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श्री प्राचीनस्तवनावली
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॥ स्तवन ।
गुमानी घर वरसत क्यों नहीं पानी । वरसत क्यों नहीं पानी हो ॥ गु० ॥ जीव जंत सब तरसन लागा, ए धरती सोही कुमलाणी ॥ हो० गु० ॥ १ ॥ सूक गया सरोवर, ऊड गया हंसाए, बेलड़ी आई कमलाणी ॥ हो गु० ॥ २ ॥ हरी हरी बूँद घटा जुं कहाइए, सरोवर नीर गलोला ॥ हो गु० ॥ ३ ॥ दादुर मोर पपैया बोलेए, कोयल मधुरीस वाणी हो ॥ गु० ॥ ४ ॥ सुर कहे प्रभु तु मारे भजनसेए, इण भवथीए मुझ तारो । परभवथी मोय तारो ॥ हो गु० ॥ ५ ॥
॥ अथ स्तवन दादाजीका ||
अरे लाला श्रीजिनदत्त सूरिश्वरू, दादा प्रह ऊगमते सूररे लाला, भाव धरी पूजो सदा, कुंकुम घस मेली कपूररे लाला ॥ श्री० ॥ १ ॥ जीती चौसठ जोगणी, वश कीया बावन वीररे लाला ॥