवायो ॥ प्रभु०॥ ॥५॥ मोहटा राजानी चाकरी करतां,रांक सेवक बहु हरसे । सुर तरु सरिखो अपजज थासे तो लरी केम फरसे॥ प्रभु०॥६॥छप्पन कोडरे जादवनोसाहेबो कृष्णज नरकज जासे।नेमि जिनेश्वर केरोरे बांधव जब मोही अपजस थासे ॥प्रभु०॥७॥ समकित शुद्धनी परिक्षा करीने, बोलिया केवलनाणी। नेम जिणेसर दियोरे दिलासो, खरो रुप यो जाणी॥ ॥ प्रभु०॥८॥ नेमि कहेरे तुम चिंता न करसो, तुम पदवी हम सरिखी। आवती चौवीशी होसो तीर्थकर, हरि पोते मन हरखी ॥ प्रभु० ॥९॥ जादवकुल उजलायोरे नेमजी । समुद्रविजय कुल दीवो। इन्द्र कहेरे सेवा देवीनो नंदन, क्रोड़ दीवाली जीवोरे ॥ प्रभु० ॥१०॥ Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री प्राचीनस्तवनावली [ १२३ ॥ सज्झाय ॥ आयो एकेलो इकोइ जासी, क्यों करे इतनी उदासीरे । जीव कुटुम्ब मिल्यो तरू खग निवासी । अवधी परभाउदासीरे ॥ जी० ॥ आ० ॥ १ ॥ पुद्गल ऊपर पंच लोभायो, मिल मिल विछड़ जावेरे ॥ जी० ॥ सडण पडणरो धर्म कहावे, निश्चल कर्म ठहरावेरे ॥ जी० ॥ अ० ॥ २ ॥ आछा संजोग मिल्या सुख माने, हुआ विजोग दुःख आणेरे ॥ जी० ॥ सुख दुःख बेहु झूठारे जाणु, जे निजरूप पीछाणेरे || जो० ॥ आ० ॥ ३ ॥ भोग संजोगमें लुब्धोरे भाई, आही विजोग रीसाईरे ॥ जी० ॥ तीर्थपति श्रीमुख फरमावे, वामे शंका न कांइरे ॥ जी० ॥ आ० ॥ ४ ॥ एकत्व सूधी भावना भाई, नमि राज ऋषि भाईरे ॥ जी० ॥ शक्रेन्द्र शुद्धडी कराई, सिद्धपुरी तिण वाईरे ॥ जी० ॥ आ० ॥ ५ ॥ मोह सुटं धीरणगड़ ढावे, ज्ञान बलिष्ट चुणा Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४ . . . . श्री प्राचीनस्तवनावली वेरे ॥ जी० ॥आरतिकुलटारो संग । जो छोड़ावे समता रति मन लावेरे ॥ जी०॥ आ० ॥६॥ शाता अशाता सम परिणामे, भोगवे ते धन पुरसारे ॥ जी० ॥ समयसुंदर करजोड़ी विनवे, ज्येष्ट सदागुण गावेरे ॥जी॥ आ० ॥ ७ ॥ ॥ सज्झाय ॥ तट यमुनानोरे अति रलियामणोरे ॥ ए देशी॥ नान्हो न मानेरे, कांई का माहरुरे।सो की हसीरे जोय ॥ नगद बेडेरे घणु अटारडीरे ॥ जेठ झूटो मुझ होय ॥१॥ किम जालवीयेरे कुटुम्ब अटारडूरे । करे मुझस्थु नित रोस ॥टेक॥ एकण गामीरे पीहर सासरुरे, बोले मलि मलि दोस । कि० ॥२॥ जेठाणी मुझ परवश थई फिरेरे। देवरने नहीं लाज । देराणी छेरे अति उछाछलीरे, मांडे विरओ काज । कि० ॥३॥ सूसरो सुहालोरे बोली नवी सकेरे, सासुड़ीनो नहीं विश्वास ॥ Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री प्राचीनस्तवनावली . . . . [१९५ पियर पीता छेरे मुझ रोसीउरे, मावड़ो देखाड़े त्रास ॥ कि० ॥ ४॥ फूओ बैलोरे में में बहु करेरे, फइडी लगावे मुझ राव ॥ पर घर भंजक मामो माहरोरे, मामीनो खोटो स्वभाव ॥ कि० ॥५॥ मासी लूटेरे मंदिरमें पेशीनेरे, मासो देखत लेह जाय । कामे करावेरे, जोरे भाइलोरे, भोजाइ वड़वा धाय ॥ कि० ॥ ६ ॥ फंदे पाडे पितरियो वलीरे, पितराणी कमजात ॥ दादो म्हारोरे धूरथी लोभीयोरे, दादी करे बहु घात ॥ कि० ॥ ७॥ बेटड़ी तपावेरे मुझने अति घणुरे, जमाइ करेरे संताप ॥ बेटो रहेरे मुझसुं रूसणेरे, बहुअर देरे सराफ ॥ कि० ॥ ८ ॥ निर्लज भ्हारोरे वडाउ सहु कहेरे, वड़ीआइ विकराल। कोई नहीं भल्लु इण कुटुंबड़ेरे, बोले आल पंपाल ॥ कि० ॥ ९॥ एषो गामेरे दो चोर नित फरेरे, तिणे सुख नहीं लव लेस। एहवे मूकीरे जे अलगा रहेरे, ते फुन्यवंत विशेष ॥ कि० ॥१०॥ एह अरथ कह्यो अगोचरूरे, सह गुरुने Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२६] . . . . श्री प्राचीनस्तवनावली आधार । करजोड़ी मुनि दयासील कहेरे, जोजो पंडित विचार ॥ फि०॥११॥ श्री नेमि जिणंदकों अध्यात्म लहरयो लहरयो भीजे म्हारो रंग चुवे ए देशी. लहरयो भीजे मारो रंग चुवे, कांइ भींजेर रंग सुथारो एसुज्ञानी जीवड़ा । थे तो माणो माणो मुक्तिरो मोजांररे ।।सुज्ञा०जी० ल०॥म्हारो लागोर जिनजी सुं ध्यान रे । सु० ल० ॥१॥ उंच नीच दुःख में सह्या, काइं उं०॥ कांइ कमों केरा वसए ॥सु० ल०॥२॥ लाख चौराशी यौनिमें। कांइ ला० सह्या दुःख अनंत ए। सु० ल०॥३॥आदि निगोदे हुं रुल्यो, कांइ आदि० । कांई कहेता न आवे अंत ए। सु० ल० ॥४॥ नरकां का दुःख में सह्या, कांइ छेदन भेदन ताड़नाए,॥सु० ल०॥५॥ तिर्यच भवमाही हुं भन्यो, ति० काइ दुःख सह्या Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री प्राचीनस्तवनावली , . . . [१२७ भरपूर ए। सु०।ल०॥६॥ मनुष्य गति में ऊपज्यो कांइ० भील भोई चंडालए।सु०। ल०॥७॥ देवगति भवमें पामीयो, कांइ० व्यंतर भूत पीशाचए। । सु०। ल०॥८॥पाप तणा फल पामीयो, कांइ० अपणी करणी रो सारए। सु०। ल०॥ ॥ अविनाशीपद में लह्यो, कांइ देवगुरु के प्रसादए । सु० ल०॥१०॥ म्हारो लागोर प्रभुजी सु ध्यान ए। सु० ल० ॥११॥ चेतनका बजारमें, कांइ० आयो२ लेहरयो विकाउं ए। सु० ल० ॥ १२ ॥ यो लेहरयो मो लवे, कांइ कुण देसी दामए । सुल० ॥१३॥ दर्शन लेहरयो मोलवे, कांइ धर्मशील मोलए ।स० ।ल०॥ १४ ॥ लेहरयो मोंघामोलको, कांइ० जीकी छे नवी नवी भांतरोए । सु०। ल० ॥१५॥ शील संजम सु लेहरयो, कांइ करी लीधो मोलए। सु०। ल०॥ १६ ॥ करुणा केरी भातड़ी, कांइ दया धर्म री लेहरांए । सु०। ल०॥१७॥ पंच सुमतिको रंग वसीयो कांई क्षमालेहरियो नाथए।सु० ल०॥१८॥ Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ mornmaamirmadananaamaannr १२८] . . . . श्री प्राचीनस्तवनावली धर्म जिनेश्वरको लहरियो, कांइ जगमें मोलवे ए मोटी वात ए। सु० । ल०॥१९॥ धन धन थाहरो लेहरियो, कांइ सब मिल करेरे वखाण ए ॥सु० ॥ ल०॥ २० ॥ यो कुण ले हरियो पहेरसी, कांइ यो कुण निरखण हार ए । सु० ल० ॥ २१ ॥ राजूल लहेस्यो पहेरसी, कांइ नेमजी निरखणहार ॥ सु० ल० २२ ॥ ज्ञान गंभीर म्हारी बादली, काइ लहेरयो अन भीज्यो ए ॥ सु० ल० ॥२३॥ गिरनार जाकी वाटड़ी कांइ० उड़े२ मार्ग जीणी ३ खेह ए ॥ सु० ल० ॥ २४ ॥ फागुण मासरी ऋतु भली, कांइ नेमिश्वर खेले फाग ए ॥सु० ल० ॥२५॥ आठ कर्मकी धूलड़ी कांइ० आतमसु खेले फाग ए॥ सु० ल० ॥ २६ ॥ ध्यान क्षमा पाणी कियो, कांइ० तनकी करी गुलाल ए। सु० ल० ॥ २७ ॥ तप जप शील पाली करी, कोइ० नेमिसर मुक्ति सिधाया ए। सु० ल० ॥२८॥ सहसावनका बागमें कांइ० अति लीनो फूलमाल Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री प्राचीनस्तवनावली . . . . [१२९ ए। सु० ल० ॥ २९ ॥भाभीको देवरीयो लाड़लो, कांइ० लावे लावे फूल अपारए। सु० ल० ॥३०॥ ज्ञान गुमानी म्हारो देवरियो, थें तो फूल कठासुं लायोए । सु० ल०॥ ३१ ॥ शील सुहागण म्हारी भाभीजी, कांइ म्हेंतो फूल वागाथी लायाए । सु० ल० ॥ ३२ ॥ ज्ञान गुमानी म्हारो देवरियो, थें तो फूल किणहीने देसोए। सु० ल० ॥ ३३ ॥ सुमति सोहागण म्हारी भावजी, कांड में तो फूल दादाजीने देसाए । सु० ल० ॥३४॥ नरनारी ए लहेरयो गावसी, कांइ स्वर्गा सुख अति पावसीए सु० ल० ॥ ३५ ॥ भवि जीव ए लहरयो गावसी, कांइ भव भव उतरे पारए । सु० ल०॥३६॥अती रंग लहेरथो भींजीयो, कांइ गावे सुने सुख पावेए । सु० ल०॥ ३७॥ लहेरथो सरस गाइयो, काइ विजय हुवो परतापए । सु० ल० ॥३८॥ संवत अठारे तेपने कांइ वैशाख सुदि एकम रवीए।सु० ल० ॥३९॥ कल्याण क्षमा विनवे, कांइ उदयपुर रही चौमासए । सु० ल०॥४०॥ Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३०] .. . श्री प्राचीन स्तवनावली wwwvvvvvv wuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuu ॥रात्री भोजननी सज्माय । रात्री भोजनमें दूषण घणा, कूडो कयो न जाय । तिण अणसारू इम कह्यो, सांभलजो चित्त लाय ॥१॥ ढाल पेली॥ छठो व्रत रयणी तणो ए भोजननो परिहार करे कोई मानवीये। होजावे खेवा पारके । व्रत आराधीये ए॥२॥ साज पड्यां भोजन करे ए। दिन आथमते सुर ॥ केवलीयां ईम कयोए ॥ साधपणेसु दूर के ॥ व्रत०॥३॥ कागादिक सहु पंखीयाए। रात रान चूंगवा नहीं जायके॥ आंधो भोजन रातरो ए । भला माणस किम खाय ॥ व्रत० ॥ ४॥रयणी भोजन करता थका ए।सु माछर पड जाय। कीडी ने कुंथवो ए । रातरी खबर न चार के ॥ व्रत० ॥५॥ रयणी भोजन करता थकाए, मकड़ीरो रायतो खाय के॥ गलत कोढ नीकलेए ॥ गलत थकी मर जाय के ॥ व्रत०॥६॥रयणी भोजन करता थका ए, दया नहीं दिल मांय ॥ नाना कोइ जीवड़ाए, मुखसे काढ्या नहीं जाय के ॥व्रत०॥७॥रयणी भोजन करता थका ए, मन भावे सो खाय के व्रत एको Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री प्राचीनस्तवमावली . . . . [१३१ नहीं ए। मरने दुरगति जाय के ॥व्रत०॥ ८॥ आठ पहोर दिन रातरो ए, नहीं वीरत सुजोग। सदाइ चरतो रहे ए, जाणे जंगलरो ढोर के ॥ व्रत० ॥९॥ जैनधर्म माहे एम कह्यो ए, जाणीये नव वाड ॥ कठण करवो वलीए, दुक्कर दुक्कर थाय के ॥ व्रत०॥ १०॥ उमररा सुख शाश्वता ए॥ न करे अधिक स्नेह । ऊनाले जल विनाए, त्याग दिना छे देह के ॥ व्रत० ॥११॥ भूख तृषारो पीलीयो ए, जीव निकल्यो जाय के पाणी रेणी तणो ए, न घाल्यो मुख रे मांय के० ॥ व्रत०॥ ॥१२॥ चोथो व्रत भांग्या पछी कारी न लागे काय ॥ कदा सामा मिले ए, नहीं काया नहीं माय के ॥ व्रत०॥ १३ ॥ पांच महाव्रत मोटका ए, मुक्ति तणा दातार ॥ पाले सहु भावसे ए, हो जावे खेवा पार के॥ व्रत०॥१४॥ होया होया होसी नही ए, तिण सरिखो जाणो मान ॥ केवलीयो इम कयो ए ऊंडो घणो अथाग ।। व्रत०॥ ॥१५॥ पडिया पडिया सहु पड गया ए, होगया Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३२ ] श्री प्राचीनस्तवनावली सुर चकनाचूर ॥ दयावती ऊवरे ए, सामा मिल गया के ॥ व्रत० ॥ १६ ॥ तिरीया तिरीया सहु तिर गया ए, हुवा धरमरा दोट ॥ वीजेमलजी इम कहे ए, इणमे न चाले खोट के ॥ व्रत० ॥ १७॥ ॥ जेसलमेर मंडन श्रीचिंतामणि पार्श्वनाथ स्तवन || पार्श्व चिंतामणि भविजन ध्येयं, मन ईप्सित दातारं रे । पत्तन लोद्रव कृतशुभस्थितं, मरु भू नभस्तल चंद्र रे ॥ पार्श्व० ॥ १ ॥ रत्न चिंतामणि सुरतरू तुल्यं, चिंताकदली कृपाणं रे ॥ पार्श्व० ॥२॥ कृतपूर्व पुण्यैर्मया लब्धं, वामा सुतमुदारं रे ॥ पार्श्व० ॥ ३ ॥ चंचच्छ्याम वर्ण प्रभु मुर्त्ति, पार्श्व सेवित शुभ पार्श्व रे ॥ पार्श्व० ॥ ४ ॥ भव्यजन भवजलनिधि तरणे, चारु संस्थित पोतं रे ॥ पा० ॥ ५ ॥ राका पूर्णेदु मुख कमलं, शान्त्यादिकं गुणो पेतं रे ॥ पार्श्व० ॥ ६ ॥ भक्त्या वंदेऽहं जिनपार्श्व, शिवरमणी दातारं रे ॥ पार्श्व० ॥ ७ ॥ सकल गुण गरिष्ठ स्तीर्थकृत् ह्याश्वसेनिः । अमर नर निकायः Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री प्राचीनस्तवनावली . . [१३३ प्राण मद्यस्य पादं ॥ भुवि भविकज बोधे, यः सदा सूर्य तुल्यः । स भवतु जिन चन्द्रो मुक्ति सौभा ग्य दाताः ॥८॥ . ॥ नाकोड़ा मंडन श्रीपार्श्वजिन स्तवन । प्रभु पार्श्व देख हुलसाया, मैं नगर नाकोड़े आया । तुम नाम अनेक प्रभु धारे, मक्सी गोड़ी पास प्रभु प्यारेरे मैं नगर०॥ प्रभु०॥१॥ हस्ति देवगति पद पाया, कलिकुंड तीर्थ धपवाया । जगन्नाथ जीरावली राया, शंखेश्वर नाम धरायारे, मैं नगर०॥प्रभु०॥२॥ जरासंघकी जरा निवारी, हुए कृष्ण जयजयकारी। थंभणपुर स्वामी नामी, भविजन मनके विसरामीरे, मैं नगर०॥प्रभु०॥ ॥३॥ योगी नागार्जुनने ध्याया, वो कंचनसिद्धि पाया । श्रीमद् अभयदेवसूरिराया, प्रभु स्तवने कुष्ट मिटायारे, मैं नगर० ॥प्रभु० ॥४॥ अव इतनी अरजी मेरी, प्रभु ! लीजिये आप सवेरी। जिन केशर शरणे तोरे, मिटादो भवके फेरेरे, मैं नगर०॥प्रभु पार्श्व०॥५॥ Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३४] . . . . श्री प्राचीनस्तवनावली ॥श्री सीमंधर जिन स्तुति ॥ श्री सीमंधर आदि जिनना, जाणो ए सर्व कल्याणजी। च्यवने कल्याण अवतरणे कल्याण, गर्भधारण कल्याणजी ॥ जन्म कल्याण दीक्षाए कल्याण, कंवलज्ञान लल्याणजी। मोक्ष कल्याण जे कल्याण फल जीवने,न होवे ते अकल्याणजी॥१॥ ॥ श्री सिद्धाचल स्तुति ॥ श्रीसिद्धाचले आदिजिन आव्या, पूर्वनवाणु वारजी । अजितशांति चौमासु की, गणधरमुनि परिवारजी ॥ दर्शन पूजन भविजन कीg, देशना अमृत पीधुजी । चौमासे तलाटी देरे जिनदर्शन पूजने नर स्त्री केम निषेधुजी ॥१॥ ॥ २ सिद्धाचल स्तुति ॥ ___ आध्या पूर्वनवाणु आदिजिन, चौमासी अजित शांति कीधीजी । तीर्थ आशातना प्रभावना नष्टकारी, ऋतुवंती पूजा निषेधीजी ॥ सिद्ध गिरि मंदिर दर्शन पूजन, चौमासे सहुने केम Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ AGORoorn श्री प्राचीनस्तवनावली . . . . [१३५ निषेधजी। अढी कोश ऊंचा गिरि जावान, कल्प सूत्रे वीरे कीधुंजी ॥ १॥ ___श्रीजिन प्रतिमा हो जिन सारखी, कहिए दीठा आणंद । समकित विगड़े हो शंका कीजतां, जिम अमृत विषवृन्द ॥ श्री०॥१॥ आज नहीं हो कोइ तीर्थकर इहां, नहीं कोई अति शयवंत। श्रीजिन प्रतिमानो एक आधार छे, आपे मुक्ति एकंत ॥ श्री०॥२॥ सूत्र सिद्धान्त हो तर्क व्याकरण भण्या, पंडित पिण कहे लोक । श्रीजिन प्रतिमाने जे माने नहीं, तेनो सघलो फोक ॥श्री० ॥३॥ जिनवर प्रतिमाने आगे नमोत्थुणं कहे, पूजा सतर प्रकार । फल पिण छोल्या हो हित सुख मोक्षना, द्रौपदीने अधिकार ॥श्री०॥४॥ रायपसेणी हो ज्ञाता भगवती, जीवाभिगम मांझ। ए सूत्र माने हो प्रतिमाने हो प्रतिमा माने नहीं, माहरी माने वाझ ॥ श्री० ॥५॥ साधुने बोल्या हो भावस्तव भला, श्रावक ने द्रव्य भाव । ए बेह करणी हो करता निस्तरिया, जिन प्रतिमा पर Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३६] . . . . श्री प्राचीनस्तवनावली भाव ॥श्री०॥६॥ पारसनाथ हो तुझ प्रसादथी, सईहणा मुझ एह । भवभव देजो हो समयसुन्दर कहे, जिनप्रतिमासु नेह ॥ श्री०॥७॥ त्रिशलानन्दनकी खुली दुकानजी तुम माल खरीदो ॥ सूत्ररूप भरी बहु पेटी यासरे, मुनिवर बड़ा वैपारी । तरण तारणका माल दिखावे, करे अपना दिल राजीजी ॥ तुम० ॥१॥ जिनवाणीको गज हे सांचो, जरा फरक नहीं जाण । नाप नाप ने दे सत्यगुरूजी, नहीं करे खेंचाताणजी ॥ तुम० ॥२॥जीवदयाकी मलमल भारी सुह मन मिसरू लीजे। उबल झीण समता तणो सरे, जो चाहिये सो लीजोर ॥ तुम० ॥ ३ ॥ तपस्या को बंदागर भारी । साडिया सन्तोष । एसा काम करो जिणा सुं चेतन पावे मोक्षजी ॥ तुम० ॥ ४॥ माल वीके थोड़ो जिससे, सस्तो पुरीयो न जाय । आपेगा उत्तम प्राणी, माल हमारा ले जायजी ॥ तुम० ॥५॥ माल वीके तो रहना होसी। सुणजोभवि Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "श्री प्राचीनस्तवनावली . . [१३७ यण प्राणी । भरिया खजाना किसी विध खूट, सदगुरू दीना हाथजी ॥ तुम० ॥६॥ संवत उगणीसो वत्तीसे, शाल बत्तीसे, बम्बाइ चौमासे। मुनि मोहन उपदेश सुणायो, मोक्ष जाणे की आशजी ॥ तुम० ॥७॥ ॥ स्तवन ॥ प्रभु वीर तणो उपदेश के, दिलमें धारणारे। भवियण जन्म मरण मिट जाय, फेर नहीं आवणारे ॥ टेर॥ कका कल्पसूत्र सुण सारी, खखा खेवा पार लगारी । गगा ज्ञानसे करो विचारी, घघा घट वीच प्रभु को राख फेर नहीं आवणारे ॥प्रभु०॥१॥ चचा चउदह सुपना देखो, छछो छिन छिनरो लेवो लेखो। जजा जन्म प्रभु को देखो। झझा झठ कब नहीं बोल के फेर नहीं आवणारे ॥प्रभु० ॥२॥ टटा टेर प्रभुसे म्हारी, ठठा ठौर मिले सुखकारी । डडा डर राखो भय भारी, ढढा ढील कबहु नहीं जाण फेर नहीं आवणारे ॥ प्रभु०॥३॥ तत्ता तन मन धन थिर Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३८] . . . . श्री प्राचीनस्तक्नावली नाहीं, थथा थिर जगमें कोइ नाहीं। दवा दान देवो जग माही, धधा धर्मसे फरो तुम जीत, फेर नहीं आवणारे॥प्रभु०॥४॥ पपा पुस्तक जी घर लावो, फफा फिर तुम रात जगाओ। बबा बांधो पुन्यसे लाहो, भभाभवसागर तिर जाय फेर नहीं आवणारे ॥ प्रभु० ॥ ५॥ यया यह इच्छा बहु भारी, ररा राखो धर्म विचारी । लला लाभ लेवो सुखकारी, ववा विघ्न टले सुख होय फेर नहीं आवणारे ॥ प्रभु०॥ ६॥ ससा संवत सित्योतर जाणो, दुतिक श्रावण मास वखाणो । वद तेरस वार वृहस्पति जाणो, ससा सेवक छगनको तार फेर नहीं आवणारे ॥ प्रभु०॥७॥ ॥श्री राजुलजीकी बारहमासी ।। राग-ख्यालकी। नेमिसर बनड़ा, परण पधारो राजुल नारने। ॥टेर ॥ श्रावण महिनो लागीयो स पियु, घटा चढी घनघोर । आभा चमके बिजली सकाइ, दादुर कर रहा सोरजी ॥ नेमि०॥ १॥ भाद्रव Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री प्राचीनस्तवनावली . . . . [१३९. महिनो लागीयो सो पियु, वच्छ बारस तहेवार । सखिया पूजे गायने सरे, घर घर मंगलाचाररे ॥ नेमि० ॥२॥ आशोज महिनो लागियो सकाइ, दिन जो खारा जाय । परव होय तो उड़ मिलं सकाइ, लाउं नेम मनायजी ॥ नेम० ॥३॥ कार्तिक महिनो लागियो सकाइ, रूप चवदशरी रात । अब घर आवो वालमा सकाइ, द्वीपमाला परभात हो, ॥ नेमि० ॥ ४ ॥ अगहन अकेली किम रहुं सकाइ, में सांच झूठ निरधार । तेल छड़ी तिल निसरिया सरे, राजुल राजकुंवारजी ॥ नेमि०॥५॥ पोस दोष किसको देउ समे, कर्मन केरो दोष । ज्यांरा प्रीतम घर वसे सकाइ, ज्यांने प्यारो पोसजी ॥ नेमि०॥ ६ ॥ माघ महिने वसंत पंचमी सरे, घर घर उड़े गुलाल । एकवार तो खबर करोने, राजुलको न हवालरे । नेमि०॥७॥ फागुण महिनो लागीयो सकाइ, सब मिल खेले फाग । पियु हमारा घर नहीं समें, किण संग खेलु फागजी ॥ नेमि० ॥ ८॥ चैत्र महिनो लागियो Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४० ] श्री प्राचीनस्तवनावली सकांइ, सज सोल सिणगार | गौरी पूजे गायने सरे, भर भर मोतियन को थाररे ॥ नेमि० ॥ ९ ॥ वैशाख महिनो आवियोरं लू वाजे असराल । धूप पड़े धरती तपे सरे, जले जमी पर पांवरे ॥ नेमि० ॥ १० ॥ जेठ महिनो आवियो सरे, पड़े आकरी धूप । तेल छड़ी तिल निसरथा से वांको पड़ गयो कालो रूपरे ॥ नेमि० ॥ ११ ॥ आषाढ महिनो आविया सरे, नेम न लीनो सार । नेमि राजुल गिरनार पेसवां, लीनो संजम भाररे ॥ नेमि० ॥ १२ ॥ समय सुंदरजीनी वीनती सकाई सुणजो वारंवार वारे मास वर्ण करू तीरे, सुणजो बाल गोपालजी ने० ॥ १३ ॥ ॥ श्री गणाधीश्वर गहुंली ॥ रतनमुनिजी गुरू वन्दो मोरे प्यारे, वन्दत होत आनन्द मोरे प्यारे ॥ टेक ॥ भव्य जीव उपकार के हेतु, दिव्य चरित्र तुम्हारा । निर्मल कीना दर्शन तुम गुरु, ज्ञान तणा भंडार मोरे प्यारे ॥ Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2000000000 NAMANN000000000000000000 श्री प्राचीनस्तवनावली . . . . [१४१ २०॥१॥ बाल ब्रह्मचारी गुरु सोभे, महिमा अपरंपारा । यति धर्मसे दीपता गुरुवर, देशना अमृत धारा ॥ मोरे० ॥ २॥ सायर सम गम्भीर गुरुवर, रवीसम तेज प्रतापो । शशी समान है सौम्य सुगुरुवर, मणिसम आप गुरु दीपो ॥ मोरे०॥र० ॥३॥अष्टापद समसुरवीर गुरु, दुर्धर कर्म हठावे। आतम ध्यानमें मगन होय के, मोक्ष नगर कों ध्यावे मोरे०॥ २०॥ ४॥ शहर फलवरधीमें आप विराजो, दर्शन कर हलसाया ॥ दिलमें हर्ष न मावे गुरुवर, आनन्द संघ मोलाया । मोर० ॥२० ॥५॥ वीर चौवीशे एकावन माहें, आश्विन मास सुहाया। कृष्ण बीज सोमवारसु सुन्दर, हर्ष हरख गुण गाया।मोरे० र०॥६॥ ने गुरु सम अवर न दूजा अगमें, चरणमें शीश नमायो, दास प्रेम भक्ती मालीजे, मनवांछित फल पाया मोर ॥२०॥७॥ ॥ गहुँली बीजी ॥ रत्नमुनि गुरु रायके, गुण गाउं चितलाय अक्षर अक्षर के विषे बहु गुण रहे समाय ॥१॥ Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४२] . . . . श्री प्राचीनस्तवनावली सुगुरु मे रतनमुनि गुण गाया॥ सुमति सदा गुरु चितवसे, कुमतिभगे अति दूर । तीन करनको रोकते हो, दिव्य नाण भरपूर ॥ सु०॥२॥ खल मित्र गुरु आप सदा, करुण रसभंडार । पर उपकार सु शीलथे चरण रतन अवधार ॥ सु० ३॥ सायर समगम्भीर गुरु, दर्शन निर्मल धार । बह्मचर्य गुरु धारते, महिमा अपरंपार ॥ ४ ॥ गगन समो गुरु निर्मला, रवी समतेज विकाश ।शशि समानमुख सौम्य छे, मणि जिम दीपे खास ॥५॥रत्नगुणासे सोभते, आतम मार्ग में लीन । कर्म वृन्द को तोड़ ते हो के मोक्षाधीन ॥६॥ जीवा जीव विचारमें, निपुण रहे गुरु राज। सकल वस्तु विज्ञान हो गुरु, दीर्घ बुद्धि मुनिराज ॥७॥ महा दुष्ट रिपु काम को छिनमें दीया हटाय।रतिकीकुमति निरासकीधन्य वैरागी राय ॥८॥ हानी कर्ता अकार्य को, नष्टकी, ये तत्काल दूर हटाय दुष्टको, मोह महा विकराल ॥९॥ राग रहित वैराग्य में रमण कराहो नाथ त्रिविध योगसु, दमन करी सुमती सखी के साथ Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री प्राचीनस्तवनावली . . . . [१४३ ॥ १०॥ जस निर्मल गुरुराजका सकल विश्व विख्यात । दास प्रेमको तारीयरे,ज्ञानहो साक्षात॥ ॥ अथ श्री टोडरमल प्रारम्भः ॥ चांदो ए चांदो चाँदलोरे, म्हारे चांदो वसेरे आकाश । टोडरमलजीतोले ए।जायो जायो आज विहामणोरे, म्हारे सुरां ऊगणहार॥टो०॥पजूसण चडीयो पर वाण ॥टो०॥जणे हुं सूतो जागीयोरे, म्हारे गुरुसा आवणहार ॥ टो० ॥ पाट जडाउं पाटीयारे म्हारे, सोवनफूलडीहार॥टो०॥ पुज्यजी वेसाडं आपनारे म्हारे, वांचेस रस वखाण ॥टो०॥ मुख मोडे मुहपती हसेर, म्हारे मुखड़ो पुनमरो चंद ॥टो०॥ हरियो पुठो हाथ मेरे. वांचे कल्प वखाण ॥ टो० ॥ उडती चीडयल मोंकहेरे म्हारे, पुज्यजीरो अविचल पाट ॥ टो०॥चोखो ए चोखो जोवीयोरे म्हारे सा समो नहीं कोय ॥ टो० ॥जे गच्छ चौरासीमें जोवीयारेम्हारे, खरतरगच्छ समोप न कोय । टो॥रेतपोरे उपासरेरे म्हारे हाथी हलके वार ॥टो०॥इणारे खरतरारे उपासरेरे, म्हारे जीव Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४४] . . . . श्री प्राचीनस्तवनावलो दयाप्रतीपालटोलालेयम्हारा सुसराजीबीवहारीयारे म्हारे, घरमे टकारी जोड़ ॥टो० ॥ लेवे सोनो रुपो अति घणोरे म्हारे मुकट घणा वणरो कोड ॥ टो०॥ रुपया तो म्हारे घरे घणारे म्हारे पुस्तक लेवारो कोड॥टो०॥ हस्ती घोड़ा हीसणारे मोतीड़े जड़त पलाण ॥ टो० ॥ लेय जे चड़ जुहारसिंहजी जोवीयारे म्हारे नगरीमें बहुत सुगाल ॥ टो०॥ लेय घी पांरी रे लाबु आरे दूधे बुट्टा मेह ॥टो॥ लेये पानज पाटणनीपजेरे म्हारे सापारी अजमेर ॥ टो० ॥काथो नीपजे मेड़तेर म्हारे म्हारा रे रंग खरतरगच्छ होय ॥ टो०॥ इंगरिया हरिया हुआरे म्हारे, एक बड़ी हारीदार ॥ टो० ॥ लेवे दुकडिये मण वाजरीर म्हारे, छकड़ीये मण जुवार ॥टो०॥ कोला भरसा वाजरीरे म्हारे घर भरसां जुवार ॥ टो०॥ इतिश्री प्राचीनस्तवनावली समाप्तः। 454155KSESSA 5414545454545 Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जाहिर-खबर. जैनधर्मावलम्बी चतुर्विध श्री संघ (साधु श्रावक-श्राविका) आदि सर्व महानुभावों को। होकि-आपकों नवपदादि व अंजन शलाका प्र। उत्सवकी त्था विवाह वगैराशुभप्रसङ्गकी कुंकुम / / और चौपाइ, स्तवन, सिज्झाय, आदि हरेक गायनका पुस्तकें व व्यापार सम्बन्धी इंडिये, चिट्ठीयें, नोट पेपर, कार्ड, लिफाफे, चेक, रसीदें वगैरा छपाना हो, तथा घुफ शुद्ध कराना हो या दीवाली पूजन व पर्युषण क्षमापण पत्रिका, विवाह की कुंकुमपत्रियें व इंडिये बिना नामकी जोकि हरेक के काम आसके वैसे खोखे चाहिये तो तथा उजमणे का सामान, जैन-गायनकी पुस्तकें, रेतीकी घडीयें, जैन अगरबत्तीयें, कटासणे, चरवले, तीर्थंकरोती . कोव चाहिये तो नीचे रत्येकी घडीयें, जैन अगाछबीयें ) मी घडीये.जैन और छ घडीर्य, जैन रतलाम, (मालवा)