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________________ AMAN ५४] . . . . श्री प्राचीनस्तवनावली होय जय जय शब्दरे ॥भ०॥०॥३॥सुविहित गच्छ परंपर मांहे, दीपे अधिक अधिक। अंजन शलाका विधिसुं कीनो, रत्नमुनि गुरुरायारे ॥ भ०॥ चं०॥४॥ मूलनायक चंदा प्रभु जिनकी, प्रतिमा तखते राजे अजितनाथआदि जिनवरकी, प्रतिमा उभय पासरे ॥ भ०॥ चं०॥५॥ विकट कलियुगमें भविजनकुं, जिनमूर्ति आधार । भवदुःख हरणी शिवसुख करणी, भवोदधी पार उतरणारे ॥भ०॥ चं०॥६॥ समकित देश सर्व विरती जनकी, ध्यावत होत भवपार ॥ चन्द्रवदनी चन्दसम गौरी, देख बूझी दाह तनकीरे ॥ भ०॥ चं० ॥७॥ श्री जिनदत्त सूरि सद्गुरूकी, मुरति और पादुका । कुशलसूरि आदि सद्गुरुकी, मुझ मन अधिक सुहायरे ॥ भ० ॥०॥८॥ पूजे ध्यावे जे नर भावे, पामे लील विलास । रतनमुनि सद्गुरूको बाल, लब्धि न मेली कालरे ॥ भ० ॥ ॥चं०॥९॥
SR No.032200
Book TitlePrachin Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMannalal Mishrilal Chopda
PublisherMannalal Mishrilal Chopda
Publication Year1934
Total Pages160
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size11 MB
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