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११२] . . . . श्री प्राचीन स्तवनावली मंत्र बले कर साधीया, जिणपंच नदी पंच पीररे लाला ॥ श्री० ॥२॥ प्रतिबोध्या श्रावक श्राविका, मील लाख सवा सहदेशरे लाला। जैन धर्म दीपावियो, खरतरगच्छ कमल दीनेश ॥ श्री०॥३॥ हिंसा टालीजीवनी, जे सिंध सवासो देशरे लाला। दानव मानव देवता, माने सह आण नरेशरे लाला । श्री०॥ ४ ॥ जुग प्रधान पद जेहने, देवे परतिख हुइ दीधरे लाला। पुन्य पुरूष जग परगड़ो, जिण करणी उत्तम कीधरे लाला॥श्री०॥५॥ कामित दायक कलियुग, सांचो सुर तरू अवताररे लाला । समरण श्याम घटा करी, महियल वरसे जलधाररे लाला ॥श्री०॥६॥आज विषम पंचम आए, जेहना मोटा अबदातरे लाला । नामे न पडे वीजली, न हुए छल छिद्र तिल मात्ररे लाला || श्री० ॥७॥ संवत बार इग्यारमे,आषाढ शुक्लपक्ष जाणरे लाला। इग्यारस सदगुरू तणी, अजमेर नगर निरवाणरे लाला ॥ श्री०॥ ८॥