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________________ ११०] . . . . श्री प्राचीनस्तवनावली विनवेरे, संजम लेउं तुम पासेरे । तुम गुरू थवाथी हुवे हुल्लासे ॥ के० ॥ ८॥ साधु अठारा हजार विराजेर ॥ साध्वीया चालीस हजाररे । चौदे पूर्व धर सो चार ॥ के० ॥९॥पन्नरसो अवधी ज्ञानना धरियारे । पन्नरसो वेक्रिय लब्धीना धरियारे । केवल ज्ञान पंदरसो जाण ॥ के० ॥ १० ॥ एक सहस्स मनः पर्यव ज्ञानीरे । वाद करवाना आठसो जाणीरे । एक लाख उगणोत्तर सहस्स श्रावक ॥के०॥११॥त्रण लाख चालीस हजार श्रावीकारे। पांचसो दो छत्रीस मुनि साथेरे। एक सहस्र आयुष्य थयो जाणी ॥ के० ॥ १२॥ आषाढ शुक्ल अष्टमी दिनेरे, चित्रा नक्षत्र सायंकालेरे ॥ प्रभु मोक्ष थया हुल्लासे ॥ के० ॥ १३ ॥संवत् उगणीसो सित्तर शालेरे। मिगसर विदी छठ कहीसरे । बुधवार ने निशदिश ॥ के० ॥ १४ ॥ मोहन मुनिजीना पसायरे । शिष्य यश सूरिजी पूरे आशरे । गायो राजगृह मांय हुल्लासे ॥ के० ॥ १५ ॥
SR No.032200
Book TitlePrachin Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMannalal Mishrilal Chopda
PublisherMannalal Mishrilal Chopda
Publication Year1934
Total Pages160
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size11 MB
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