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श्री प्राचीनस्तवनावली . . . . [४७ आइ बैठो ऊठो एहवी, कहे भाषा सरवदा ॥७॥ काया वचन मन तणाजी।दूषण ए बत्रीश ॥ टाले दूषण तेहनोजी, पोसो विश्वावीश ॥ विश्वावीश बोले वली उघाड़े मुख आपणे । छूटा ग्रहीसे बात न करे, पांच दूषण परिहरे॥ उपवास करीने दिवस पोसोनकीघोहवे तो करे । इक पक्ख छोड़ी नहींतो उत्तराध्ययनेआखर अनुसरे॥ चउपहोरी पोसो कह्योजी, सूत्र सिद्धांत विचार । हरिभद्र सूरि विवरो कह्योजी, वाइसइ सरसार ।
बाइसे सरसार बोले, दिवस प्रति करिवो नहीं। पोसो अतिथि संविभाग बिहु परव दिवस करीवोसही। दृष्टि शब्द तणे अरथे, सेलंगा चारिज करे। पोसो पजसण सर्व कल्याणक, तिथि पणे ए आदरे ॥९॥
उपधाने पोसो कह्योजी,सूत्र निशिथ प्रमाण। दुविहार तिविहार जीमणोजी, एक विगय घृत जाण।आचारणी परंपर पूरवे आचारिज कही।