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श्री प्राचीनस्तकमावली
३२] इग्यारस पोस सणी, प्रभु त्रिभुवन धणी; कर्म छेद न भणी ॥ तजति संसार । लो० ॥ २० ॥ पंचमुष्टिं लींचकरी, प्रभु अणगार हुआ संयम शरीरा गुणवंत भंडार ॥ लो० ॥ २१ ॥
॥ ढाल ७ सातमी ॥ राग कानडो॥
अमेम अमाय अकोह मच्छर नहीं ॥ लवलेस लोभ सनरी, अप्रतिबंध अकिंचन अमदन दायक संकल अमयदानरो । अम०॥२२॥ सुमति गुपति सोभित मुनिनायक । उपयोग एक धर्म ध्वानरो ॥ पंच इन्द्रिय विषयारस जीत्यो॥ स्पर्शन रसनं प्राण चक्षु कानरो॥ अम० ॥ २३ ।
॥ ढाल ८ मी ॥ राग आशावरी ॥
पासजिणंद स्वामी हौं। तोरी अनंत क्षमा॥ शक्ति थकी तुं सहे उपसर्म । ततरिवण तोड़े कर्म बंधन वर्ग ॥ पा ॥ २४ ॥ कमठ बढ्यो कोपे