________________
श्री प्राचीनस्तवनावली
[ ५१
गारने हो, अतिथ संविभाग विचार ॥ सं० ॥ ४ ॥ विधि सहित पोसो करे हो, बहु फलदायक होय । अविधि संघाते कजिता हो, काजसरे नहीं कोय ॥ सं० ॥ ५ ॥ पिण विधिनी खप कीजतारे, अविधि हुवे जे कांइ ॥ मिच्छामि दुक्कडं दीजता हो, छूटक वारे थाय ॥ सं० ॥ ६ ॥ पोसो ओसो करमनो हो, टाले दुःख | अशुभ कर्म क्षय करे हो, आपे शाश्वता सुख ॥ सं० ॥ ७ ॥ उत्कृष्ट पोसो तणी हो, विधि कही उपगार । जेसलमेरी संघने आगह कियो सुविचार ॥ सं० ॥ ८ ॥ सोलसे बासठ समे हो, नगर मरोट मझार । मागसिर सुदि एकम दिने हो, शुभदिन सदगुरु वार ॥ सं० ॥ ९ ॥ श्रीजिनचंद सूरिसरू हो, श्री जिनसिंह सूरीश । सकलचंद सुपसायले हो, समयसुंदर भणे शीश ॥ सं० ॥ १० ॥
॥ स्तवन ॥
॥ विछयानी देशी ॥
हांरे लाला संभव जिनवर विनति, अवधारो