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३८) . . . .. __ श्री प्राचीनस्तवनावली सोभागी ॥ चंद सूरज धजा सोभणारे लाल । कुंभ कलश सुविचाररे सोभागी॥च०॥४॥पद्म सरोवर क्षीर समुरे लाल। बारमे देवविमानरे ॥ सो० ॥ बे बारणे रत्ने दिवला दीपतारे लाल । धुम पडिया अति तेजरे ॥ सो० ॥ च०॥५॥ राजाजी दीयो बेसणोरे लाल। घणोइ दीनो सनमानरे सोभागी॥ राजाजीपंडित बुलावीयार लाल । पूछे प्रश्न विचाररे सोभागी ॥रा०॥६॥ सुपना तो देखी राजा हरखियारे लाल। पुत्र होसी सरदाररे सो० ॥ तुम कुल सोभा दीपावसेरे लाल। हम कुल तणोई आधाररे ॥ सो० ॥ श्री० ॥७॥ अनुक्रमे प्रभुजी जन्मीयारे लाल। जेठ विदीतेरस वाररे सो० ॥ कंचन वरणो शरीर छे रे लो । दीपे दीपे तेज अपाररे सो०॥श्री॥८॥छप्पन कुमारी मिली करीरे लाल। सूतक, कर्म निवाररे सो०। चोसठ इन्द्र पधारियारे लाल॥मुख जंपे जयकाररे सो० ॥श्री०॥९॥ इन्द्र इन्द्राणी मिली करीरे लाल। लेगया मेरुरे पासरे सो० । स्नात्र महोत्सव