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श्री प्राचीनस्तवनापली . .. .. .. [५३ हल्लासरे लाला ॥ सं० ॥ ७॥ हां० पधराव्या तिण चैत्यमें, प्रभु संघ सकल उछरंगरे लाला लक्ष्मी लीला हो जिन, सेव्यां बहु पुन्य अभंगरे लाला ॥सं०॥॥८॥हां सेवक अमृत धर्मलो, उवज्झाय क्षमा कल्याणरे लाला इणविध सुविनति करूं, करिये संघ कल्याणरे लाला ॥ सु०॥९॥ ॥ नलखेड़ श्री चन्द्रप्रभु जिन स्तवन ।।
॥ राग--भविकानी देशी ॥ देश मनोहर मालम मांही, गाम वसे नल खेड़ा। ओसवंशी शुद्ध धर्म के सगी, श्राद्ध बसे बड़भागीरे भविका चन्द्र प्रभु जिन वन्दो॥ वन्दित होत आन्दोर, भविका ॥चं० ॥ टेक॥जीर्ण उद्धार कियो जिन चैत्य, संघ मिली बहु भक्ते । पूरण हुवे उद्यापन कीनो, शुभ चड़ते परिणामरे ॥भ० ॥०॥२॥ शाल उगणीसो बयासी वर्षे, मृगसिर सुदि शुभ दशमी । वार बुध शुभ लग्न के माहि,