________________
५०]
.
.. श्री प्राचीनस्तवनावली नगरीना धणीरे, श्रावक शुद्ध अनेक । तिण विध ते पोसो कियोरे, तिम करज्यो सुविवेकोरे॥ते०॥ ॥६॥ लख श्रावक पोसो कियोरे, आनन्द ने कामदेव । वलि दृष्टान्त सुवातनोरे मन धरज्यो नित मेवोरे ॥ ते०॥७॥
॥ ढाल १ ली ॥ पाछली राते ऊठीने हो श्रावक होय सावधान । राइ प्रायश्चित काउसग्ग करे हो, देव वन्दे सुविधान ॥१॥ संवेगी श्रावक हो पोसानी विधी एह मिलती सूत्र सिद्धान्तने हो,मति मन करजो संदेह ॥२०॥ ऊंचे सुर बोले नहीं हो, दोष कह्या भगवंत, वली सामायिक लेवे हो, पडिकमण करे तस ॥ सं० ॥२॥ पडिलेहण किरिया करे हो, सघली पूरव रीत। सहु सिज्झाज किया पछे हो, सुगुरु वन्दे धरी प्रीत ॥ सं०॥३॥ पहिली पोसो पारिने हो, सामायिक पिण पार । पडिलाभे अण