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श्री प्राचीनस्तवनावली . . . . .[४५ यावहि पडिक्कमे ॥ आगणोरे आलोई नीचा नमे॥ नीचा नमे बेसणे बैसे, मिच्छामि दुक्कड़ देईने। तिविहार हो तो पाणी पीकर मुंहपति पडिलेइने॥ नवकार गुणतो पाठ भणतां पहोर तीजे दिन रहे। पडिकमी इरियावही पहेली, बहु पडिलेहण करे॥३॥ ____धर्मशालेरे, पूंजी इरियावही पडिक्कमे, पाडलीरे, थापना पडिलेहे समे । मुहपतिरे पडिलेहे ऊभा थई । करे गुरू मुखरे, पच्चक्खाण मन गह गई ॥ पछे देइ खमासमण वस्त्र सघला आपणा। पडिलेहवा मात्रा तीण परिचरवलो पुंजण तणा॥ देहनी चिंता काज जांताकरेभगवन आवस्सही। मारगे इरियासमिति सोधे, आवता कहे निस्सही॥
॥ढाल १ ली। ॥ कर जोडी विनवूजी, एराह ॥ हिव भवियणरे तुमे साँभलोजी ॥ गुरूने नमावो शीश । सामायक पोसा तणाजी ॥ दूषण