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श्री प्राचीनस्तवनावली . . . . [३३ प्रभु ऊपरे, मेघ घटा वरसे जल बहु परि ॥ पा० ॥२५॥ धरणिंद आवी कमठ धिकारयो, जिन आशातना करतो वारयो ॥ पा० ॥ २६ ॥
॥ दाल ९ मी ॥ राग गुडा॥ चेत्र पढम चोथ वासरे, जिनवर अहम तष आदरे । प्रभु पासरे। पूरे आशरे ॥ २७॥ चार कर्मनो क्षय करी, पामीश निर्मल केवल सिरि ॥ सुर आवेरे ॥ गुण गावेर ॥२८॥ माणकहेम रूपा तणो, विरचे तिगड़ो, सुर जिन तणो ॥ प्रभु सोहे रे, मन मोहेरे ॥२९॥ कुसुम वृष्टि विह संतिया। भागु डर दुख हंसतिया ॥ प्रभु संगरे । मन रंगेरे ॥३०॥
॥ ढाल १० दशमी ॥ राग मारू ॥
धन धन ते नरजी, तेहनो जन्म प्रमाण । बारह परषदा मांहि बेसी। श्रवण सुणे तेरी वाणी ॥ ध०॥३१॥ तीन छत्र शिर उपरी सोहे,