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४८] . . . . - श्री प्राचीन स्तवनावली भगवंत भाख्यो सत्य एहवो, खांचा ताण करवी नहीं, तिविहार पोसो चार पहुरी, अठपहुरी, सीमकरी तीन गच्छ तणी आचरणी, अवधि छे पण आदरी ॥१०॥
॥ढाल १ ली ॥ कपर हुवे अति उजलोरे ॥ ए राह ॥
सांझ समे थंडिल करेरे, वारु वारंवार। इरियावहि इम पडिक्कमेरे, जयतिहुण कहे सार ॥ संवेगी श्रावक सांचो पोसो एह । एतो भगवंत भाख्यो तेह ॥ सं० ॥१॥ अरध बिंब रवी आथमे रे, सूत्रे कह्यो सुविचार । तवन कहे तिणहिज समे रे, तारा दिसे बे चार ॥ सं० ॥२॥ काल बेला इम पडिकमेरे, लांबी खमासण देइ । शुद्ध क्रियानी खप करेरे, मन संवेगे धरेइ ॥२०॥३॥ जिनदत्त सूरि काउस्सग्ग करेरे, पडिकमणाने छेह। पडिकमणो पूरो थयोरे, खरतरनो विधी एह ॥ सं०॥४॥ मधुर स्वरे राते करेरे, पोहर सीम