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श्री प्राचीनस्तयनावली
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उछल पड़े, न जाणे नेडी सगाईजी ॥ क्ष० ॥ ३॥ क्रोधी नर कालो पड़े, आसखरी वात विगाड़ेजी ॥ आगोरे पीछो जोवे नहीं, लाखीणी प्रीत घटावेजी ॥ क्ष० ॥ ४ ॥ कोइरे वचन करड़ो कहे, अथवा ते आघो पीछोजी ॥ दव ने दाध्ये ने पांगरे, नहीं पांगरे वचनोरो विंध्योजी ॥ ० ॥ ५ ॥ ज्यारे घरमें एक क्रोधी सघलाने संतापेजी । ज्यारे घर में सघला क्रोधी ज्यारां किसा हवालाजी ॥ क्ष० ॥ ॥ ६ ॥ तपस्या तपे ना रिसरे, आ आंखमा मरच किम आंजेजी । तपस्या विणासे क्रोधथी, आ दूध विणासे कांजीजी ॥ क्ष० ॥ ७ ॥ क्षमारे किंवा शंका महीं, आगे फल लागे आछाजी । खंधक ऋषि क्षमा करी, बेनोइ खाल उतारीजी ॥ रायप्रदेशी देखने, ओ तत्क्षण लीधो मोक्षजी ॥ क्ष० ॥ ८॥ समयसुन्दर कहे क्रोधने, तमे दीजो देसोटाजी । क्रोध तजे शिवपुर लहे, पामे भवनो पारजी ॥
॥ क्ष० ॥ ९ ॥