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४६] . . . . श्री प्राचीनस्तवनावली टालो बत्रीश ॥ वली बत्रीश दूषण वारतानेमारने पासे पालठी। करे काम सावज ले उटिंगण आलस कर करडका मोडए॥ खणे खाजी वीसामणि करावे, ऊंघमल कर छोड़ए ॥५॥ ढाल दश दूषण हिवे मन तणाजी। सांभलजो चित्त एक । अनोपम अधिक नल हे किरियाजी मनमे नहीं विवेक॥
॥ सुविवेक धन जस लाभ वांछे, करे पोसो विहतो। पोसो करीने करे नियाणो, पुत्र प्रमुख ने इहतो॥ अभिमान रीसे करे पोसो, धरे फल संदेह ए। वली विनय विवेक लिगार न करे, मन दूषण दश एह ए॥६॥ __ वचन तणा दूषण दसेजी, जाणो इणे प्रकार। कुवचन बोलो लोकनेजी । दे दूषण सहिकार ॥ ___ सहसात्कारे कलंक दे वली आपछंदे बोलए। संक्षेप सूत्र करे आलावें कलह करे निटोलए। उपवास करीने करे विकथा मांडी न राखे संपदा