________________
ww
a] . . . . श्री प्राचीनस्तवनाक्ली तुज कोइ ॥ उलगड़ी अलगा रह्या, संदेसड़े न होइ ॥१॥ देवजसा दरसण दिए, ए मुझ खरा अरूहाडी। अतुल बली जिम तिम करी, एह प्रमाणे चाड़ी ॥ दे०॥२॥ जो छोरू कर जाणसो, तो पूरवस्यो लाड़ अलवेसर इण वातनो, मत जोणो को पाड़ ॥ दे०॥३॥ मननी वात सहु कहु, जो भेटु जगनाथ । कहिवो छे मुझ वसु, करिवो छे तुम हाथ ॥ दे० ॥४॥ वहती वात सहु कहे, पर पूठे जिनराज । पिण मुंहडेन मिटी सके, दीठा आ वेलाज ॥ दे०॥५॥
॥ ढाल १९ उमणीशमी ॥
मनमोहन । ए देशी।। लही मानव अवतार, गुरू मुख त्रिविध त्रिविध उचरूं, न पले निरतिचार, परभवनो डर तिलभर नवि धरूं ॥१॥ए प्रभु आगलजे वीतक सवि भाषिये, मनका सल कूडकपट सो राखिये, ॥ ए० ॥२॥ पर अवगुण चिहुं मांही, आणी सांक