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श्री प्राचीनस्तवनावली
श्रीजिन धर्म ॥ माता० ॥ १३ ॥ मात पिताने तारिया जंबु, तारी छे आठोइ नार । सासु सुसराने सारीया जंबु, तारया छे पांचसो चोर "जंबु भले घेतीयो जाया, भले ले संजम भार" ॥ १४ ॥ पांचसो सतावीस सुजाणसुं, लीधो छे संजम भार। इग्यारे जीव भुक्ते गया, ए तो वरत्या छे जय जयकार ॥ जंबु० ॥१५॥
॥ क्रोध की सिज्झाय ॥ क्रोध कियो आछो नहीं, आलतां लक्ष्मी नासेजी। दुःख दारिद्र घरमे धसे, कोडोना पाप उपार्जेजी ॥ "क्षमारे किया सुख पामीजे" ॥ ओ भाख्यो श्री जगदीशोजी ॥ जे सुख चाहो जीवको थे, कोइमत करजोरीसोजी ॥१॥ गाल वैचीजे राडमें, लाडु नहीं वेचीजेजी । वालोपिण वैरी हुवे, इसड़ो काम न कीजेजी ॥ २० ॥ २॥ बाप बेटो भाई भाई, सासु वहु गुरू चेलाजी । क्रोध थकी