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श्री प्राचीनस्तवनावली ॥ अथ श्री जिनराज कृत वहरमान जिन
वीशी लिख्यते ॥ पोपट चाल्यो रे परणवा ए देशी। मुझ हियडो हे जालूउ, भाखर गिण इन भीत । आवे जावे रहे एकलो, करवा तुममु प्रीत ॥ श्रीमंधर करजो मया ॥१॥ धरजो आवहड़ नेह ॥ अमची अवगुण जोइने, रखे दिखायो छेह ॥ श्री. ॥२॥ तुमची भगत घणु घणा, अणहुंते इ ककोड़ । अमची मीटन को चढे, साहेब तुमची जोड़ ॥ श्री० ॥३॥ दक्षिण भरत अमे रहुं, पुष्फलावती जिमराज । कोइक दिन मिलवा तणो, दीसे छे अंतराय ॥ श्री० ॥४॥ दीधी देव न पाँखड़ी, आq केम हजूर । पिण जाणजो मोरी वन्दना, प्रह उगमते सूर ॥श्री०॥५॥ कागलियो लिखुं कारमो, कीजे सी मनुहार। अमची एहिज विनती, आवागमण निवार ॥ भव जल पार उतार ॥श्री.